भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार.

भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार हयग्रीव का था. हयग्रीव का अर्थ है , हय मतलब घोड़ा और ग्रीव मतलब गर्दन, यांनी घोड़े की गर्दनवाला.

हयग्रीव को बुद्धि के देवता माने जाते हैं.

हयग्रीव का शरीर मनुष्य का और सिर घोड़े का था.

हयग्रीव ने हयग्रीव नाम के ही दानव का वध किया था. हयग्रीव जयंती हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. महाकवि भर्तृहरि ने हयग्रीव वध नाम का महाकाव्य लिखा था.

हयग्रीव, महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र थे. हिरण्याक्ष, रक्तबीज, धूम्रलोचन, और हिरण्यकशिपु उनके छोटे भाई थे.

वज्रंगासुर और अरुणासुर उनके बड़े भाई थे. उनकी बहन का नाम होलिका था. हयग्रीव एक ऐसा दैत्य था जो जल, थल, या आकाश में कहीं भी रह सकता था.

हयग्रीव को भारतीय पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख दैत्य के रूप में वर्णित किया गया हैं. हयग्रीव के बारे में हमें विभिन्न पुराणों में उल्लेख मिलता है, विशेष रूप से विष्णु पुराण और देवी भागवत पुराण में. वे अत्यंत शक्तिशाली और विद्वान दैत्य थे, जिन्होंने कठिन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अमरता और अपराजेयता का वरदान प्राप्त किया था इस वरदान के मद में उन्होंने कई अनैतिक कार्य किए, जिनमें सबसे प्रमुख था चारों वेदों की चोरी.

हयग्रीव ने चार वेदों की चोरी का कारण उसकी अधर्मी प्रवृत्ति और अपने वरदान के मद में चूर होना था. वेद, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के ज्ञान और धर्म का स्रोत माने जाते हैं, जो ब्रह्मा जी द्वारा बनाये गए थे.

जब हयग्रीव ने वेदों की चोरी की, तो उसका मुख्य उद्देश्य संसार में अज्ञानता और अराजकता फैलाना था. वेदों के बिना, ज्ञान और धर्म का पालन करना असंभव हो जाता है, जिससे अज्ञानता, अधर्म और अनैतिकता का वर्चस्व बढ़ जाता है.

हयग्रीव ने वेदों को समुद्र के तल में छिपा दिया, जिससे संसार में अंधकार और अज्ञानता फैलने लगी. देवताओं और मनुष्यों के लिए वेदों के बिना धर्म का पालन करना कठिन हो गया, और संसार में पाप और अधर्म का प्रसार होने लगा. इस संकट की स्थिति से चिंतित होकर, सभी देवताओंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की.

सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु और धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, ने इस संकट का समाधान करने का निर्णय लिया. और उन्होंने हयग्रीव अवतार धारण किया, जिसमें उनका सिर घोड़े का और शरीर मानव का था. इस अनोखे रूपने उन्हें हयग्रीवके समान बलशाली और शक्तिशाली बना दिया.

हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति के पीछे एक रोचक कहानी है. एक बार भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे. इस दौरान दो दैत्यों, मधु और कैटभ, ने ब्रह्मा जी पर आक्रमण किया और वेदों को चुरा लिया. ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी, लेकिन वे योगनिद्रा में होने के कारण जाग नहीं पाए.

अंततः देवी योगनिद्रा के आह्वान पर भगवान विष्णु जागे और दैत्यों का वध करने के लिए युद्धरत हुए. युद्ध के दौरान, भगवान विष्णु का सिर कट कर अलग हो गया. लेकिन उनकी अद्वितीय शक्ति के कारण, एक घोड़े का सिर उनके शरीर से जुड़ गया, और इस प्रकार हयग्रीव अवतार का प्रकट हुआ.

इस अवतार में भगवान विष्णु ने समुद्र के तल तक यात्रा की, जहाँ पर हयग्रीव ने वेदों को छिपा रखा था. समुद्र के तल में भगवान विष्णु और हयग्रीव के बीच भयंकर युद्ध हुआ. हयग्रीव देत्य अपने बल और वरदान के मद में चूर, भगवान विष्णु को पराजित करने का प्रयास करता रहा.

लेकिन भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार ने अपनी असीम शक्ति और योग्यता का प्रदर्शन करते हुए अंततः दैत्य हयग्रीव को पराजित किया और उसका वध कर दिया. इस प्रकार, भगवान विष्णु ने वेदों को पुनः प्राप्त किया और उन्हें ब्रह्माजी को सौंप दिया.

हयग्रीव और भगवान विष्णु की यह कथा न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह हमें जीवन में महत्वपूर्ण सबक सिखाती है. यह कथा हमें यह समझने में मदद करती है कि सत्य, धर्म, और ज्ञान की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए. भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार ने यह सिद्ध कर दिया कि जब भी धर्म और सत्य संकट में होते हैं, तो वे किसी भी रूप में अवतरित होकर उनकी रक्षा करते हैं.

( समाप्त )

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