“महाभियोग” की प्रक्रिया उसे कहते है जिसका उपयोग राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. इसका ज़िक्र हमारे संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो.
भारतीय संविधान में महाभियोग
की प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है.
भारत के संविधान का उल्लंघन करने के लिए भारत की संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति को उनके कार्यकाल से पहले हटाया जा सकता है. यह प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों में से किसी एक में शुरू हो सकती है. सदन की शुरुआत राष्ट्रपति के खिलाफ आरोप लगाने से होती है.
” सुप्रीम कोर्ट ” के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है. न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों अर्थात लोकसभा एवं राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत के साथ पारित होना चाहिए. न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को लोकसभा के 100 और राज्यसभा के 50 सदस्यों का समर्थन होना जरुरी होता है.
भारत में, महाभियोग का उपयोग दो संदर्भों में किया जाता है. (1) भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग (2) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर महाभियोग
राष्ट्रपति का महाभियोग :
अभी तक भारत के किसी भी राष्ट्रपति ने महाभियोग की कार्यवाही का सामना नहीं किया है. हालाँकि ये प्रक्रिया कानून द्वारा निर्धारित की गई है. भारत के संविधान का उल्लंघन करने के लिए भारत की संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति को उनके कार्यकाल से पहले हटाया जा सकता है.
सदन की शुरुआत ” राष्ट्रपति ” के खिलाफ आरोप लगाने से होती है. आरोप एक नोटिस में मौजूद होता हैं. इसके बाद राष्ट्रपति को नोटिस भेजा जाता है और 14 दिनों के बाद विचार के लिए लिया जाता है.
राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव मूल सदन के कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत (विशेष बहुमत) द्वारा दिया जाना चाहिए, जिसे बाद में दूसरे सदन में भेजा जाना चाहिए. दूसरे दस्तावेजों पर झूठ की जांच करता है.
इस बीच, राष्ट्रपति एक अधिकृत वकील के माध्यम से अपना बचाव कर सकते हैं. लेकिन अगर सदन भी विशेष बहुमत से सम्भावित भ्रम को मंजूरी देता है, तो राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जाता है. नतीजतन, यह माना जाता है कि उन्होंने संकल्प पास करने की तारीख से अपना कार्यालय खाली कर दिया.
मुख्य न्यायाधीशों पर महाभियोग :
भारत के संविधान के लेखा-जोखा 124(4) में न्यायाधीशों पर महाभियोग
चलाने की प्रक्रिया का उल्लेख है.
राष्ट्रपति के आदेश से सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को उनके पद से हटा दिया जा सकता है. इस तरह से संसद को दोनों सदनों की पुष्टि की आवश्यकता होती है. इसके लिए एक ही सत्र में उपस्थित होने और मतदान करने वाले सदस्योंके लिए विशेष रूपसे बहुमत की आवश्यकता होती है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं, जब तक कि उन पर दुर्व्यवहार या फिर अक्षमता के आधार पर कोई महाभियोग नहीं लगाया जाता है. न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 और न्यायाधीश (जांच) नियम, 1969 के साथ संविधान में महाभियोग की पूरी प्रक्रिया का प्रावधान है. संविधान का अनुच्छेद 124(4) कहता है, “सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक कि संसद के दोनों सदन के अभिभाषण के बाद पारित राष्ट्रपति के आदेश को कुल सदस्यता के बहुमत द्वारा समर्थन नहीं किया जाता है.
न्यायधीशों पर चलाये गये महाभियोग :
*** कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन देश के इतिहास में ऐसे जज हैं, जिनको अनाचार के आरोप में महाभियोग की कार्यवाही का सामना करना पड़ा था. 53 वर्षीय श्री सेन ने महाभियोग चलाए जाने के बाद अपना इस्तीफा उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल को भेजा था.
ये इस्तीफा उन्होंने लोकसभा में महाभियोग चलाया जाए उसके पांच दिन पहले ही भेज दिया था. उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा था कि मैं भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में दोषी नहीं हूं. मैंने अपने पावर का कभी भी किसी भी रूप में दुरुपयोग नहीं किया है. लेकिन फिर भी मुझे महाभियोग से गुजरना पड़ रहा है.
*** सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी पर मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया, क्योंकि सत्ताधारी कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने उस समय लोकसभा में न्यायमूर्ति रामास्वामी का बचाव किया था.
*** सिक्कम हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश पी. डी. दिनाकरन के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी की गई थी पर सुनवाई के कुछ दिनों पहले ही दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. दिनाकरन पर भूमि पर कब्जा करने और आय से अधिक संपत्ति के मामले थे. राज्यसभा के 75 सांसदों ने जस्टिस पी.डी. दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की गई थी. तब सभापति हामिद अंसारी को पत्र सौंपा गया था. न्यायमूर्ति दिनाकरन पर आरोप था कि उन्होंने तमिलनाडु के तिरूवल्लूर जिले में काफी जमीन हथियाने का आरोप लगा था.
*** ई. सन 2015 में 58 राज्यसभा सांसदों ने गुजरात राज्य के हाई कोर्ट के न्यायाधीश जे. बी. पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाए थे. जेबी पारदीवाला के खिलाफ आरक्षण के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. सांसदों ने अपनी याचिका में अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपशब्द कहे थे.
उन्होंने कहा था कि यदि मुझसे पूछा जाए कि इस देस को तोड़ने और सफलता में कौन बाधक है तो मैं कहूंगा आरक्षण और भ्रष्टाचार. उन्होंने कहा था कि देश को आजाद हुए 65 साल से अधिक हो गए हैं लेकिन यहां आज भी विकास की बात नहीं की जाती है हम आज भी आरक्षण की बात कर रहे हैं. हामिद अंसारी के पास महाभियोग का नोटिस जाने के बाद जज ने अपने जजमेंट से वह शब्द हटा लिए थे.
अब आपको पता चल गया होगा कि महाभियोग क्या है ?
महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो संसद में कुछ विशेष पदों पर आसीन व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है. इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश, भारत के निर्वाचन आयोग शामिल हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति को हटाने के लिए उपयोग की जाती है.
न्यायाधीशों पर महाभियोग की चर्चा संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में है. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के किसी न्यायाधीश पर कदाचार और अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है.