“महान आविष्कारक लुई पास्चर.”| Louis Pasteur

louis pasteur

          दुनिया में अधिकांश लोग अपने लिए जीते है. मगर कुछ लोग ऐसे भी होते है जो मानवता वादी होते है, और अन्यों की भलाई के लिए अपना जीवन व्यतीत कर देते है. ऐसे ही मानवता की महक फैलाने वाले महान सेवक लुई पाश्चर ( LOUIS PASTEUR ) की बात आप लोगोंसे शेयर करनी है. 

     लुई पाश्चर (LOUIS PASTEUR) का जन्म ता : 27 दिसम्बर 1822 के दिन फ्रांस के डोल स्थित नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां हुआ था. लुई पाश्चर ने अरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश लिया किन्तु वहा अध्यापको द्वारा पढाई गयी विद्या उनके समझ के बाहर थी. इसीलिए उन्हें मंदबुद्धि तथा बुद्धू कहकर चिढाया जाता था. 

      लुई पास्चर के सम्मान मे ही दूध को 60 डीग्री सेल्सीयस तक गर्म कर के कीटाणु रहित करने की प्रक्रिया को “पास्चराइजेशन” कहा जाता है. 

       लुई उच्च शिक्षा के लिए पेरिस गये और वही पर वेसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे. उनकी विशेष रूचि रसायनशास्त्र में थी. वे रसायन शास्त्र के विद्वान डा.ड्यूमा से विशेष प्रभावित थे.

     लुई ने इकोलनारमेल कॉलेज से उपाधि ग्रहण की और 26 वर्ष की उम्र में रसायन की बजाय भौतिक विज्ञान पढाना आरम्भ कर दिया और विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गये.

    उन्होंने इमली के अम्ल से अंगूर अम्ल बनाया किन्तु उनकी महत्वपूर्ण खोज विषैले जंतुओ द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव के जीवन की रक्षा करनी थी.” उन्होंने कुत्ते के काटने के बाद उसके उपचार के लिए रेबीज वैक्सिन बनाया. 

        लुई बचपन से लुई दयालु प्रकृति के थे. बचपन में अपने गांव के आठ लोगोंको पागल भेड़िए के काटने से मरते हुए देखा था. उनकी यहीं दर्दभरी चीखों ने उसे रेबीज वैक्सिन बनानेके लिए प्रेरित किया. 

      कॉलेज की पढ़ाई पुरी होनेके बाद उन्होंने लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य किया. सन 1849 में दिजोन के विद्यालय में भौतिकी पढ़ाना शुरु किया. एक वर्ष बाद वे स्ट्रॉसबर्ग विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान का प्राध्यापक बन गये. 

     विश्वविद्यालय अध्यक्ष की एक कन्या मेरी से मुलाक़ात के बाद उन्होंने मेरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. शुरु में प्रस्ताव ठुकरा ने के बाद आखिर मेरी ने लुई से शादी कर दी.   एक दिन शराब बनाने वालोका एक समूह लुई पास्चर से मिलने आया. उन्होने पूछा कि हर वर्ष हमारी शराब खट्टी हो जाती है. इसका क्या कारण हो सकता है ?

       इसपर लुई पास्चर ने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा का परिक्षण किया और बताया कि जीवाणु नामक सूक्ष्म नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं.और संशोधन किया कि यदि मदिरा को 20 से 30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड डिग्री पर गरम किया जाय तो ये जीवाणु मर जाते हैं. और ये ताप उबलने के ताप से नीचा है, अतः इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

     बाद में लुई ने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया. और यही दूध को

 ” पास्चरित दूध ” कहा जाता है. उनका परिक्षण आगे बढ़ता गया उनको ज्ञात हुआ कि यदि ये सूक्ष्म जीवाणु खाद्यों एवं द्रव्यों में होते हैं , तो ये जीवित जंतु लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं. जो लोगोंको बीमार कर सकते है.  

