भारतीय रेल्वे की गौरव गाथा.

आज मुजे बात करनी है, भारतीय रेल्वे के बारेमें. इसका इतिहास बड़ा ही पुराना और रोचक है. जानते है इसकी कुछ खास बाते…..

हिन्दी में रेल या ट्रेन का अर्थ “लौह पथ गामिनी” कहा जाता है. यहाँ लौह पथ का मतलब लोहे का रास्ता और गामिनी का अर्थ है अनुगमन करने वाली या पीछे चलने वाली. पूरा मतलब है एक ऐसी गाड़ी जो लोहे के रास्ते पर चलती है. इन शब्दों को मिलाने पर ‘”रेलगाड़ी या ट्रेन” को हिन्दी में “लौह पथ गामिनी” कहा गया है. इस तरह इसके अलावा इसे आसान भाषा में रेलगाड़ी भी कहा जाता हैं.

भारतीय रेलवे केंद्र सरकार के स्वामित्व वाला सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है. इस की स्थापना ता : 8 मई, 1845 को हुई थी और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है. आज इसके 177 वर्ष पुरे हो चुके है.

भारतीय रेलवे आज आम लोगोंका सबसे सस्ता और सुघम यातायात का माध्यम है.

सन 1844 में, भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने निजी उद्यमियों को भारत में रेल प्रणाली स्थापित करने की अनुमति दी थी. दो नई रेलवे कंपनियां बनाई गईं , और ईस्ट इंडिया कंपनी को उनकी सहायता करने के लिए कहा गया था. ब्रिटेन में निवेशकों की दिलचस्पी से अगले कुछ वर्षों में रेल प्रणाली का तेजी से निर्माण हुआ था.

भारतीय रेल की पहली यात्री ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच में पूरे 34 किलोमीटर चली थी जिसमे एक भाप के इंजन समेत 14 डिब्बे लगे हुए थे और पहली बार में उसमे 400 यात्रियों ने यात्रा की थी.

भारत में सबसे पहले मुंबई से ठाणे के बीच जो ट्रैन चली थी, इस ट्रैन का लोकोमोटिव सुल्तान, सिंध और साहिब नाम के इंजन खींच रहे थे.

भारतीय रेल्वे का नवापुर रेल्वे स्टेशन ऐसा है जो दो राज्यों की सीमा के अंतर्गत आता है. इसका आधा हिस्सा महाराष्ट्र सीमा के तहत जबकि बाकी का आधा हिस्सा गुजरात की सीमा में आता है.

भारतीय रेलवे के सबसे लंबे और सबसे छोटे नाम वाले रेल्वे स्टेशन की बात करें तो चेन्नई के नजदीक स्थित

अराकोनम रेनीगुंटा सेक्शन पर….

वेंकटनारासिम्हाराजूवरिपेट (Venkatnarsimharajvaripeta) स्टेशन है जिसका नाम सबसे लंबा है. जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में है

वहीं ओडिशा के झारसुगुडा के नजदीक स्टेशन “इब (IB)” और गुजरात के आणंद के नजदीक “ओड (OD)” सबसे छोटे नाम वाले रेलवे स्टेशन हैं.

वर्तमान मे भले ही ट्रेनों में प्लेन जैसे टॉयलेट लगाए जा रहे हैं लेकिन इसकी सुविधा काफी समय बाद मिली है. सन 1909 से पहले ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा नहीं होती थी.भारतीय रेलवे में पहली बार टॉयलेट का उपयोग सन 1909 से शुरू हुआ था, रेलवे शुरू होने के पूरे 50 वर्षो बाद.

त्रिवेंद्रम-निजामुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस देश की इकलौती ऐसी ट्रेन है जो बिना रुके 528 किलोमीटर का सफर तय करती है. ये कोटा से वडोदरा का सफर बिना रुके पूरा करती है.

भारतीय रेल्वे का सबसे पहला रेल्वे स्टेशन मुंबई में स्थित बोरीबंदर था. इसे ” द ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे ” के द्वारा तैयार किया गया था. इस स्टेशन को साल 1888 में विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से दोबारा बनाया गया था, साल 1996 में इस रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रख दिया गया है. तब से लेकर आज तक यह रेलवे स्टेशन को इसी नाम से जाना जाता है.

भारतीय रेल की पहली यात्री ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच में पूरे 34 किलोमीटर चली थी जिसमे एक भाप के इंजन समेत 14 डिब्बे लगे हुए थे और पहली बार में उसमे 400 यात्रियों ने यात्रा की थी.

