भील जनजाति की जीवनशैली. 

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                जनजाति भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के भीलू शब्द से हुई है. जिसका शाब्दिक अर्थ होता है कि ” तीरंदाज.” कुछ लोग भील की उत्पत्ति क्रिया के मूल रूप से मानते हैं जिसका अर्थ है भेदना या मारना हैँ. ये एक आदिवासी पिछड़ी जाति हैँ. 

     अन्य मान्यता के अनुसार भील शब्द की उत्पत्ति “वील” से हुई है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं “धनुष”.

        महान धनुर्धारी एकलव्य के पिता श्रृंगवेरपुर के राजा थे. एकलव्य ने भील जाती मे जन्म लिया था. 

    महर्षि वाल्मीकि एक भील लुटेरा था. बादमे हृदय परिवर्तन हुआ और पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना की. 

    संत सुरमल जी खराड़ी, आदिवासी भील धर्म के प्रमुख गुरु थे, उनसे संबंधित एक पुस्तक प्रकाशित हुई है. 

      माता शबरी एक राजकुमारी थी , उनके पिता राजा थे , माता शबरी प्रभु रामजी की परम भक्त थी , माता शबरी भील समुदाय से थी. 

     सरदार हेमसिंह एक भील था, आप बाड़मेर के सरदार थे और पाकिस्तानी सेना से युद्ध किया था. 

          शिक्षा और गुरु के लिए बलिदान देने वाली काली बाई को लोग आधुनिक एकलव्य कहते है. जिसने अंग्रेजो का विरोध किया था. 

      ” भील ” को वनपुत्र भी कहते हैँ. जनजाति के लोग भील भाषा बोलते हैं. भील, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के रूपमें मान्यता प्राप्त है,   

       अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी भील पूर्वजों के वंशज हैं.

          भील जनजाति राजस्थान राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है प्रथम में मीणा जाति आती है. भील जनजाति उदयपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, भीलवाड़ा और सिरोही इत्यादि जिले में निवास करती है.

      भील लोग साहसी, निडर, वीर और 

स्वामी भक्त एवं शपथ के पक्के होते है. ये लोग केसरियानाथ (ऋषभदेव) को चढी केसर का पानी पीकर कभी झूठ नही बोलते है.

      इन लोगोंकी एकता काबिले तारीफ करने योग्य हैँ. ढोल बजते या किलकारी सुनते ही ये लोग शस्त्र लेकर एक जगह एकत्रित हो जाते है.”फाईरे फाईरे” शब्द भीलो का रणघोष है.

      भीलों के घर को “कु” कहा जाता है.भीलो का मोहल्ला को “फलां” कहते हैँ और बहुत से झोपड़े मिलकर “पाल” कहलाते है. पाल का मुखिया पालवी कहलाता है.

       भीलों के गाँव का मुखिया “तदवी” और “वंशाओ” कहा जाता है जबकि भीलो की पंचायत का मुखिया गमेती कहलाता है.

     पांडा शब्द सुनकर भील खुश होते है जबकि कांडी (बाण चलाने वाला) शब्द को गाली मानते है. भीलों की गोत्र ही अटक कहलाती है.

     भीलों के कुलदेवता टोटम कहलाता है जिनकी ये लोग पूजा करते हैं. वैसे ये लोग हिंदूवादी होते है.

     वस्त्रों के आधार पर भीलो को दो वर्ग लंगोटिया भील एवं पोतीद्दा भील में बांटा जाता है. लंगोटिया भील परुष खोयतु कमर में लंगोटी एवं भील स्त्रियाँ कछावु घुटनों तक घाघरा पहनती है. 

     भील पुरुष प्रायः कुर्ता या अंगरखी तथा तंग धोती पहनते है. सिर पर पोत्या साफा बांधते है.

     भीलों के भोजन में मक्का की रोटी तथा प्याज का भात मुख्य होता है. ये महुआ के बनी शराब और ताड़ का रस पीने के शौक़ीन होते है.

      भील जाती की मुख्य आजीविका कृषि एवं वनोपज है. भील पहाडी भागो में वनों को जलाकर प्राप्त भूमि में कृषि करते है उसे चिमाता तथा मैदानी भागो में वनों को काटकर प्राप्त भूमि में कार्य करते है तो उसे द्जिया कहते है. भीलो में तलाक प्राय: मुखिया की उपस्थिति में होता है जिसे छेड़ा फाड़ना कहते है.

       राजस्थान में राणा पूंजा भील को याद किया जाता है , जिन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे. सन 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में राणा पूंजा ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए लगा दी थी. 

      उन्हें ” राणा ” की पदवी महाराणा द्वारा दी गई थी. तबसे राजा पूंजा भील ” राणा पूंजा भील ” कहलाये जाने लगे थे. वास्तव में वे सच्चे देश सेवक थे.   

        मेवाड़ और मेयो कॉलेज के राज चिन्ह पर भील योद्धा का चित्र अंकित है. बहुत से भील भारत में भील रेजिमेंट चाहते हैं. साथ ही साथ भील कई वर्षों से खुद का एक अलग राज्य भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं. 

         भील लोग हिंदू धर्म मे मानते हैँ. ये सूर्य अग्नि देव की पूजा करते हैँ. ये लोग होली, दीवाली, रक्षाबंधन आदि त्यौहार मनाते हैँ. तथा कुछ पारंपरिक त्योहार भी मनाते हैं, जिसमे अखातीज, दीवा ( हरियाली अमावस) नवमी, हवन माता की चालवानी, सावन माता का जतरा, दीवासा, नवाई, भगोरिया, गल, गर, धोबी, संजा, इंदल, दोहा आदि का समावेश हैँ. 

      भीलो के मनोरंजन का मुख्य साधन लोक गीत और नृत्य हैं. महिलाएं जन्म उत्सव पर नृत्य करती हैं, पारंपरिक भोली शैली में कुछ उत्सवों पर ढोल की थाप के साथ विवाह समारोह करती हैं. उनके नृत्यों में लाठी नृत्य, गवरी/राई, गैर, द्विचकी, हाथीमना, घुमरा, ढोल नृत्य, विवाह नृत्य, होली नृत्य, युद्ध नृत्य, भगोरिया नृत्य, दीपावली नृत्य और शिकार नृत्य शामिल हैं. 

        वाद्ययंत्रों में हारमोनियम , सारंगी , कुंडी, बाँसुरी,अपांग, खजरिया, तबला , जे हंझ , मंडल और थाली शामिल हैं.वे आम तौर पर स्थानीय उत्पादों से बने होते है.

      ——=== शिवसर्जन ===——

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