भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद मंगल पांडेय जी की गौरवगाथा.

मंगल पांडे जी के विद्रोह से शुरू हुआ था भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम. भारत को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए सबसे पहले अंग्रेजों से बगावत करने वाले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी शहीद श्री मंगल पांडेय जी की गौरवगाथा आज आप प्रबुद्ध लोगों तक पहुंचानी है.

” मंगल पांडे ” का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी क्रांतिकारीके रूप में याद किया जाता है, उनके द्वारा शुरु की गई क्रांति की चिंगारी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की नींव को बुरी तरह से हिला दिया था.

अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी, भार‍त में व्यापार करने आई थी, मगर धीरे धीरे आपना स्वामित्व बना लिया था. उस समय अंग्रेजो को भनक तक नहीं थी कि एक दिन मंगल पांडेय रूपी कोई तूफान तेजीसे आएगा जो अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ पहली लड़ाई होंगी.

सन 1849 में मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे. वें बैरकपुर की सैनिक छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैंट्री यानी बीएनआई की 34वीं रेजीमेंट के पैदल सेना के सिपाही थे.

सन 1856 से पहले तक अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाही ब्राउन ब्रीज नाम की बंदूक का वापर करते थे. उसी समय भारतीय सेना के लिए एनफील्ड पी-53 लाई गई. इस बंदूक को लोड करने के लिए पहले कारतूस को दांत से काटना पड़ता था.

इसी दौरान भारतीय सिपाहियों के बीच यह बात फैल गई कि इस राइफल में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है. इस वजह से हिंदू और मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची और सिपाहियों द्वारा इसे ब्रिटिश शासन द्वारा हिंदू और मुसलमान धर्म को भ्रष्ट करने की सोची समझी साजिश बताया गया.

मंगल पांडे के मन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्वार्थी नीतियों की वजह से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ पहलेसे नफ़रत थी. अतः ता : 9 फरवरी 1857 को जब यह कारतूस देशी पैदल सेना को बांटा गया, तब मंगल पांडेय ने उसे लेनेसे इनकार कर दिया. इस बात से व्यथित अंग्रेजी अफसर द्वारा मंगल पांडे से उनके हथियार छीन लेने और वर्दी उतरवाने का आदेश दे दिया, जिसे मानने से मंगल पांडे ने इनकार कर दिया. और रायफल छीनने आगे बढ़ रहे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर मंगलने आक्रमण किया तथा उसे मौत के घाट उतार दिया, उनके रास्ते में आए दूसरे एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉब को भी मौत के घात उतार दिया.

घटना के तुरंत बाद मंगल पांडे को अंग्रेज सिपाहियों ने गिरफ्तार कर दिया गया तथा उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को फांसी की सजा सुना दी गई. कोर्ट के फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकि‍न अंग्रेजों द्वारा 10 दिन पूर्व ही यानी 8 अप्रैल सन् 1857 को ही मंगल पांडे को फांसी दे दी गई.

शहीद मंगल पांडे जी द्वारा किया गया यह विद्रोह भारत का यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है, जिसमें सैनिकों के साथ-साथ राजा-रजवाड़े, किसान, मजदूर एवं अन्य सभी सामान्य लोग भी शामिल हुए थे. मंगल पांडे जी आजादी के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनके सामने गर्दन झुकाकर जल्‍लादों ने फांसी देने से इनकार कर दिया था.

सन 1857 की आजादी के क्रांति के सबसे पहले नायक मंगल पांडे ही है, उस समय अंग्रेजों को फिरंगी के नाम से भी जाना जाता था और मंगल पांडे ने ही सबसे पहले ” मारो फिरंगी को ” नारा दिया था.

मंगल पांडे जी के शहीद होने से पूरे भारत में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी. अंग्रेजों ने मंगल पांडे को यह सोचकर समय से पहले फांसी दी थी कि इस तरह से वे स्थिति पर काबू पा लेंगे और विद्रोह को कई जगह भड़कने से रोक लेंगे. लेकिन मंगल पांडे की मौत के बाद विद्रोह की चिंगारी कई सैनिक छावनियों में भी फैलने लगी. और कई सैनिक विद्रोही बन गए.

आधिकारिक रूपसे सन 1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई से हुई थी, मगर 29 मार्च को मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ पहली गोली चला दी थी. विद्रोह के नायक मंगल पांडे से अंग्रेज इतने खौफ खाते थे कि उनकी फांसी के लिए मुकर्रर तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें चुपके से फंदे से लटका दिया गया था. मंगल पांडे को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में 08 अप्रैल 1857 को फांसी दी गई थी.

देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म ता : 19 जुलाई 1827 के दिन उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. वह सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार से थे. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी पांडे था. सन 1849 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री (BNI) बटालियन की 34वीं रेजीमेंट में पैदल सेना के सिपाही के रूप में भर्ती हुए. इस रेजीमेंट में ज्यादातर ब्राह्मणों को ही भर्ती किया जाता था.

मंगल पांडे अपनी बहादुरी, साहस, एक अच्छे सैनिक के गुण और गंभीरता के लिए जाने जाते हैं. भारतीय इतिहास में इस घटना को “1857 का गदर” नाम दिया गया.

मंगल पांडे के विद्रोह की सामूहिक सजा के रूप में क्रूर अंग्रेजो ने 34 वीं रेजीमेंट को अप्रैल 1857 में भंग कर दिया गया. तब निकाले गए सभी सैनिकों ने विरोध जताते हुए ग्राउंड से निकलने से पहले अपनी टोपी को जमीन पर फेंक कर कुचल दिया था.

आज मंगल पांडे जी का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. उनकी वीरता की कहानियां हमेशा नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी. भारत सरकार ने इस अमर शहीद के सम्मान में 1984 में एक डाक टिकट भी जारी किया था. मंगल पांडे जी के जीवन पर 2005 में “मंगल पांडे- द- राइजिंग” नाम की फिल्म बन चुकी है.

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