भारत देश संतों की भूमि है. आज तक लाखों संतों ने इस पावन भूमि पर जन्म लिया है. जिन्होंने अपनी अपनी अलौकिक चमत्कारिक शक्ति से मानव समाज का कल्याण किया है. ऐसे ही एक चमत्कारिक बाबा है जिसे लोग सियाराम बाबाके नामसे जानते है.
संत सियाराम बाबा जी का आश्रम मध्यप्रदेश में खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर भट्यान गांव में नर्मदा किनारे स्थित है. वैसे उसकी उम्र के लिए भक्त लोगों मे मतमतांतर है. कुछ लोग उनकी उम्र 109 साल बताते है.
हर दिन प्रभु राम जी की भक्ति में लीन रहने वाले सियाराम बाबा रोजाना 21 घंटे रामायण का पाठ करते हैं. वें आज भी बिना चश्मा लगाए हर अक्षर को आसानी से पढ़ लेते हैं
बताया जाता है कि बाबा ने 13 ने साल की उम्र मे सन्यास ले लिया था. उनके भक्तों का कहना है कि बाबा सन 1955 में इस गांव में आये थे. उनकी दयालु प्रवृत्ति देखकर ग्रामीणों ने उनके लिए एक छोटा सा कमरा बनाया. तभी से वे नर्मदा किनारे अपने उसी आश्रम में रहते हैं.
छोटे से से कमरे में निवास करने वाले संत सियाराम बाबा के दर्शन के लिए मध्य प्रदेश ही नहीं, महाराष्ट्र सहित गुजरात और राजस्थान से भी श्रद्धालु भक्त आते हैं. बाबा प्रतिदिन नर्मदा में स्नान करते हैं. स्वयं नर्मदा की परिक्रमा करने वालों की सेवा करते हैं.
सियाराम बाबा ने 10 साल तक खड़े रहकर तप किया था और 12 साल तक मौन रहे थे. बाबा के नाम के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. कहते हैं कि बाबा ने 12 वर्षों तक मौन धारण करके रखा हुआ था. वहीं, जब 12 वर्षों बाद उन्होंने अपना मुख खोला, तो उनके मुख से पहला शब्द निकला “सियाराम”. इस वजह से गांव के लोगों ने उनका नाम सियाराम रख दिया और अब बाबा सियाराम बाबा के नाम से जाने जाते हैं.
बाबा के आश्रम में रोजाना हजारों भक्त उनका आर्शीवाद लेनेके लिए आते हैं. लेकिन आज तक उन्होंने किसी भी भक्त से 10 रुपये से ज्यादा का दान स्वीकार नहीं किया.
संत सियाराम बाबा के भक्तों के अनुसार संत सियाराम बाबा धर्मशाला और मंदिरों के लिए करोड़ों रुपये दान कर चुके हैं, लेकिन आज भी किसी भी श्रद्धालु को अपने आश्रम में रुपिया 10 से ज्यादा का दान नहीं चढ़ाने देते हैं. यदि इससे अधिक कोई श्रद्धालु राशि देता है तो रुपिया 10 काटकर उन्हें वापस लौटा देते हैं.
सियाराम बाबा के तन पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट होती है. कड़ाके की ठंड हो, या बरसात हो, या फिर भीषण गर्मी, बाबा लंगोट के अलावा कुछ धारण नहीं करते. बाबा की एक झलक पाने के लिए देश तथा विदेशों से भी भक्तजन आते है.
ऐसा माना जाता है कि सियाराम बाबा का जन्म महारष्ट्र के मुंबई में हुआ था और उन्होंने 7-8वीं क्लास तक पढ़ाई भी की है. किसी संत के संपर्क में आने के बाद उनके अंदर वैराग्य धारण करने का विचार आया और उन्होंने घर त्याग दिया और तप करने हिमालय चले गए. हालांकि, उनके बाद का जीवन काफ़ी रहस्यमयी है और इस बारे में शायद ही किसी के पास जानकारी हो.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बाबा ने नर्मदा घाट की मरम्मत और बारिश से बचने के लिए शेड बनवाने के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दान में दिए थे. वहीं, एक निर्माणाधीन मंदिर के शिखर निर्माण के लिए सियाराम बाबा ने पांच लाख रुपए दान दिए थे.
इतनी उम्र होने के बावजूद वो अपना पूरा काम स्वयं ही करते हैं. वो अपना भोजन ख़ुद ही बनाकर खाते हैं. उन्होंने
10 वर्ष तक खड़ेश्वर तप किया था. ये एक कठीन तप होता है, इसमें तपस्वी को सोने से लेकर दिन भर के सारे काम खड़े रहकर ही करने होते हैं. ये सब बाबा की योग साधना से ही संभव हो पाया. कहते हैं बाबा के खडेश्वर तप के दौरान नर्मदा नदी में बाढ़ आ गई थी और पानी बाबा के नाभि तक आ गया था, लेकिन बाबा अपनी जगह पर ही बने रहे थे. ये थी सियाराम बाबाकी दिलचस्प कहानी आप लोगोंको जरूर पसंद आयी होंगी.