भारतीय विदेश मंत्रालय के कार्य को सुचारु रुप से चलाने के लिए एक विशेष सेवा वर्ग का निर्माण किया गया है, जिस सेवा को भारतीय विदेश सेवा { INDIAN FOREIGN SERVICE ( I.F.S. ) } कहा जाता है. यह एक प्रणाली है और यह सेवा भारत सरकार की केंद्रीय सेवाओं का हिस्सा है. भारत के विदेश सचिव भारतीय विदेश सेवा के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं.
ता : 13 सितम्बर 1783 को ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल ने कोलकाता के फोर्ट विलियम में एक ऐसा विभाग बनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया जो वारेन हेस्टिंग्स प्रशासन पर इसके द्वारा ” गोपनीय एवं राजनीतिक कारोबार ” के संचालन में दबाव को कम करने में मदद कर सके. हालांकि इसकी स्थापना कंपनी द्वारा की गयी थी.
सन 1843 में भारत के गवर्नर जनरल एडवर्ड लॉ, एलेनबोरो के पहले अर्ल ने सरकार के सचिवालय को चार विभागों मे (1) विदेश, (2) गृह, (3) वित्त और (4) सैन्य बाटकर प्रशासनिक सुधारों को अंजाम दिया था. इनमें से हर विभाग की अध्यक्षता एक सचिव स्तर के अधिकारी को दी गयी थी.
विदेश विभाग के सचिव को तत्कालीन सरकार के बाह्य और आंतरिक , राजनीतिक संबंधित सभी तरह के पत्राचार के संचालन का कार्यभार सौंपा गया था.
भारत सरकार के अधिनियम 1935 ने विदेश विभाग के विदेशी और राजनीतिक अंगों की कार्यप्रणालियों को और अधिक स्पष्ट करने विभाग को पूरी तरह से दो शाखाओं में बांटकर गवर्नर जनरल के प्रत्यक्ष प्रभार के तहत अलग से विदेशी विभाग की स्थापना की गयी.
सन 1946 को भारत की आजादी के ठीक पहले भारत सरकार ने विदेशों में भारत के कूटनीतिक, दूतावास संबंधी और वाणिज्यिक प्रतिनिधित्व के लिए भारतीय विदेश सेवा की स्थापना की गई, और विदेशी और राजनीतिक विभाग का करीब पूर्ण रूपांतरण एक ऐसे स्वरूप में हुआ जो उस समय का नया विदेशी मामलों और राष्ट्रमंडल संबंधों का मंत्रालय बना.
सिविल सेवा परीक्षा का प्रयोग भारतीय प्रशासनिक प्रणाली की भर्ती के लिए किया जाता है. जिसको तीन चरण मे बाटा गया है. (1) प्रारंभिक परीक्षा, (2) मुख्य परीक्षा और (3) साक्षात्कार और इसे अत्यंत चुनौतीपूर्ण माना जाता है. ये
संपूर्ण चयन प्रक्रिया लगभग 12 महीनों तक चलती है.
करीब लाख उम्मीदवारों में से प्रति वर्ष सिर्फ 0.01 फिसदी उम्मीदवार सफल होते है. विदेश सेवा के लिए स्वीकृति मिलने पर नए सदस्यों को महत्वपूर्ण प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है. नये सदस्य को प्रोबेशनर तौर पर काम करना पड़ता है.
राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद आगे उम्मीदवार को प्रशिक्षण के साथ-साथ विभिन्न सरकारी प्रणाली ओ के साथ संलग्न होने और भारत एवं विदेश में भ्रमण के लिए नई दिल्ली में स्थित विदेश सेवा संस्थान में दाखिला देते है. संपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम 3 साल की अवधि का होता है.
प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन पर अधिकारी को एक अनिवार्य रूप से एक विदेशी भाषा सीखने का जिम्मा दिया जाता है. भाषा मे दक्षता प्राप्त करने पर उन्हें सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाती है.
महाराष्ट्र मे रहने वाली प्रियंका सोहनी महाराष्ट्र से यूपीएससी में 2012 बैच के सफल अधिकारियों में तीसरे नंबर पर रही थीं और यूपीएससी परीक्षा में 26 रैंक प्राप्त किया था. प्रियंका 2016 से चीन में भारतीय दूतावास में सेवारत हुईं और मंदारिन (चीनी) भाषा सीखी. प्रियंका विदेश मंत्रालय के बेस्ट ट्रेनी ऑफिसर में से एक थी, जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल भी मिल चुका है. उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह ने उन्हें बिमल सान्याल पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.
आई.एफ.एस. ऑफिसर के घर की सुरक्षा के लिए पूरे राज्य की जिम्मेदारी होती है.इसलिए इनके जान-माल को भी शायद ही कुछ नुकसान होने का डर होता है.
उनके गाड़ी की नंबर प्लेट अन्य दूसरे अफसरो से अलग होती है. आई.एफ.एस. ऑफिसर की गाड़ी का नम्बर प्लेट नीला होता है. इस तरह का नम्बर प्लेट किसी ओर को नहीं दीया जाता है. यही नम्बर प्लेट से पता चलता है कि गाड़ी विशेष है औऱ किसी डिपलोमेट की है.
इन सबके अलावा I.F.S. ऑफिसर को राज्यों के पुलिस नियमों से भी प्रतिरक्षा प्राप्त होती है. मतलब की ये इमरजेंसी में नियमों को ना माने तो भी कुछ नहीं होता है.
आई.एफ.एस. अफसर बननेके लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष और अधिकतम आयु 30 वर्ष की होती है. एस.सी और एस.टी. उम्मीदवारों के लिए 5 साल अधिक मिलता है. ओबीसी उम्मीदवारों को 3 साल अधिक मिलता है.
जम्मू और कश्मीर राज्य से उम्मीदवार के लिए 5 वर्ष अधिक दीया जाता है, तथा रक्षा सेवाओं के कर्मियों के लिए 5 साल की छूट दी जाती है. भूतपूर्व सैनिकों के लिए 5 वर्ष जिनमें कमीशन अधिकारी और ई.सी.ओ. और एसएससीओ शामिल हैं जिन्होंने कम से कम 5 वर्ष की सैन्य सेवा प्रदान की हो.
प्रयासों की अधिकतम संख्या इस प्रकार है, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार को 7 प्रयास अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को कोई प्रतिबंध नहीं होता है अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार को 9 प्रयास दीया जाता है.
एक IFS अधिकारी की भूमिका बहुत ही आशाजनक और चुनौतीपूर्ण होती है. ये अंतर्राष्ट्रीय मंचों और प्लेटफार्मों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते है.
हर माँ बाप का स्वपना होता है उनका बेटा बड़ा होकर बड़ा अफसर बने. भारतीय विदेश सेवा एक महत्वपूर्ण काम है जो व्यक्ति को प्रतिष्ठा देलाती है.
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