भारत भूमि ऋषियों और संतों की पवित्र भूमि हैं. यहां अनेकों संत और अवतारी महात्मा प्रकट हुए. आपको पता हैं ? उन महात्मा ओमे अश्वत्थामा, दैत्यराज बली, वेद व्यास, परशुराम, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, और मार्कण्डेय ऋषि सदैव जीवित हैं. उनको अमरतत्व का वरदान प्राप्त हैं.
आज मुझे बात करनी हैं, मार्कण्डेय
ऋषि की.” महामृत्युंजय मंत्र ” की रचना ऋषि मार्कंडेय ने की थी. इस मंत्र पर लोक आस्था इतनी अधिक है कि वैदिक मंत्र होने के बावजूद महामृत्युंजय मंत्र मार्कण्डेय रचित माना जाता है.
मार्कण्डेय इतने महान ऋषि हैं कि उनकी उपस्थिति भगवान श्रीराम के युग से पहले, श्रीराम कथा में और तदनंतर महाभारत काल तक है. मार्कण्डेय पुराण इन्हीं की रचना है, जिसका एक अंश वह दुर्गासप्तशती है, जिसका नवरात्र में पारायण किया जाता है.
ऋषि मार्कण्डेय अजर-अमर हैं मार्कण्डेय ने हज़ार-हज़ार युगों के अंत में होने वाले अनेक महाप्रलय देखे हैं. ‘नैके युगसहस्रान्तास्त्वया दृष्टा महामुने’ वाक्य इसी का प्रमाण है. इस महाकाव्य में इन महामुनि को अजर-अमर कहा गया है. महाभारत में लिखा है कि जब मार्कण्डेय वनवास अवधि में युधिष्ठिर आदि पाण्डवों से मिलने पहुंचे तब….
‘अजराश्चामरश्चैव रूपौदार्यगुणान्वित:। व्यदृश्यत तथा युक्तो यथा स्यात् पञ्चविंशक:।’ अर्थात वे रूप और उदारता आदि गुणों से सम्पन्न तथा अजर-अमर थे. वैसे बड़े-बूढ़े होने पर भी वे ऐसे दिखाई देते थे, मानो पच्चीस वर्ष के तरुण हों. महर्षि मार्कण्डेय को पुराणों में अष्ट चिरंजीवियोंमें एक माना गया है.
इस सम्बंध में प्रसिद्ध श्लोक है….
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्य मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात अश्वत्थामा, दैत्यराज बली, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि सदैव जीवित हैं. इनका स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु प्राप्त करता है. इन सबमें अकेले मार्कण्डेय हैं जो ब्रह्माजी को छोड़ आयु में शेष सभी से बड़े हैं.
महर्षि मार्कण्डेय के चिरंजीवी बनने की कथा पद्मपुराण के उत्तरखंड में है, जिसके अनुसार- मृकण्डु मुनि ने अपनी पत्नी के साथ घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके वरदान से पुत्र रूप में मार्कण्डेय को पाया. शिव ने मृकण्डु से पूछा था कि ‘तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणहीन पुत्र चाहिए या अल्प आयु वाला गुणवान पुत्र?’ तब मृकण्डु ने गुणवान पुत्र की कामना की.
भगवान शिव ने मार्कण्डेय की आयु 16 वर्ष निश्चित की थी. जब मार्कण्डेय का सोलहवां वर्ष प्रारम्भ हुआ तो पिता शोक से भर गए. कारण पूछने पर जब पिता ने मार्कण्डेय को अल्पायु की कथा बताई तब वे माता-पिता की आज्ञा लेकर दक्षिण समुद्र के तट पर गए और एक शिवलिंग स्थापित कर आराधना में जुट गए.
तय किये गए समय पर काल या यमराज उनके प्राण हरने के लिए आ पहुंचा. तब मार्कण्डेय ने कहा कि मैं शिवजी का महामृत्युंजय स्तोत्र से स्तवन कर रहा हूं, इसे पूरा कर लूं, तब तक ठहर जाओ. मगर काल नहीं माना और बलपूर्वक मार्कण्डेय को घसीटना चाहा. ठीक उसी समय शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए और हुंकार भरकर मेघ के समान गर्जना करते हुए काल की छाती पर चरण से प्रहार किया.
इसी घटना के बाद शिवजी का नाम कालान्तक पड़ा क्योंकि उन्होंने काल का अंत कर न केवल मार्कण्डेय के प्राणों की रक्षा की बल्कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सदा सर्वदा के लिए काल-मुक्त भी कर दिया.
महामृत्युंजय मंत्र और मार्कण्डेय गायत्री मंत्र की भांति महामृत्युंजय मंत्र भी अत्यंत महिमावान व प्रभावी है. महामृत्युंजय मंत्र मरणासन्न व्यक्ति की मृत्यु से रक्षा करने में कारगर माना जाता है. महत्वपूर्ण है कि यह मंत्र सबसे पहले ऋग्वेद के सातवें मंडल के 59वें सूक्त में आया. रुद्र देवता के प्रति ऋषि वसिष्ठ द्वारा अनुष्टुप छंद में कृत यह इस सूक्त का बारहवां मंत्र है, जो बाद में यजुर्वेद से होते हुए अन्यत्र पहुंचा.
