“महत्वाकांक्षी तीन पेड़ो की कहानी”

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एक घने जंगल मे तीन वृक्ष थे. वे तीनों वृक्ष अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे. एक दिन पहले वृक्ष ने कहा कि मैं खजाना रखने वाला बड़ा बक्सा बनना चाहता हूँ. मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएँ. मुझे बड़े हुनर और परिश्रम से सजाया जाय, नक्काशीदार बेल-बूटे बनाए जाएँ, सारी दुनिया मेरी खूबसूरती को निहारे, ऐसा मेरा सपना है.

इसपर दूसरे वृक्ष ने कहा कि मैं तो एक विराट जलयान बनना चाहता हूँ. ताकि बड़े बड़े राजा और महाराजा मेरे पर सवार हों और दूर देश की यात्राएं करें, मैं समंदर की लहरो में हिलोरें लूं, मेरे भीतर सभी सुरक्षितता महसूस करें और सबका मेरे मे विश्वास हो.

इसपर तीसरा वृक्ष बोला मैं तो इस जंगल का सबसे बड़ा और ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूँ. लोग दूर से ही मुझे देखकर पहचान लें, वे मुझे देखकर ईश्वर का स्मरण करें, और मेरी शाखाएँ स्वर्ग तक पहुंचे मैं संसार का सुंदर वृक्ष ही बनना चाहता हूँ.

इस तरह के सपने देखते-देखते कुछ समय बीत गया. एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आए. उनमें से जब एक ने पहले वृक्ष को देखा तो अपने साथियों से कहा कि ये जबरदस्त वृक्ष है इसे मे बढ़ई (carpenter) को बेचूगा. बहुत सारे पैसे मिलेंगे. यह कहकर उसने वो पहले वृक्ष को काट दिया. वो मन ही मन मुस्कुराया. वो खुश था, उसे यकीन था कि बढ़ई (carpenter) उससे खजाने का बक्सा बनाएगा.

दूसरे वृक्ष को देखकर लकड़हारे ने कहा कि यह वृक्ष भी लंबा और मजबूत है. मैं इसे बड़े जहाज बनाने वालों को बेचूंगा. दूसरा वृक्ष भी खुश था, क्योंकि उसका स्वपना भी पुरा होने वाला था.

अब तीसरे वृक्ष की बारी थी. जब

लकड़हारा तीसरे वृक्ष के पास आए तो वह भयभीत हो गया. वह जानता था कि अगर उसे काट दिया गया तो उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा. लकड़हारा बोला कि इस वृक्ष से मुझे कोई खास

चीज नहीं बनानी है इसलिए इसे मैं ले लेता हूं. और उसने तीसरे वृक्ष को काट दिया.

पहले वृक्षकी लकड़ी को एक बढ़ई (carpenter) ने खरीद लिया और उस ने पशुओं को चारा खिलानेवाला एक

कठौता बनाया. कठौते को एक पशुगृह में रखा गया. उसमें भूसा भर दिया गया. बेचारे पहले वृक्ष ने तो इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी.

दूसरे वृक्ष को काटकर उससे एक मछली पकड़ने वाली छोटी नौका बना दी गई. भव्य जलयान बनकर राजा महाराजाओं को लाने-लेजाने का उसका सपना भी चूर-चूर हो गया.

तीसरे वृक्ष को लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया गया और टुकड़ों को अंधेरी कोठरी में रखकर लोग भूल गए.

एक दिन उस पशुशाला में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया और स्त्री ने वहां एक बच्चे को जन्म दिया. वे बच्चे को चारा खिलानेवाले कठौते में सुलाने लगे. कठौता अब पालने के काम आने लगा. पहले वृक्ष ने स्वयं को धन्य माना कि अब वह संसार की सबसे मूल्यवान निधि अर्थात एक शिशु को आसरा दे रहा था.

समय बीतता गया और सालों बाद कुछ नवयुवक दूसरे वृक्ष से बनाई गई नौका में बैठकर मछली पकड़ने के लिए गए, उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा और नौका तथा उसमें बैठे युवकों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा. एक युवक नौका में बिंदास्त सो रहा था. उसके साथियों ने उसे जगाया और तूफान के बारे में बताया. वह युवक उठा और उसने नौका में खड़े होकर उफनते समुद्र और झंझावाती हवाओं से प्रार्थना की कि शांत हो जाओ, समुद्र देवता और तूफान थम गया.यह देखकर दूसरे वृक्ष को लगा कि उसने महात्मा के रूपमें दुनिया के एक परम ऐश्वर्यशाली सम्राट को सागर पार कराया है.

तीसरे वृक्ष के पास भी एक दिन कुछ लोग आये और उन्होंने उसके दो टुकड़ों को जोड़कर एक घायल आदमी के ऊपर लाद दिया. वो ठोकर खाते, गिरते संभालते रहा, मगर भीड़ उस आदमी का सड़क पर तमाशा देखती रही. भीड़ अपमान करती रही. वे जब रुके तब सैनिकों ने लकड़ी के सलीब पर उस आदमी के हाथों-पैरों में कीलें ठोंककर उसे पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया.

दो दिनों के बाद रविवार को तीसरे वृक्ष को इसका बोध हुआ कि पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि ईसा मसीह को उसपर सूली पर चढ़ाया गया था.

कहानी का निष्कर्ष :

सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब हमें यह समझना चाहिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा होगा. यदि आप उसपर यकीन बरक़रार रखेंगे तो वह आपको नियामतों से नवाजेगा. प्रत्येक वृक्ष को वह मिल गया जिसकी उसने ख्वाहिश की थी, लेकिन उस रूप में नहीं मिला जैसा वे चाहते थे. हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है या ईश्वर का मार्ग हमारा मार्ग है या नही लेकिन उसका मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है.

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