विश्व की प्राचीन जनजातियों तथा मूल निवासियों के संरक्षण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष तारिख : 9 अगस्त को विश्व जनजातीय दिवस मनाया जाता है. यह दिन विश्व की सामान्य जनसंख्या को आदिवासी जनजातियों के अधिकार तथा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है.
इस दिन उनकी भाषा, संस्कृति तथा अन्य पारंपरिक रीति-रिवाजों को सुरक्षित करने के लिए भी प्रयास किए जाते हैं. आदिवासी अपनी संस्कृति , सभ्यता, और भाषा को बचाए रखने की कोशिश करता है.कारण उनकी सभ्यता संस्कृति ही आदिवासी की पहचान है.
भारत देश के प्रमुख आदिवासी समुदायों में आंध, गोंड, खरवार, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, पटलिया
सहरिया, संथाल, भूमिज, उरांव, लोहरा, बिरहोर, पारधी, असुर, नायक भिलाला, मीना,टाकणकार, धानका, मीणा, उरांव, कुड़मी, फनात,सहरिया,महतो,परधान, हो, बिरहोर, इत्यादि जातियां आती है.
भारत में आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान इत्यादि राज्यो में बहुसंख्यक तथा बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश राज्यो में अल्पसंख्यक है , जबकि पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मिजोरम में यह बहुसंख्यक हैं.
आदिवासी भाषाओं में भीली बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर गोंडी भाषा और तीसरे स्थान पर संताली भाषा है. भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही पांच आदिवासी भाषाओं संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया ने सन 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा हासिल किया गया है.
भारत में आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म को मानता है. इनके मुताबिक सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं. झारखंड में इस धर्म को मानने वालों की सबसे ज्यादा 42 लाख आबादी है. ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं और मूर्ति पूजा में यकीन नहीं करते.
आदिवासी शब्द दो शब्दों “आदि ” और ” वासी ” से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है. भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी बनी है. वर्तमान भारत मे आदिवासी लोगोकी जनसंख्या करीब 18.4 करोड़ अनुमानित हैं.
भारत देश में अनुसूचित आदिवासी समूहों की संख्या 700 से अधिक है. भारत में सन 1871 से लेकर 1941 तक हुई ब्रिटिश कालीन जनगणनाओं में आदिवासयों को अन्य धमों से अलग धर्म में गिना गया है. जैसे कि अन्य धर्म सन 1871, ऐबरिजनल सन 1881, फारेस्ट ट्राइब सन 1891, एनिमिस्ट सन 1901, एनिमिस्ट सन 1911, प्रिमिटिव 1921, ट्राइबल रिलिजन सन 1931, ट्राइब सन 1941″ इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है. हालांकि स्वतंत्र भारत मे 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को हिन्दू धर्म मे गिनना शुरू कर दिया गया है.
आपको बता दु कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निरोधक ) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे ता : 30 जनवरी 1990 से पुरे भारत में लागु किया गया. यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं. इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएँ हैं.
भारतीय दंड सहिता की धारा 294 के तहत एक हजार रुपए का जुर्माना और 3(1)(10) अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत एक वर्ष के सश्रम कारावास और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा दी जाती है.
आदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्थलों, खेताें, घरों आदि में एक विशिष्ट प्रकार का झंडा लगाते है, जो अन्य अलग होता है. आदिवासी झंडे में सूरज, चांद, तारे आदि प्रतीक होते है.
आदिवासी के झंडे सभी रंग के होते है. वो किसी रंग विशेष से बंधे नहीं होते. आदिवासी प्रकृति पूजक होते है. वे प्रकृति में पाये जाने वाले स्ाभी जीव, जन्तु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी जीवीत वस्तुओं की पूजा करते है. आदिवासी मानते है कि प्रकृति की हर एक वस्तु में जीवन होता है. भारत ही नहीं पूरे विश्व के आदिवासी कहे जाने वाले आदिवासीयों के झंडो में सूरज, चांद, तारे आदि कहीं ना कहीं बने हुये होते है.
हमारे भारत देश की सभ्यता करीब 5,000 वर्ष से भी पुरानी है. भारत के मूल ग्रंथ ऋग्वेद में भी जनजातीय लोगों का उल्लेख मिलता है. जिसमें उन्हें दास या आदिम जातियां कहा गया है. हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण मे सबरी का पात्र और महाकाव्य महाभारत मे एकलव्य का पात्र इसका प्रमाण है.