       इत्तफाक से उन दिनों फ्रांस की मुर्गियों में ” चूजों का हैजा ” नामक एक भयंकर महामारी फैली थी. लाखों मुर्गी मर रही थी. तब मुर्गी पालने वाले फार्म वाले लुई से मिले और मदद की गुहार लगाई. लुई ने खोज शुरु की. उनको मुर्गियों के शरीर में रक्त में इधर-उधर जीवाणु तैरते दिखाई दिए.

        लुई ने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ मुर्गियों के देह में पहुँचाया. इसका परिणाम ये आया कि वैक्सीन लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ. लुई ने टीका लगाने की विधि का आविष्कार नहीं किया पर मुर्गियों के हैजे के जीवाणुओं का पता लगा लिया.

        आगे चलकर लुई ने गायों और भेड़ों के ऐन्थ्रैक्स नामक रोग के लिए बैक्सीन बनायी, पर उनमें रोग हो जाने के बाद आप उन्हें अच्छा नहीं कर सके. किन्तु रोग को होने से रोकने में आपको सफलता मिल गई. आपने भेड़ों के दुर्बल किए हुए ऐन्थ्रैक्स जीवाणुओं की सुई लगाई. इससे वे कभी बीमार नहीं पड़ते थे और उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नही होता था. लुई ने फ्रांस में हजारों भेड़ों को यह सुई लगाई. इससे फ्रांस के गौ एवं भेड़ उद्योग की रक्षा हुई.

     उसके बाद लुई ने विषैले वाइरस वाले भयानक कुत्तों पर काम करना शुरु किया. पहले विषैले वाइरस को दुर्बल बनाया, और फिर उससे इस वाइरस का टीका तैयार किया. इस टीके को आपने एक स्वस्थ कुत्ते की देह में पहुँचाया. जो सफल हुआ. और लुई की यह महत्वपूर्ण खोज रही. पर लुई ने अभी मानव पर इसका प्रयोग नहीं किया था.

  सन 1885 की बात है. लुई पाश्चर अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे. एक फ्रांसीसी महिला अपने नौ वर्षीय पुत्र जोजेफ को लेकर उनके पास पहुँची. उस बच्चे को दो दिन पहले एक पागल कुत्ते ने काटा था. पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं जो रैबीज वाइरस कहलाते हैं. यदि कुछ नहीं किया जाता, तो नौ वर्षीय जोजेफ कुछ समय बाद जलसंत्रास (hydrofobia) से तड़प तड़प कर मर जाता था. 

       इस दौरान लुई बहुत वर्षों से इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि जलसंत्रास को कैसे रोका जाए ? आप इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे. अब यक्ष प्रश्न था कि बालक जोजेफ को रेबीज वैक्सिन की सुईयाँ लगाई जाय या नहीं. इससे बालक की मृत्यु की सम्भावना भी थी.

     लुई ने सोचा यदि मै सुई नहीं लगाता हूं तो भी उसकी मृत्यु निश्चित थी. लुई ने तत्काल निर्णय लिया और बालक का उपचार करना शुरू कर दिया. आप दस दिन तक बालक जोजेफ के वैक्सीन की बढ़ती मात्रा की सुइयाँ लगाते रहे और चमत्कार हुआ. और बालक जोजेफ को जलसंत्रास नही हुआ.

       बालक धीरे धीरे अच्छा होने लगा. और इतिहास में प्रथम बार मानव को जलसंत्रास से बचाने के लिए सुई लगाई गई. और पुरी मानव जाति को अनोखा उपहार दिया. लुई के देशवासियों ने उन्हें सम्मान एवं पदक प्रदान करके नवाजा. इससे उनकी कीर्ति और ऐश्वर्य से आप मे कोई परिवर्तन नहीं आया. आप आजीवन सदैव रोगों को रोकने के लिए उपायों की खोज में लगे रहे. लुई ने पागल कुत्तो के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिए विशेष कार्य किया. और लुई पाश्चर एक सामान्य मानव से महामानव के रूपमें प्रसिद्ध हुए. 

       विश्व में हर साल रेबीज दिवस 28 सितंबर 1895 के दिन मनाया जाता है. 

