प्रशासन से आपको हक मांगना हो तो धरना देना पड़ता है. नारे बाजी करनी पडती है. हड़ताल करनी पडती है. चक्का जाम करना पड़ता है. पत्थरबाजी करनी पडती है. तोड़फोड़ करके, बसोको जलानी पड़ती है.
सार्वजनिक मालमत्ता को नुकशान करके अपना गुस्सा दिखाना पड़ता है ! वर्ना गूंगे , अंधे भ्रष्ट्र प्रवृति के सरकारी अधिकारी कुम्भकरण की तरह, पशु निगले हुए अजगर की तरह मृतप्राय अवस्था ने कुर्सी को चिपके हुए रहते है.
सूत्रों की माने तो कई प्रकार के कामोंके लिये ऐसे भ्रष्ट्र अधिकारी ओको रुपियों की बारिस बरसानी पडती है. इतना ही नहीं मनोरी बीच से पालघर बीच तक बने गेस्ट हाउस तथा हाई वे स्थित बने होटलो और बारो मे पार्टी देकर ललना की सप्लाई करनी पडती है, तब जाकर काम बनता है.
सरकारी नौकरीओ की सेटिंग आगेसे हो जाती है. पाने के लिये लाखों की रिश्वत देनी पडती है.सब चैन सिस्टिम से काम चलता है. ये बीज अंग्रेजो ने बोये थे. 200 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी मे काम पानेकी इच्छा रखने वालों को मुंह मांगी रिश्वत देनी पड़ती थी. उम्मीदवार को दो तीन साल मुफ्त मे काम करना पडता था.
इस बदी को दूर करने के लिये उम्मीदवार के गुणवत्ता के आधार पर क्यों लाइव लॉटरी निकाली नहीं जाती है ?
सरकारी नौकरी की भरती से लेकर उनके तबादला , पदोन्नति तक पैसों का खेल खेला जाता है. ये काम इतनी मुस्तेदी से चलता है की किसीको कानो कान पता तक नहीं चलता है. एक छुपी भ्रस्ट्र सिस्टिम चल रही है.
कई लोग नकली डिग्री लेकर काम पा लेते है और निवृत होने तक किसीको पता तक नहीं चलता.
हाल मे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के शैक्षणिक पात्रता के बारेमें विवाद उठा है. जिसमे श्री अमित शाह जी मोदी जी के स्नातक होनेकी डिग्री का प्रमाण दे रहे है. जबकि अन्य दो पुरानी क्लिप मे मोदीजी खुद जन मेदनी को सम्बोधित करते बोल रहे है की मेरी शिक्षा ज्यादा नहीं हो पाई है !
प्रश्न ये नहीं की प्रधानमंत्री का स्नातक होना जरुरी है ? यक्ष प्रश्न ये है की क्या क्लिप मे बताई गई डिग्री असली है ? नकली ? या मोदीजी सही बोल रहे थे या गलत ?
आज कोरोना महामारी ने सबकी उम्मीदों को चौपट कर दीया है. सिर्फ ट्रैन बंद है बाकी लगभग सब पूर्ववत काम चालू हो गया है. धीरे धीरे अब मरणांक कम होते जा रहे है ये सांत्वना की निशानी है. ये बात अलग हैं कि कोरोना पर किए जा रहे खर्चे को लोग संदिग्ध नजरो से देख रहे है.
लोग प्रशासन पर खुलेआम आरोप लगा रहे है. कोरोना महामारी मे कुछ मानवता वादी लोग अपनी जान की परवाह किए बिगर जन सेवा मे जुटे है तो कुछ गिधड प्रवृति के लोग लाशो मे भी कमाई ढूंढ रहे है.
कोरोना महामारी मे दारु की दुकान मे लाइन लगी हुई है. डॉक्टरों का धंदा तेजी मे है. किराणा चल रहा है. मोबाइल स्टोर चल रहे है. मगर टीवी, फ्रिज, बर्तन साड़ी की दुकानो ने बहुत कुछ गवाया है. शहर मे पानी पुरवठा , रोड, गटर की साफ सफाई सुचारु रुप से चल रही है. जिससे जनता को बडी राहत है.
अब ज्यादातर लोग बीना मास्क पहने घूम रहे है. सबको फिरसे ट्रैन चालू होनेका इंतजार है. गांव गए लोग धीरे धीरे वापस आ रहे है, उन्हें शहर ही रोजी रोटी मुहैया करा सकती है.
घर बैठे लोग बेसब्री से ट्रैन शुरू होने का इन्तेजार कर रहे है. कोरोना के शिवाय अन्य रोग कहा छुप गये कोई पता ही नहीं चल रहा है. लोगोंको डर है की आवाज उठाने मे पुलिस की कार्रवाई हो सकती हैं.
फिलहाल मेट्रो प्रकल्प , भाईंदर से थाना , कल्याण जल मार्ग प्रकल्प मे रूकावट सहित विकास के कई काम चल रहे है.
प्रशासन मे पारदर्शकता और आचरण मे सुधार से कुछ हद्द तक समस्या हल हो सकती है.
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