शनिवार ता : 14 मार्च 1931 का दिन भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्रीज के लिए ” सुवर्ण ” अक्षरों मे अंकित है. आजही के शुभ दिन 92 साल पहले भारतीय गूंगी फ़िल्मों ने बोलना शिखा था.
आज ही के दिन बॉम्बे (मुंबई) के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में आर्देशिर ईरानी निर्देशित “आलम आरा”फ़िल्म रिलीज़ हुई थी. जो भारत की पहली बोलती फ़िल्म थी. इससे पहले भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के ने भी फ़िल्मों में आवाज़ डालने के कई प्रयास किए थे लेकिन वो क़ामयाब नहीं हो पाए थे.
उस समय लोगों मे हमारी फ़िल्मों में दिलचस्पी कम होने लगी थी. हॉलीवुड की कई बोलती फ़िल्में भारत आने लगी थीं. ऐसे में आर्देशिर को लगा कि भारत में भी ऐसी फ़िल्में बनानी ज़रूरी हैं.
आलम आरा फ़िल्म बनाने के लिए ईरानी और उनकी यूनिट इंपीरियल स्टूडियो ने टैनोर सिंगल सिस्टम कैमरा विदेश से आयात किया था. जिस समय आर्देशिर ईरानी आलम आरा बना रहे थे तब उसी समय कृष्णा मूवीटोन, मदन थिएटर्स जैसी कंपनियां भी बोलती फ़िल्म बनाने की कोशिश कर रही थी.
इसीलिए आर्देशिर ईरानी अपनी “आलम आरा” फ़िल्म की शूटिंग जल्द से जल्द ख़त्म करना चाहते थे ताकि उनकी फ़िल्म भारत की पहली बोलती फ़िल्म बन जाए. मगर इस काम मे उन्हें बहुत दिक़्क़त आ रही थी. स्टूडियो रेल्वे ट्रैक के नजदीक होनेकी वजह से आस पास बहुत आवाज़ें आती थीं जो साथ में रिकॉर्ड हो जाती थीं. ऐसे में दिनमे शूटिंग करना बड़ा मुश्किल होता था.
फ़िल्म के ज़्यादातर कलाकार मूक फ़िल्मों के दौर के थे. उन्हें टॉकी फ़िल्म में काम करने की तकनीक के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी. कलाकारों को घंटों तक सिखाया जाता कि माइक पर कैसे बोलना है. उन्हें ज़बान साफ़ करने के तरीक़े बताए जाते थे.
आलम आरा यूनिट को टैनोर सिंगल सिस्टम कैमरे से शूट करने में बड़ी ही दिक़्क़त होती. एक ही ट्रैक पर साउंड और पिक्चर रिकॉर्ड होती. इसलिए कलाकारों को एक ही टेक में शॉट देना पड़ता था. डबिंग की भी बडी तकनीक थी. कैमरे के प्रिंट के साथ समस्या ये थी कि उसे संरक्षित नहीं किया जा सकता क्योंकि वो नाइट्रेट प्रिंट था जो बड़ी जल्दी आग पकड़ लेता था.
आलम आरा की कहानी जोसेफ़ डेविड निर्देशित एक पारसी नाटक था. आर्देशिर इसे देखकर बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने तय किया कि वो गाने के साथ फ़िल्म बनाएंगे. जब फ़िल्म बनी और मैजेस्टिक सिनेमा में जब फ़िल्म का प्रीमियर हुआ तो ख़ुद आर्देशिर ईरानी एक-एक मेहमान का स्वागत करने के लिए गेट पर खड़े थे.
उस समय की फ़िल्म के नेगेटिव बहुत ज़्यादा दिन नहीं चलते थे. आलम आरा के बहुत लिमिटेड प्रिंट्स बने थे. उस वक़्त फ़िल्म आर्काइव जैसी कोई संस्था नहीं थी. जब स्टूडियो कल्चर ख़त्म होने लगा तो फ़िल्मों के प्रिंट्स को कौड़ियों के भाव मे कबाड़ियों को बेच दिया गया था. इसीलिए भारतीय हिंदी सिनेमा की इस ऐतिहासिक फ़िल्म का कोई प्रिंट मौजूद नहीं है और अब ये सिर्फ़ तस्वीरों के ही माध्यम से याद की जाती है.
आलम आरा फ़िल्म को अर्देशिर ईरानी ने निर्देशित किया था. फ़िल्म मे अभिनय मास्टर विट्ठल और जुबैदा ने आलम आरा का किरदार निभाया था. इसे संगीत से सवारा था, फिरोजशाह मिस्त्री तथा बी ईरानी ने. इस फ़िल्म की अवधि 124 मिनट थी. उस जमाने मे यह फ़िल्म 40000 रुपये मे बनी थी.
आलम आरा फ़िल्म के रिलीज के समय लोगों की भीड़ सुबह 9:00 बजे से लाइन में लग गई थी, हालांकि पहला शो 3:00 बजे शुरु हुआ था. अपराह्न , एक समाधान के रूप में, पुलिस को थिएटर सौंपा गया और भीड़ और यातायात को नियंत्रित करने के लिए लाठियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी. आलम आरा बोलती फ़िल्म मैजेस्टिक सिनेमा में एक बड़ा आकर्षण साबित हुई थी.
उल्लेखनीय है कि, भारत की पहली गूंगी फ़िल्म दादासाहेब फालके जी की फिल्म “राजा हरिश्चंद्र” थी, जो उस समय की पहली फिल्म थी. इस फिल्म को बनाने में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.यह फिल्म 3 मई 1913 को रिलीज हुई थी. राजा हरिश्चंद्र फिल्म को बनाने में लगभग 7 महीने लगे थे, यह फिल्म 40 मिनट की थी.