पहली बार विश्व रेबीज दिवस ता : 28 सितंबर 2007 के दिन मनाया गया था. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में हर साल 20,000 रेबीज से मौतें होती हैं. 

      रेबीज टिके की शोध करके लुई ने स्वास्थ्य और आधुनिक चिकित्सा की नींव रखी थी. “रेबीज” और “एंथ्रेक्स” के टीकों के माध्यम से विश्व में लाखों लोगों की जान बचाई जाती है. 

         फ्रांसीसी माइक्रो बॉयोलॉजिस्ट डॉ. लुई पॉश्चर ने 6 जुलाई 1885 में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली वायरस बीमारियों के लिए दुनिया का पहला टीका (रेबीज) को विकसित किया था. कुत्ता काटने के 20 दिन बाद में रेबीज हो सकता है. इससे हमें बचने के लिए एंटी रैबीज वैक्सीन लगाना जरुरी है. 

     कुत्ता अगर पहले से रेबीज से ग्रस्त है, तो उसका काटना ही नहीं बल्कि चाटना भी हमारे लिए खतरनाक हो सकता है. ऐसा नहीं है कि रेबीज सिर्फ आवारा कुत्तों से ही फैलता है, अगर अपने पालतू कुत्ते को टीके नहीं लगाया हैं, तो घर के कुत्ते से भी यह बीमारी फैल सकती है.

      पशु चिकित्सकों का कहना है कि रेबीज पीडि़त कुत्ता 10 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रहता. इसलिए ऐसे कुत्ते के किसी इंसान को काटने पर उस कुत्ते पर नजर रखनी चाहिए. कुत्ते के व्यवहार में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है तो यह माना जाता है कि वह रेबीज वायरस से मुक्त है.

        विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई कुत्ता किसी इंसान को काट लेता है तो उसे पहला इंजेक्शन 24 घंटे के भीतर ले लेना चाहिए. अगर काटने के तीन दिन के अंदर कुत्ते की मौत होती है तो ऐसे में माना जाता है कि कुत्ते को रेबीज था. वहीं कुत्ता अगर दस दिन के बाद भी नहीं मरता है, तो ऐसे में रेबीज का रिस्क कम हो जाता है.

      तारीख : 23 जून‚ 2021 को गोवा के मुख्यमंत्री ने गोवा को रेबीज मुक्त राज्य घोषित किया था. गोवा रेबीज मुक्त राज्य घोषित होने वाला देश का पहला राज्य है. मुख्यमंत्री के अनुसार राज्य में पिछले तीन वर्षों के दौरान एक भी रेबीज का मामला दर्ज नहीं हुआ. 

         एंटी रेबीज वैक्सीन 3 वर्ष तक काम करता है. अगर टीका लगवाने के 3 वर्ष तक कोई कुत्ता काट लेता है तो रेबीज संक्रमण को कोई असर नहीं होगा. जो लोग जंगल में रहते हैं या ऐसा जगह काम करते हैं जहां पर कुत्ते या अन्य पशु के काटने का डर रहता है उन्हें पहले से ही एंटी रेबीज का टीका लगवा कर रखना जरुरी है. 

      फ्रांसीसी माइक्रो बॉयोलॉजिस्ट डॉ. लुईको उनकी अमूल्य शोध के लिए उन्हें “फादर ऑफ माइक्रोबॉयोलॉजी” भी कहा जाता है. लुई को रोगाणु सिद्धांत को विकसित करने, पॉश्चराइजेशन की प्रक्रिया (जो खाद्य उत्पादों को खराब होने से रोकता है) और वैज्ञानिकों द्वारा टीके बनाने के नवीन तरीके विकसित करने के लिए जाने जाते हैं.

     उन्होंने डिप्थेरिया, टिटनेस, एंथ्रेक्स, हैजा, प्लेग, टाइफाइड, टीबी सहित कई बीमारियों के लिए टीके विकसित करके लोगोंको रोग मुक्त बनाया है. 

       सन 1895 में लुई की निद्रावस्था में ही मृत्यु हो गई थी.

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