भारत में सबसे पहले मुंबई से ठाणे के बीच जो 16 अप्रैल 1853 को भाप इंजन से ट्रेन चली थी. इस ट्रेन में 14 कोच लगे थे, जिसे लोकोमोटिव सुल्तान, सिंध और साहिब नाम के इंजन खींच रहे थे.

भारतीय रेल की पहली लंबी दूरी की इलेक्ट्रिक ट्रेन का नाम डेक्कन क्वीन था जो कि सन 1930 में पहली बार मुंबई और पुणे के बीच चलाई गई थी. भारतीय रेल में मौजूदा वक़्त में अपने पडोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए दो ट्रेनें संचालित होती है, पहली है दिल्ली और लाहौर के बीच समझौता एक्सप्रेस और दूसरी ओर जोधपुर और कराची के बीच थार एक्सप्रेस.बांग्लादेश के लिए कोलकाता और ढाका के बीच एक्सप्रेस चलती है.

भारतीय रेल में मौजूदा वक़्त में उत्तर प्रदेश का गोरखपुर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म दुनिया का सबसे लंबा रेलवे प्लैटफ़ार्म है जिसकी कुल लम्बाई 1.366 कि.मी. है.

भारतीय रेल में मौजूदा वक़्त में सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन जंक्शन भारत का एकमात्र ऐसा स्टेशन है जिसमें सभी तीन ट्रैक गेज ब्रॉड गेज, मीटर गेज और नैरो गेज आदि मौजूद है

भारत में कुल मिलाकर 8338 रेलवे स्टेशन है, जो पूरे देश में फैले हुए है. इनमे सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित हावड़ा जंक्शन है. यह भारत का सबसे पुराना और प्रसिद्ध स्टेशन है. इसमें कुल 23 प्लेटफार्म और 26 रेलवे ट्रैक है.

भारतीय रेलवे पुरे विश्व का दूसरा और एशिया का पहला सबसे बड़ा रेल नेटवर्क कहा जाता है. सम्पूर्ण भारत में भारतीय रेलवे को जोन में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक जोन को मंडल में विभाजित कर दिया गया है.

प्रत्येक मंडल के लिए उस क्षेत्र के महाप्रबंधक (GM) को रिपोर्ट प्रदान करने के लिए रेलवे प्रबंधक (DRM) की नियुक्ति की जाती है.

भारत में कुल 18 रेलवे जोन है,और

कुल 73 मंडल हैं.

रेलवे जोन से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :

मुंबई में 2 रेलवे जोन है.

(1) पश्चिम रेलवे.

(2) मध्य रेलवे.

कोलकाता में 3 रेलवे जोन है.

(1) पूर्वी रेलवे.

(2) दक्षिण पूर्वी रेलवे.

(3) कोलकाता मेट्रो.

कोलकाता मेट्रो अकेला ऐसा मेट्रो शहर है, जिसकी मेट्रो के लिए अलग रेलवे जोन है. कोलकाता में सर्वाधिक 3 रेलवे जोन के मुख्यालय स्थित है. सन 2019 में 18वा रेलवे जोन दक्षिण तटीय रेलवे बनाया गया है. जिसका मुख्यालय विशाखापट्टनम में है.

वर्तमान में भारत में कुल 18 रेलवे जोन तथा 69 रेल डिवीजन है.

उत्तर रेलवे जोन जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है भारत का सबसे बड़ा रेलवे जोन है. इस रेलवे जोन के तहत सबसे अधिक 1142 रेलवे स्टेशन आते हैं.

भारतीय रेलवे स्टेशन को मूल रूप से कुल चार भागो में बांटा गया है : (1) टर्मिनस/टर्मिनल, (2) जंक्शन, (3) सेंट्रल और (4) स्टेशन.

टर्मिनस/टर्मिनल स्टेशन किसे कहते है?

वह स्टेशन जहां रेलवे ट्रैक समाप्त हो जाए या उस स्टेशन के आगे कोई ट्रैक (पटरी) नहीं हो तो उस स्टेशन को टर्मिनल या टर्मिनस कहा जाता है. इस स्टेशन के बाद में रेल को उसी दिशा में वापस जाना पड़ता जिस दिशा से वह आई हो. जैसे कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, लोकमान्य तिलक टर्मिनल, हावड़ा टर्मिनल, बांद्रा टर्मिनल आदि.

जंक्शन किसे कहते है :

यदि एक स्टेशन से कम से कम 3 मार्ग निकलते हों तो उस स्टेशन को जंक्शन कहा जाता है. यानी की ट्रेन कम से कम एक साथ दो रूट से आ भी सकती है और जा भी सकती है. सबसे ज़्यादा रूट्स वाला जंक्शन मथुरा का है. यहां से सात रूट निकलते हैं. सेलम जंक्शन से छः, विजयवाड़ा से पांच और बरेली जंक्शन से पांच रूट निकलते हैं.