मगर महामृत्युंजय मंत्र की रचना मार्कण्डेय ने ही की और इसी के बल पर स्वयंको मृत्यु से बचाकर चिर जीवन पाया. इसीलिए प्रियजनों को जीवनदान के निमित्त लोग इसका जाप कराते हैं. जबकि सच यह है कि मार्कण्डेय इसके रचयिता नहीं हैं, केवल जापकर्ता हैं.
हालांकि पद्मपुराण के अनुसार मार्कण्डेय ने जिस महामृत्युंजय स्तोत्र का पाठ किया था वह ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे’ न होकर दूसरा था और स्वयं मार्कण्डेय रचित था. महामृत्युंजय मंत्र इसलिए मार्कण्डेय रचित नहीं है क्योंकि मार्कण्डेय वैदिक कालमें नहीं थे, उनकी उपस्थिति पुराणकाल में है, वे पुराणों व महाकाव्यों के परम सम्मानित महामुनि हैं.
आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण के अनुसार मार्कण्डेय महाराज दशरथ के ऋत्विज (यज्ञ कराने वाला) थे और भगवान श्रीराम के विवाह में बराती बन मिथिला गए थे. रामायण के बालकाण्ड के श्लोक ‘वसिष्ठो वामदेवश्च जाबालिरथ कश्यप:। मार्कण्डेयस्तु दीर्घायुऋषि: कात्यायनस्तथा।। एते द्विजा: प्रयान्त्वग्रे स्यन्दनं योजयस्व मे।’ के अनुसार वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, दीर्घजीवी मार्कण्डेय तथा कात्यायन सभी ब्रह्मर्षि थे और इनका रथ दशरथ के रथ के आगे-आगे चलकर राम के विवाह में अयोध्या से मिथिला पहुंचा था.
दशरथ की मृत्यु होने पर दूसरे दिन प्रातःकाल राजसभा पहुंचकर इन्होंने ही वसिष्ठ को दूसरा राजा नियुक्त करने का परामर्श दिया था. श्रीराम के आमंत्रण पर ये उनकी सभा में पधारे थे और राम ने इनका सत्कार किया था. इतना ही नहीं, मार्कण्डेय सीता के रसातल में प्रवेश के भी साक्षी बने थे.
महाभारत में भी मौजूद मार्कण्डेय विश्व के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत में महामुनि मार्कण्डेय अनेकत्र उपस्थित हैं. उन्होंने धृतराष्ट्र को त्रिपुराख्यान सुनाया तो भीष्म को श्रीकृष्ण की कथा सुनाई थी. वे युधिष्ठिर की राजसभा में आए थे और भीष्म के शरशय्याशायी होने पर अनेक ऋषि-मुनियों के साथ उनके पास खड़े हुए थे.
इन्होंने नचिकेता से शिव सहस्रनाम का उपदेश ग्रहण कर उसे उपमन्यु को दिया था. पाण्डवों के वनवास के समय ये दो बार उनसे मिले थे. वनपर्व में 51 अध्यायों का एक समूचा उपपर्व मार्कण्डेय को ही समर्पित है, जिसका नाम ‘मार्कण्डेयसमस्या पर्व’ है.
इस अवसर पर काम्यकवन में पाण्डवों के पास उपस्थित स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय का पूजन किया था. तब अर्जुन पांच वर्षों तक देवताओं के पास रहकर दिव्यास्त्र लेकर लौटे थे और श्रीकृष्ण पत्नी सत्यभामा के साथ अर्जुन से मिलने काम्यकवन आए थे. इस विस्तृत उपपर्व में मार्कण्डेय ने कर्मफल सहित अनेक प्रश्नों पर जो उपदेश दिया था.
वह महाकाव्य की अनमोल धरोहर है. दूसरी बार मार्कण्डेय पाण्डवों के पास तब पहुंचे थे, जब वनवास के अंतिम दिनों में जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कर लिया था और युधिष्ठिर परम शोकाकुल थे. उस समय मार्कण्डेय ने ही भगवान श्रीराम और सावित्री की कथाएं सुनाकर युधिष्ठिर को धीरज बंधाया था. उन्होंने युधिष्ठिर से कहा था कि ‘श्रीराम के कष्ट के सामने तुम्हारा कष्ट अणुमात्र भी नहीं है, फिर क्यों दुःखी होते हो.’
‘मार्कण्डेय पुराण’ और मार्कण्डेय अधिकांश पुराणों में ऋषि मार्कण्डेय का सादर स्मरण किया गया है. अपने उपदेशों में हर युग में मार्कण्डेय सिखाते हैं कि जो तन व मन से जितना अधिक सात्विक जीवन जीता है, वही दीर्घायु और मृत्युंजयी होता है. यह मार्कण्डेय के भी दीर्घायु होने का रहस्य है.
सनातन धर्मावलम्बियों के घरों में आपने निश्चित ही एक चित्र देखा होगा, जिसमें एक किशोर शिवलिंग से भाव पूर्वक लिपटा हुआ है और पीछे खड़े भगवान शिव उस किशोर के प्राण हरने को उद्यत यमराज पर प्रहार कर रहे हैं.
यही किशोर आगे चलकर चिरंजीवी महामुनि मार्कण्डेय के रूप में प्रसिद्ध हुआ.
महर्षि मार्कण्डेय ने नासिक से करीब 75 किलोमीटर दुरी पर स्थित सप्तश्रुगी मंदिर के सामने एक पहाड़ पर तपश्चर्या की थी, जिसे आज ऋषि मार्कण्डेय पहाड़ के नामसे जाना जाता हैं.
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