इस वक्त भारत सहित विश्व में तेजी से फैलने वाला कोई रोग हैं तो वह
डायबिटीज अर्थात मधुमेह हैं. दुनिया के रोगी परेशान हैं मगर विश्व के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक चुप हैं. क्या इनका दवाई कंपनी ओकी माफिया लॉबी संघठन द्वारा जेब गरम किया गया हैं ?
कोविद = 19 महामारी के समय भारत सहित विश्व के होनहार डॉक्टरों – वैज्ञानिकों ने कोविद की वैक्सीन ढूंढ़ निकाली तो क्या डायबिटीज जैसी बीमारी के लिए ये कोई कारगर उपाय नहीं ढूंढ़ सकते ? आज कैंसर से ज्यादा पीड़ित लोग मधुमेह से हैं. विश्व भर की सरकारें जागे और युद्ध के स्तर पर काम होना आवश्यक हैं. वैज्ञानिक कामयाब रहे तो नहीं रहेगी इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत.
आपको जानकर हैरानी होंगी कि
दुनिया में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या तकरीबन 537 मिलियन है. यह संख्या 2030 तक 643 मिलियन और 2045 तक 783 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है. मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या में सबसे ज़्यादा बढ़ोतरी विकासशील देशों में हो रही है.
आपको पता हैं मधुमेह से होने वाली मौतें दुनिया भर में मृत्यु का आठवां प्रमुख कारण हैं. मधुमेह के तीन प्रकार हैं, टाइप 1, टाइप 2, और गर्भावधि मधुमेह. टाइप 2 मधुमेह सबसे आम प्रकार है और सभी मामलों का 90 से 95% हिस्सा है.
मधुमेह से बचने के लिए संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गति विधि करनी चाहिए. मधुमेह के इलाज के लिए आहार, दवा, नियमित जांच, और उपचार किया जाना चाहिए. वैसे
मधुमेह से होने वाली 80% मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं.
भारत में डायबिटीज से पीड़ित मरीजों की संख्या 2023 में 10 करोड़ से ज्यादा है. सन 2019 में यह संख्या लगभग सात करोड़ की थी. हाल ही में ब्रिटेनके मेडिकल जर्नल लांसेटमें भारत में डायबिटीज की स्थिति से जुड़ा शोध छपा है.
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट में छपे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के शोध के मुताबिक कुछ राज्यों में डायबिटीज के मामले स्थिर हैं, तो वहीं कुछ राज्यों में मामले तेजी से बढ़े हैं. इस शोध में बताया गया है कि जिन राज्यों में डायबिटीज के मामलों में तेजी आई है, वहां इस बीमारी को रोकने के लिए फुर्ती से कदम उठाने होंगे.
शोध में कहा गया है कि देश की 15.3 फीसदी या लगभग 13.6 करोड़ आबादी प्री-डायबिटीक हैं, जबकि देश की 11.4 फीसदी आबादी डायबिटीक है. यानी अगले कुछ सालों में ऐसे लोगों की डायबिटीज की चपेट में आने की आशंका है. शोध में यह भी कहा गया है कि 35 प्रतिशत से अधिक आबादी हाइपरटेंशन और हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकार है. वहीं मोटापे की बात करें, तो शोध कहता है कि देश की 28.6 % आबादी इससे ग्रस्त है.
डायबिटीज के दो प्रकार हैं, टाइप-1 और टाइप-2.
टाइप = 1 :
आनुवांशिक होता है. यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है, लेकिन इसके मामले बहुत ही कम होते हैं.
टाइप = 2 :
डायबिटीज ज्यादा जीवनशैली से जुड़ा है और दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है. लेकिन अगर प्री-डायबिटीक की बात की जाए, तो वह एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है. इसमें शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है, लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि उसे टाइप-2 डायबिटीज की श्रेणी में रखा जा सके.
शोध में कहा गया है कि गोवा में 26.4 फीसदी, पुदुचेरी (26.3), केरल (25.5) और चंडीगढ़ (20.4 फीसदी) में अधिकतम प्रसार देखा गया. शोध में यह भी बताया गया कि कम प्रसार वाले राज्य यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में आने वाले कुछ सालों में “डायबिटीज विस्फोट” हो सकता है.
बढ़ जाएंगे डायबिटीज के मरीज :
अध्ययन की प्रमुख लेखक डॉक्टर आरएम अंजना के मुताबिक, “जब प्री-डायबिटीज के प्रसार की बात आती है, तो लगभग ग्रामीण और शहरी विभाजन नहीं दिखाई देता है. इसके अलावा प्री-डायबिटीज का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया, जहां डायबिटीज का मौजूदा प्रसार कम था. यह एक टिक-टिक करने वाले टाइम बम जैसा है.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर आपको प्री-डायबिटीज है, तो हमारी आबादी में डायबिटीज में परिवर्तन बहुत-बहुत तेजी से होता है. प्री-डायबिटीज वाले 60 प्रतिशत से अधिक लोग अगले पांच वर्षों में डायबिटीज के शिकार हो जाएंगे. इसके अलावा भारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. इसलिए अगर डायबिटीज का प्रसार 0.5 से 1 प्रतिशत भी बढ़ जाता है, तो असल संख्या बहुत बड़ी हो जाएगी.”
इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 31 राज्यों में एक लाख से अधिक शहरी और ग्रामीण लोगों को सर्वे में शामिल किया. सर्वे में शामिल लोगों की 18 अक्टूबर, 2008 और 17 सितंबर, 2020 के बीच जांच की गई. सर्वे में शामिल लोगों की उम्र 20 वर्ष या उससे अधिक थी. और उसके बाद इस शोध के नतीजे सामने आए.
डायबिटीज टाइप =1.
इसमें शरीर इंसुलिन नहीं बनाता है. इंसुलिन खाने से मिलने वाले ग्लूकोज को तोड़ता है और ऊर्जा के रूप से कोशिकाओं तक पहुंचाता है. लेकिन टाइप = 1. डायबिटीज के पीड़ितों को बचपन से इंसुलिन लेना पड़ता है.
टाइप-2
यह चुपचाप आता है. बढ़ती उम्र और बेहद आरामदायक जीवनशैली के चलते इंसान को यह बीमारी लगती है. इसमें शरीर शुगर को ऊर्जा में बदलने की रफ्तार धीमी या बंद कर देता है. और एक बार यह लगी तो फिर इससे पार पाना आसान नहीं होता.
टाइप = 2 के शुरूआती संकेत :
बार बार तेज प्यास लगना. मुंह में सूखापन रहना. ज्यादा भूख लगना और ज्यादा पानी न पीने के बावजूद बार बार पेशाब लगना.
शारीरिक तकलीफ, शुरुआती संकेत मिलने पर अगर कोई न संभले तो ज्यादा मुश्किल होने लगती है. डायबिटीज के चलते सिर में दर्द रहना, नजर में धुंधलापन सा आना और बेवजह थकने जैसी समस्यायें सामने आती हैं.
नींद न आना
शुगर का असर नींद पर भी पड़ता है. डायबिटीज के रोगियों को बहुत गहरी नींद नहीं आती है. उनके हाथ या पैरों में झनझनाहट सी रहती है.
सेक्स में परेशानी
डायबिटीज के 30 फीसदी रोगियों को सेक्स में परेशानी भी होने लगी है. इसके पीड़ित महिला और पुरुष को आर्गेज्म में परेशानी होने लगती है.
गंभीर संकेत
कुछ मामलों के टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण बिल्कुल नजर नहीं आते. उनमें दूसरे किस्म के लक्षण नजर आते हैं, जैसे फुंसी, फोड़े या कटे का घाव बहुत देर से भरना. खुजली होना, मूत्र नलिका में इंफेक्शन होना और जननांगों के पास जांघों में खुजली होना. पिंडलियों में दर्द भी रहता है.
किसे ज्यादा खतरा
मोटे और खासकर मोटी कमर वाले लोगों को, आलसियों को, सुस्त जीवनशैली के साथ सिगरेट पीने वालों को, बहुत ज्यादा लाल मीट व मीठा खाने वालों डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा होता है.
उम्र और टाइप = 2 :
डाबिटीज का रिश्ता आम तौर पर 45 साल के बाद इसका पता चलता है. लेकिन भारत समेत कई देशों में बदलती जीवनशैली के साथ 25-30 साल के युवाओं को डायबिटीज की शिकायत होने लगी है. लेकिन कड़ी शारीरिक मेहनत करने वाले और संयमित ढंग से खाना खाने वाले बुजुर्गों में कोई डायबिटीज नहीं दिखता.
बैक्टीरिया की भी भूमिका :
ताजा शोध में पता चला है कि बड़ी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया भी टाइप-2 डायबिटीज में भूमिका निभाते हैं. आंत में हजारों किस्म के बैक्टीरिया होते हैं, इनमें ब्लाउटिया, सेरेराटिया और एकेरमानसिया भी शामिल हैं. लेकिन डायबिटीज के रोगियों में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है. वैज्ञानिकों को शक है कि इनकी बहुत ज्यादा संख्या के चलते मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है
आईडीएफ डायबिटीज एटलस (2021) की रिपोर्ट बताती है कि 10.5% वयस्क आबादी (20-79 वर्ष) को मधुमेह है, जिनमें से लगभग आधे लोगों को पता ही नहीं है कि वे इस बीमारी से पीड़ित हैं। आईडीएफ के अनुमानों के अनुसार, 2045 तक 8 में से 1 वयस्क, अर्थात् लगभग 783 मिलियन, मधुमेह से पीड़ित होगा, जो कि 46% की वृद्धि है.
दुनियाभर में हर साल डायबिटीज़ से दस लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है और यह बीमारी किसी को कभी भी हो सकती है. यह एक ऐसी बीमारी के तौर पर उभरी है जो बेहद तेज़ी से बच्चों से लेकर युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है.
दरअसल, यह बीमारी तब होती है जब शरीर के अंदर रक्त में ग्लूकोज या शुगरकी मात्रा जमा होती है. इससे पीड़ित लोगों को हार्ट अटैक (दिल का दौरा) और हार्ट स्ट्रोक (हृदयाघात) हो सकता है. इसके साथ-साथ डायबिटीज़ से अंधापन, किडनी फेल और पैरों के निष्क्रिय होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
शक होने पर क्या करें
खुद टोटके करने के बजाए डॉक्टर से परामर्श करें और नियमित अंतराल में शुगर टेस्ट कराएं. डायबिटीज से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है, कसरत या शारीरिक मेहनत. अगर आपका शरीर थकेगा तो शुगर लेवल नीचे गिरेगा और नींद भी अच्छी आएगी. ( समाप्त )