सेंट्रल किसे कहते है ?

“सेंट्रल” स्टेशन का मतलब होता है कि यह शहर का सबसे व्यस्त और सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन है. सेंट्रल स्टेशन आमतौर पर बहुत बड़ा होता है और कई ट्रेनें यहां से रोज़ाना गुज़रती हैं. ये भी ज़रूरी नहीं कि किसी शहर में एक से ज़्यादा स्टेशन होने पर वहां कोई सेंट्रल स्टेशन भी होना ही चाहिए. जैसे कि भारत की राजधानी दिल्ली का कोई सेंट्रल स्टेशन नहीं है. यह सबसे पुराना स्टेशन भी हो सकता है इसलिए इसे सेंट्रल कहा जाता है. भारत में कुल पांच सेन्ट्रल स्टेशन हैं (1) त्रिवेंद्रम सेंट्रल, (2) कानपूर सेंट्रल, (3) मैंगलोर सेंट्रल,(4) मुंबई सेंट्रल और (5) चेन्नई सेंट्रल.

स्टेशन किसे कहते है ?

स्टेशन उस जगह को कहते है जहां, ट्रेन आने जाने वाले यात्रियों और समानों के लिये रुकती है. रेलवे के चार कैटेगरी में जो स्टेशन टर्मिनस, सेंट्रल और जंक्शन के दायरे में नही आता है उन्हें स्टेशन कहा जाता है. कुछ लोग हिंदी मे स्टेशन को ‘ लौह पथ गामिनी विराम स्थानक ” भी कहते है

हमारे भाईंदर रेल्वे स्टेशन की बात करें तो सन 1870 मे भाईंदर की खाड़ी पर पुराना रेलवे पुल का प्रथम निर्माण कार्य शुरु हो चूका था. उसके बाद सन 1901 मे भाईंदर रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ था. जिस लोगोने इस स्टेशन को बनते देखा हो ऐसा कोई भी व्यक्ति आज भाईंदर मे जिंदा नहीं है.

सन 1901 मे मुख्य स्टेशन का निर्माण हुआ तब स्टेशन के पश्चिम उत्तरीय छोर पर स्टेशन मास्टर की ऑफिस का एक कार्यालय बनाया गया था, जहा घंटा बजाकर कोयले वाली इंजिन गाड़ी के आगमन की सूचना दी जाती थी.

सन 1987 तक यहां पर सिर्फ दो लाइन थी. 7 दिसंबर 1987 तक कई आंदोलनों के बाद भाईंदर रेलवे स्टेशन पर नये प्लाट फॉर्म नंबर – 3 और 4 का निर्माण कार्य शुरु किया गया था.

सन 1988 दिसंबर 1 तारीख के दिन भाईंदर टर्मिनल का विधिवत उद्घाटन तत्कालीन विधायक श्री जनार्दन गौरी तथा तत्कालीन सांसद श्री शांताराम घोलप द्वारा किया था.

भाईंदर रेलवे स्टेशन ने आठ डिब्बे के उपरांत नव डिब्बा, तीन डिब्बा की शटल ट्रैन, छह डिब्बे की ट्रैन, बारा डिब्बे की ट्रैन और वर्तमान 15 डिब्बेकी ट्रैन का जमाना भी आप देख रहे हो.

भाईंदर की खाड़ी पर ये पुल का निर्माण सन 1870 में शुरु हुआ था. जो गेमन एंड कंपनी ने बनाया था. वर्तमान इसे तोडनेका कार्य शुरु हो चूका है.

रेलवे लाइन बननेके बाद भाईंदर का दो भागोंमें विभाजन हुआ था. पूर्व का भाग भाईंदर पूर्व और पश्चिम का भाग भाईंदर पश्चिम के नाम से पहचाने जाने लगा था. इससे पहले पुरे भाग को भाईंदर के नाम से पहचाना जाता था.

150 साल पहले भाईंदर अपने रेती के व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध था. तब उसे लोग ” रेती बंदर ” के नामसे पुकारते थे. इसी के चलते भाईंदर पूर्व का बंदरवाड़ी गांव अस्थित्व मे आया था. जो आज भी विध्यमान है.

मीरारोड पूर्व पश्चिम मे दूर दूर तक कोई गांव नही था अतः पर्वतों के सानिध्य मे बसा मिरा गावठन क्षेत्र के नाम पर ” मीरारोड ” स्टेशन का नाम रखा गया था. मीरारोड पूर्व से जलमार्ग नाव ( दूंगी ) द्वारा नमक को गंतव्य स्थान तक भेजा जाता था.

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