बाँके बिहारी मंदिर भारत में मथुरा जिले के वृंदावन धाम में बिहारीपुरा में स्थित भारत का प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. “वृन्दावन” भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले में एक महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक नगर है. यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है.
वृंदावन में करीब 5000 छोटे-बड़े मंदिर हैं. कुछ मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं वर्ष 1515 में महाप्रभु चैतन्य ने यहां के कई मंदिरों की खोज की थी. तब से लेकर अब तक कई मंदिर नष्ट हो चुके हैं और कई नए बने है.
बाँके बिहारी मंदिर का निर्माण सन 1864 में स्वामी हरिदासजी ने करवाया था. मान्यता के अनुसार इस मंदिर की प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. हर साल मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बिहारीजी का प्रकटोत्सव बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है.
मथुरा रेलवे स्टेशन से बांके बिहारी मंदिर करीब 13-14 कि.मी. की दुरी पर है. यहां तक पहुंचने में आपको सिर्फ 25 से 30 मिनट लगते हैं. वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर शहर के गोदा विहार क्षेत्र में बिहारी जी परिक्रमा मार्ग पर स्थित है. बांके बिहारी मंदिर का रास्ता वृंदावन की गलियों से होकर जाता है.
इस मंदिर का निर्माण सन 1864 में हुआ था तथा यह राजस्थानी वास्तुकला का एक नमूना है. इस मंदिर के मेहराब का मुख तथा यहाँ स्थित स्तंभ इस तीन मंजिला इमारत को अनोखी आकृति प्रदान करते हैं.
बांके बिहारी की यह छवि स्वामी हरिदास जी ने निधि वन में खोजी थी. स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे. इस मंदिर का 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था.
मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है.
वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी माना जाता है.
भगवान श्रीकृष्ण के भक्त स्वामी हरिदास जी वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर प्रभु को अपने संगीत से रिझाया करते थे. इनकी भक्ति से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते थे.
एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप हमें भी भगवान कृष्ण के दर्शन करवाएं. इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे और राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई. भगवान श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिदास जी ने कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं. आपको तो लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा. भक्त की बात सुनकर राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया.
बांके बिहारी के दर्शन करता है वह उन्हीं का हो जाता है. भगवान के दर्शन और पूजा करनेसे व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं . बांके बिहारी की पूजा में उनका श्रृंगार विधिवत किया जाता है. उन्हें भोगमें माखन, मिश्री, केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है.
भगवान को पर्दे में क्यों रखा जाता है ?
एक बार एक भक्त था. जो बाके बिहारी के दर्शन के लिए आया था. वह दर्शन करते-करते बहुत समय तक बाके बिहारी जी को देखता रहा. इसीलिए भगवान रिज गए और उन्ही के साथ उनके गांव चले गए. यहां पर मंदिर के स्वामी जी को जब पता चला तो वह उनके पीछे गए और बड़ी मुश्किल से बाके बिहारी को वापस लेकर आये. तब से बाके बिहारी के दर्शन के लिए झांकी दर्शन को व्यवस्था की हुई है. झांकी दर्शन में भगवान के सामने थोड़ी थोड़ी देर में पड़दे डाले जाते है, ताकि कोई निरंतर उनको देख ना सके.
बांके बिहारी की मूर्ति कैसे प्रकट हुई ? मान्यता है, की बाके बिहारी जी की मूर्ति को किसी ने बनाया नही है, यह प्रतिमा अपने आप उत्पन्न हुई है. कहते है, की श्री हरिदास जी के अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर बाके बिहारी जी वृंदावन प्रकट हुए थे.
बांके बिहारी मंदिर में भगवान की काले रंग की मूर्ति है, जो श्री हरिदास जी ने खोजी थी. मान्यता है, की इस मूर्ति में राधा और कृष्ण दोनो कि ही छवी है. इसीलिए यहां पे आके जो भक्त दर्शन करते है, उनका जीवन सफल हो जाता है.
यहां पर हर वर्ष मार्गशीष की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में भगवान बाके बिहारी जी का प्रगटोत्स्व मनाया जाता है. इस मंदिर में साल में सिर्फ एक बार ही बाके बिहारी जी के चरणो के दर्शन होते है. वह दिन होता है, अक्षय तृतीया, जो वैशक मास की तृतीया पे आता है. भगवान के चरणो के दर्शन अत्यंत शुभ माने जाते है.
दर्शन का समय :
मथुरा में ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के कपाट ग्रीष्मकालीन समय मे सुबह 7:45 पर श्रद्धालुओं के लिए खुलते है. उसके बाद 7:55 पर भक्तों द्वारा बांके बिहारी की श्रृंगार आरती होती है. फिर दोपहर 11 बजे बांके बिहारी को राज भोज लगाया जाता है, और आधे घंटे बाद यानी 11:30 बजे फिर से ठाकुर जी के दर्शन कराया जाता है. 11:55 पर राजभोग आरती के बाद बांके बिहारी के पट बंद कर दिये जाते है.
शाम के समय बांके बिहारी के दर्शन करने के लिए भक्तों जनों को 5:30 बजे मंदिर में आना होता है. कपाट खुलने के बाद ठाकुर जी के दर्शन कराया जाता है और 8:30 बजे बिहारी को शयन भोग लगाया जाता है. इसके बाद भक्त फिर से 9:05 बजे दर्शन कर सकते है, फिर 9:25 पर बांके बिहारी की शयन आरती की जाती है, उसके बाद पट को बंद कर दिया जाता है.
वहां तक कैसे पहुचे ?
सड़क मार्ग द्वारा :
राष्ट्रीय महामार्ग से वृंदावन पहुंचा जा सकता है. मथुरा वृंदावन से केवल 12 किमी दूर है. मथुरा, वृंदावन के लिए बहुत सारी स्थानीय परिवहन बसें, टैक्सी और रिक्शा चलती हैं.
ट्रेन मार्ग से :
वृंदावन का अपना कोई रेलहेड नहीं है, लेकिन मथुरा एक है जो भारत के कई शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, आगरा, ग्वालियर, कोलकाता, इंदौर और हैदराबाद से जोड़ता है. मथुरा का रेलवे स्टेशन वृंदावन से लगभग 14 किमी दूर है. पर्यटक मथुरा के रेलवे स्टेशन से किराए की टैक्सी या बस से वृंदावन के लिए जा सकते हैं.
हवाईजहाज से :
वृंदावन या मथुरा में हवाई अड्डे की कोई सुविधा नहीं है. भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों से पर्यटक दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे उतर सकते हैं, जो वृंदावन से लगभग 200 किमी दूर है.