श्रीमद रायचंद्र भाई रवजीभाई मेहता ये, शुभ नाम आपने शायद ही कभी सुना होगा. ये वो हस्ती है जिसे कई लोग जैनों का 25 वाँ तीर्थंकर कहते है. आप सबको पता ही है की भगवान वर्धमान महावीर जैनों के 24 वें तीर्थंकर थे.
श्रीमद राजचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले कई जन्मों की बातें याद थीं और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी लेकिन वे परंपरागत जैन धर्म के मुनि के तौर पर नहीं बल्कि आत्म साक्षात्कार का ज्ञान देने वाले संत के रूप में जाने जाते हैं.
जन्म के बाद उनका नाम लक्ष्मीनंदन रखा गया था जिसे चार साल की उम्र में बदलकर उनके पिता ने रायचंद कर दिया, बाद में वे खुद को राजचंद्र कहने लगे जो रायचंद का संस्कृत रूप है.
केवल आठ साल की उम्र में, उन्होंने कविताओं की रचना शुरू कर दी थी. नौ साल की उम्र होने तक उन्होंने रामायण और महाभारत पर पद्य सार की रचना कर दी थी. महज 10 की आयु तक सार्वजनिक मंच पर बोलना शुरू कर दियाथा. अपनी 11 वर्ष की आयु में उन्होंने बुद्धिप्रकाश जैसे अखबारों और पत्रिकाओं में लेख लिखना शुरू करके निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार जीते थे.
उन्होंने अपनी 12 साल की उम्र में ” एक घड़ी ” पर 300 श्लोक कविता लिखी थी. सन 1880 में वह राजकोट में अंग्रेजी का अध्ययन करने गए थे , सन 1882 तक, उन्होंने कई विषयों का अध्ययन किया और महारत हासिल की थी. वह एक युवा कवि के रूप में लोकप्रिय हुए और इसके कारण उन्हें कवि के रूप में संदर्भित किया गया.
रायचंद्र ने करीब 13 साल की उम्र में अपने पिता की दुकान में भाग लेना शुरू कर दिया था. उन्होंने दुकान का प्रबंधन करते समय श्री राम और श्री कृष्ण जी के जीवन पर कई कविताओं की रचना कर डाली थी.
महात्मा गांधीजी लिखित, ” सत्य ना प्रयोग ” जीवनी मे उल्लेख मिलता है की गांधीजी और श्रीमद राजचंद्र जी की मुलाक़ात सन 1891 में हुई थी और वे उनके शास्त्रों के ज्ञान और गहरी समझ से बहुत प्रभावित हुए थे.
गांधी के जीवन में एक ऐसा दौर आया कि वे ईसाई और इस्लाम मत के जानकारों के करीब आए, उनके मन में धर्म परिर्वतन का ख़याल भी आया लेकिन उन्होंने सोचा कि पहले अपने धर्म को ठीक से समझने के बाद ही वे ऐसा कोई क़दम उठाएँगे, इस दौर में उनकी अध्यात्मिक जिज्ञासों के उत्तर श्रीमद राजचंद्र दिया करते थे.
गांधीजी जब अध्यात्मिक और वैचारिक विचारों की द्विधाओ से गुज़र रहे थे तब श्रीमद राजचंद्र के शब्दों से उन्हें मार्ग मिला था. गांधीजी ने स्वयं लिखा है, की ” उन्होंने मुझे समझाया कि मैं जिस तरह के धार्मिक विचार अपना सकता हूँ वो हिंदू धर्म के भीतर मौजूद हैं,”
महात्मा गांधीजी ने अपने एक मित्र हेनरी पॉलक को राजचंद्र के बारे में लिखा था, ” मैं रायचंद को अपने समय का सर्वश्रेष्ठ भारतीय मानता हूं.
ता : 20 अक्तूबर 1894 को गांधी ने अपने प्रिय मित्र रायचंद भाई को एक लंबा पत्र लिखा था जिसमें अध्यात्मिक जिज्ञासा से भरे 27 सवाल किये थे, जैसे, आत्मा क्या है ? क्या कृष्ण भक्ति से मोक्ष मिल सकता है ? ईसायत के बारे में आपकी राय क्या है ?
श्रीमद रायचन्दभाई मेहता जी का जन्म ता : 9 नवम्बर 1867 के दिन गुजरात के मोरबी के नजदीक एक गांव मे जौहरी परिवार में हुआ था. और महज 33 साल की कम उम्र मे 9 अप्रेल सन 1901 के दिन राजकोट मे उनका निधन हो गया था. गांधीजी ने इसी वर्ष से ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था.
महात्मा गांधी जी द्वारा लिखी अपनी मूल गुजराती आत्मकथा ” सत्य ना प्रयोग ” में इनका विभिन्न स्थानों पर उल्लेख किया हैं. गांधीजी ने लिखा कि ” मेरे जीवन मे गहरा प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं (1) रायचंद्र भाई अपने सजीव संपर्क से (2) टॉलस्टॉय ” वैकुंठ तेरे हृदय में है ” नामक अपनी पुस्तक से और (3) रस्किन ” अन्टू दिस लास्ट सर्वोदय ” नामक पुस्तक से.
श्रीमद रायचन्दभाई रावजीभाई मेहता, एक जैन कवि, दार्शनिक और महा ज्ञानी विद्वान पुरुष थे. उन्हें खास करके उनके जैनधर्म शिक्षण और महात्मा गांधीजी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है. उनके द्वारा लिखी गई किताब ” आत्म सिद्धि ” और ” भावना बोध ” का आज भी लाखों लोग श्रद्धा से पठन करते है. लोग उन्हें परम कृपालु देव कहते है.
मोहनदास करमचंद गांधी जब प्रथम भारत में पधारे उसी दिन ता : 6 जुलाई 1891 को बंबई में कवि रायचंदभाई से उनकी मुलाकात हुई थी. उस समय गांधी महज 22 साल के नौजवान थे जो विलायत से बैरिस्टरी की डिग्री लेकर लौटे थे.उस समय श्रीमद् राजचंद्र की उम्र 24 साल की थी.
दार्शनिक महात्मा श्रीमद रायचंद की शादी 20 वर्ष की उम्र में ज़बकबेन से हुई थी. जो उस जमाने के हिसाब से काफ़ी देर से हुई थी, उनके चार बच्चे भी हुए लेकिन श्रीमद राजचंद्र महेता जी का पूरा ध्यान आत्मा परमात्मा के रहस्यों को समझने में ही लगा रहा.
श्रीमद राजचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले कई जन्मों की बातें याद थीं और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी. जिन्हें गांधी प्यार से रायचंद भाई कहते थे. अपने अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी सभी अंगरेज़ी जानने वालों को टॉल्सटॉय की किताबें और गुजराती भाइयों को रायचंद भाई की ” आत्म सिद्धि ” पढ़ने की सलाह देते थे.
श्रीमद रायचंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले कई जन्मों की बातें याद थीं और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी. संत के सानिध्य मे रहकर मनुष्य ज्ञानी बन जाता है, और मोक्ष को प्राप्त होता है.
इसीलिए संत कबीर जी कह गये है कि,…..
संगत कीजै साधु की, कभी न निष्फल होय.
लोहा पारस परस ते, सो भी कंचन (सोना ) होय.
—–=====शिवसर्जन ====——