भागवत कथाकार डोंगरे महाराज का नाम तो आपने अवश्य सुना होगा. आज भागवत करने वाले कथाकारों ने धर्म का दुकान बनाकर रखा है, जहां गुजरात के नाड़ियाद के विख्यात कथा वाचक रामचंद्र डोंगरे महाराज निशुल्क भागवत कथा करने के लिए पहचाने जाते थे.
रामचंद्र डोंगरे महाराज के जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनके पास पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे भी नहीं थे. कथाकार श्री डोंगरे महाराज को उनकी पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात इसका पता चला. तब वह आबू पहुंचे, उस समय उनके साथ मुंबई के सेठ रतिभाई पटेल भी थे.
सेठ रतिभाई पटेल ने यह रहस्य उजागर करते हुए बताया कि अस्थि विसर्जन के समय डोंगरे महाराज जी ने उनसे कहा था कि रति भाई मेरे पास तो कुछ है नहीं है और अस्थि विसर्जन में पैसा तो लगेगा.
उसने उस समय अस्थि विसर्जन क्रिया के लिए पत्नी का मंगल सूत्र और कर्णफूल बेचनेका निर्णय लिया. जिन भागवताचार्य महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं.
भागवताचार्य रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए, जो भागवत कथा के लिए एक रुपया भी न लेते हुए मात्र तुलसी पत्र दान में लेते थे. डोंगरे महाराज जहाँ भी भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे वह उसी शहर या गांव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे.
डोंगरे महाराज का जन्म तारीख : 15/2/1926 के दिन इंदौर शहर में हुआ था. उनकी माता का नाम कमला ताई और पिता का नाम केशवभाई डोंगरे था. उनका बचपन तथा लालन पालन वड़ोदरा गुजरात में हुआ था. महज आठ वर्ष की उम्र मे वह शिक्षा के लिए पंढरपुर महाराष्ट्र में गुरु आश्रम में गए, जहां उन्होंने सात वर्षो तक पुराणो वेद वेदान्तो और धर्म संबंधि शिक्षा की प्राप्ती की.
डोंगरेजी महाराज ने अहमदाबाद में सन्यास आश्रम और काशी में अभ्यास कर के थोडे समय में कर्मकाण्ड का व्यवसाय किया. उसके बाद सर्व प्रथम श्री सरयू मंदिर अहमदाबाद में भागवत कथा का प्रारंभ किया.
भागवत पर प्रभुत्व प्राप्त करने के उपरांत डोंगरे महाराज ने प्रथम भागवत कथा पुणे शहर में की. अन्य भाषा का चयन करते हुए उन्होंने गुजराती भाषा मे सन 1954 में प्रथम भागवत कथा सोराष्ट्र में की.
डोंगरेजी महाराज एक प्रखर वक्ता और भागवत कथाकार थे, उनकी वाणी से श्रोता भाव विभोर हो जाते है. पूज्य डोंगरे महाराज को शुकदेव तुल्य कहा जाता है, क्योंकि उनका समग्र जीवन शुकदेवजी जैसा निस्वार्थपूर्ण था.
डोंगरे महाराज ने प्रण लिया था कि कभी कथा के लिए दक्षिणा नहीं लेगे, किसी बैंक में खाता नहीं रखेंगे, किसी से कोई रुपया नहीं लेगे और कोई ट्रस्ट भी नहीं बनायेगे. उन्होंने किसी को भी शिष्य न बनाने का निर्णय भी लिया था.
गुजराती में उन्हें डोंगरे बापा कहते थे. डोंगरे बापा घुटने से लेकर कन्धो तक एक ही धोती और लंगोटी बांधते थे. उन्होंने जीवन भर पैर में पादुका नहीं पहनी. वह हाथ में घडी तथा अंगुठी पहनना भी पसंद नहीं करते थे.
कई जानकार बताते हैं कि डोंगरे महाराज खुराक में मूंग और बाजरे की रोटी दूध के साथ लेते थे. काफी समय तो स्वयं अपना भोजन बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाने के बाद ही वह भोजन करते थे.
भागवताचार्य श्री रामचंद्र डोंगरे महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण थे. उनके अंतिम प्रवचन में मुंबई चौपाटी में एक करोड़ रुपए जमा हुए थे, उन्होंने यह राशि गोरखपुर के कैंसर अस्पताल के लिए दान कर दी और खुद कुछ नहीं रखा था.
कहा जाता है कि डोंगरे महाराज की शादी हुई थी तब सुहाग रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था, देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे. इसके बाद जहाँ -जहाँ डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी उनके साथ जाती थीं.
108 भागवत पूर्ण होने में लगभग सात वर्ष बीत गए. तब डोंगरे महाराज पत्नी से बोले, कि अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें. इस पर उनकी पत्नी ने कहा, आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है, इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
रामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज ने सर्वप्रथम ग्रन्थ श्रीमद् भागवत रहस्य की रचना गुजराती भाषा में ” श्रीमद् भागवत कथा ” के नाम से की थी, जिसका हिन्दी अनुवाद पुस्तक के रूप में उपलब्ध है. डोंगरे जी महाराज ने भागवत कथा को विविध दृष्टान्तों द्वारा अत्यन्त सरल, सुगम, रोचक, शिक्षाप्रद बनाकर भक्तजनों का बड़ा कल्याण किया है. डोंगरे जी की ओजस्वी वाणी में भागवत का मधुर प्रवचन सुनना सभी को अच्छा लगता था , उनके प्रवचन में लोग लाखों की संख्या में एकत्र होते थे. उनके प्रवचनों के कैसेट्स भी बने हैं.
रामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज नडियाद गुजरात में गुजराती लोगो के संतराम मंदिर में अंतिम समय पसार कर ता : 09/11/1990 के दिन गुरुवार समय 9.37 पर अंतिम सांस लेकर ब्रम्हलीन हुए. उनकी इच्छानुसार उनके नश्वर शरीर को वडोदरा के नजदीक मालसर में नर्मदा मैया के प्रवाह में जल समाधि देकर प्रवाहित किया.
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