भारत का राष्ट्रीय चिन्ह ” अशोक स्तंभ “

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” अशोक स्तंभ ” हमारे भारत देश का राष्ट्रीय चिन्ह है. राष्ट्रीय चिन्ह होने की वजह से इसकी संवैधानिक गरिमा है. इस चिन्ह का उपयोग संवैधानिक पद पर बैठे लोग ही कर सकते है जैसे हमारे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राजयपाल, ग्रहमंत्री, न्यायाधीश, एवं अन्य सरकारी संस्थाओ में कार्य कर रहे उच्च अधिकारी. रिटायर होने के बाद कोई भी सरकारी अधिकारी बिना किसी इजाजत के इस चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता.

हमारी भारत सरकार ने इस राष्ट्रीय चिन्ह के दुरूपयोग को रोकने के लिए एक कानून बनाया है. जिसका नाम है भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरूपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 जिसको 2007 में संसोधित किया गया था. इस नियम के तहत यदि कोई भी आम आदमी या कोई रिटायर व्यक्ति बिना अनुमति के इस चिन्ह का उपयोग करता है तो उसे 2 वर्ष की सजा और 5000 रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है.

भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है. राष्ट्रीय तिरंगे के बीच जो चक्र है वो भी अशोक स्तंभ से लिया गया है. भारत में अशोक स्तंभ का निर्माण मौर्य वंश के ही तीसरे शासक “सम्राट अशोक” ने करवाया था.

इस स्तम्भ में चार शेर बनवाये गए है जिस कारण इसको चतुर्मुख भी कहा जाता है.

सारनाथ में भगवान बुद्ध ने जो धर्म उपदेश दिया था, उसे “सिंह गर्जना” के नाम से जाना जाता है. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने देशभर में इसके प्रतीकों के रूप में चारों दिशाओं में गर्जना करते चार शेरों की आकृति वाले स्तंभ का निर्माण कराया था.

अशोक स्तंभ को शासन, संस्कृति और शांति का प्रतीक माना गया है और इसे संवैधानिक रूप से ता : 26 जनवरी 1950 के दिन भारत सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय चिन्ह के रूपमें अपनाया गया है. यह संवैधानिक पद और संविधान की शक्ति को दर्शाता है. इसको धर्म चक्र (कानून का पहिया) भी कहा जाता है.

आपने कभी ध्यान से देखा हो तो अशोक स्तम्भ में नीचे एक बैल और एक घोडा भी दिखाई देता है, इन दोनों आकृत्तियो के बीच ” अशोक चक्र ” है, जिसमे 24 तिल्लिया है और जिसको हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भी शामिल किया गया है.

अशोक स्तंभ के सामने खड़े रहनेसे हमें सिर्फ तीन शेर दिखाई देते है लेकिन अशोक स्तंभ में 4 शेरो की आकृति है. स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते भी लिखा है जिसका अर्थ होता है सत्य की हमेशा विजय होती है. भारत में सारनाथ के अलावा प्रयागराज,वैशाली, साँची,में भी अशोक स्तंभ है जिनका अपना अपना महत्व है.

“अशोक स्तंभ ” का इतिहास 273 ईसा पूर्व से शुरू होता है जब भारत देश में मौर्य वंश के तीसरे शासक रहे सम्राट अशोक का शासनकाल था. सम्राट श्री अशोक एक क्रूर प्रकृति के शासक थे,

लेकिन कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देखकर अशोक का मन द्रवित हो गया और वे हिंसा का त्याग कर अहिंसा और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए बौद्ध धर्म की शरण ने चले गए.

उसके बाद वे बौद्ध धर्म के बताये गए रास्ते पर चलने लगे और बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार करने लगे. सम्राट अशोक चाहते थे कि बौद्ध धर्म का विश्व में विस्तार हो, जिसके लिए अशोक ने जगह जगह पर लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया.

अशोक चक्र का उपयोग निचे दी गई व्यक्ति भारत में कहीं भी यात्रा कर रहे हों तो वे अशोक चिन्ह का उपयोग गाड़ी पर कर सकते हैं.

(1) प्रधानमन्त्री.

(2) कैबिनेट मंत्री.

(3) लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष.

(4) राज्य सभा के उपसभापति.

निचे दिये गये पदाधिकारी अपनी कारों पर अशोक चिन्ह का प्रयोग सिर्फ अपने राज्य क्षेत्र के भीतर ही कर सकते हैं.

(1) भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश और अन्य न्यायधीश.

(2) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीश और अन्य न्यायधीश.

(3) राज्यों के कैबिनेट मंत्री.

(4) राज्यों के राज्य मंत्री.

(5) विधान सभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष.

(6) राज्य विधान सभाओं के सभापति और उप सभापति.

(7) दिल्ली और पुदुचेरी विधान सभाओं के मंत्री और इनकी विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष.

उपर दिए गए नामों को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि अशोक चिन्ह का प्रयोग केवल बहुत महत्वपूर्ण व्यक्तियों के वाहनों पर ही किया जा सकता है. लेकिन कुछ साधारण पद पर बैठे लोग भी अपनी कारों पर इसका उपयोग करते हैं जो कि इस अधिनियम के अनुसार प्रतिबंधित है.

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