चिंधी को घर से बाहर घसीटकर निकाली गयी , उसका गुनाह था, उसने अन्याय के विरोध मे आवाज उठाई थी. जब उसको घर से बाहर निकाला गया तब वो नव महीने के पेट से थी. पापी पेट का पालन करने के लिये वह रेल्वे प्लेटफार्म पर भीख मागने लगी. दिन मे भीख मांगती थी और रातको श्मशान मे रहती थी. ताकि वो सुरक्षित रह सके. उसको स्मशान मे देखकर लोग ” भूतनी ” नामसे पुकारने ने लगे थे.
इस अभागन लड़की की कहानी शुरू होती है. महाराष्ट्र राज्य के वर्धा जिले के ” पिंपरी मेघे ” नामक गांव से. बचपन का उसका नाम था, ” चिंधी ” ( फटे हुये कपड़ा का टुकड़ा ). जिसे मराठी मे चिंधी कहते है. उनका जन्म ता : 14 नवम्बर 1948 के दिन पिंपरी मेधे गांव मे हुआ था.
पिताजी का नाम अभिमान साठे था जो पेशे से चरवाह था. पिताजी उसे पढ़ाना चाहता था. मगर घर की आर्थिक परिस्थिति और घर की जुमेदारिया की वजह पढाई चार कक्षा तक ही कर पाई. महज 10 साल की उम्र मे उनका बाल विवाह तीस वर्षीय श्री हरि सकपाळ से कर दीया गया. ससुराल वालोने उसका नाम सिंधु रखा.
बीस साल की उम्र तक वह तीन बच्चों की मा बन गई. दरम्यान सिंधु ताई के पिताजी का अवसान हो गया. अब लोग उसे सिंधु ताई के नामसे पहचानने लगे. वो बचपन से अन्याय का विरोध करती रही. एक दिन गांव वाले को उनकी मजदूरी का पैसा ना देने पर सिंधु ताई ने गांव के मुखिया की शिकायत जिला अधिकारी से की. मुखिया ने इस अपमान का बदला लेने उनके पति श्री हरि सकपाळ को सिंधु ताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया, उस समय सिंधु ताई नव महिने गर्भ के बच्चे से प्रेग्नेंट थी.
वह घर छोड़कर चली गई और उसी रात उन्होने गाय भैंस के तबेले मे एक बेटी को जन्म दिया. बच्चे के जन्म के समय उनको गर्भनाल को स्वयं ही पत्थर से काटना पड़ा. वो कमजोर हो चुकी थी, फ़िरभी पत्थर के सोलह वार करके नाल को काता.
तब एक गाय उसकी रक्षा करने आकर खड़ी रह गयी, मानो वह दूसरी गायों को कह रही हो, ख़बरदार कोई नजदीक आया तो. वो बेशुद्ध होकर जमीन पर लेट गयी. अच्छी होने के बाद वो निकल पड़ी.
वो अपनी माँ के घर गयी. मगर माँ ने भी उन्हे घर मे रखने से इनकार कर दिया. नसीब पर रोती सिंधुताई अपनी बेटी के साथ रेल्वे स्टेशन पर रहने लगी. पेट भरने के लिए दिन मे भीख माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने के लिये शमशान मे रेन बसेरा करने लगी. उसको जलती हुई प्रेत की चिता पर रोटी भुजकर खाने की नौबत आ पड़ी.
एक रात की बात है, सिंधु स्मशान मे थी. ठंडी का मौसम था. उसकी अपनी बच्ची गोद मे थी. चारो तरफ सुनसान शांति थी. एक प्रेत जल रहा था. बाजुमें फूटे हुये मटके के टुकड़े गिरे थे. एक टुकड़े मे पानी था. उसने आटा निकाला. पानी मे मसल कर रोटी बनायीं. प्रेत की अग्नि से कुछ आग बाहर खींची. मटके के टुकड़े को तवा बनाया. रोटी को भुना.
वो रोटी खाने लगी. उतने मे पांच काले पक्षी आये और सिंधु को नोचने लगे. मानो वह कह रहे हो. स्मशान का खाने का तुमको अधिकार नहीं. तू अभी मरी नहीं. ये स्मशान हे मरे लोगोंकी भूमि है. सिंधु घुट घुटकर रोने लगी.
उसने इस घटना को सकारात्मक तरीके से सोचा. मानो वो पक्षी कह रहे हो. तू अब मरी नहीं है , तुझे जिंदा लोगोंके लिये जिना है. तेरी मंजिल स्मशान नहीं है. तुझे इतिहास बनाना है. और सिंधु को दिशा मिल गयी.
वो परेशान थी. मगर हिम्मत नहीं हारी. सिंधु के लिये ये सबसे बुरे दिन थे. भीख मांगने के दौरान वो ऐसे कई बच्चों के संपर्क में आईं जिनका इस दुनिया मे कोई नहीं था. उन बच्चों में उन्हें अपना खुदका दुख नजर आया और उन्होंने उन सभी को गोद लेना शुरू किया. जो बेसहारा थे, उनका इस दुनिया मे कोई नहीं था. जो भिक्षा मिलती वो सबको बाट के खिलाती थी. ऐसे वह सबकी माई बन गई.
अपने संघर्ष मय काल मे उन्होंने अपनी खुद की बेटी ममता को श्री दगडुशेठ हलवाई पुणे ट्रस्ट मे गोद मे दे दीया. ताकि बच्चों मे भेदभाव ना हो जाय. इस तरह देश के अनाथ बच्चों की माई बननेका बीड़ा उठाया. अनेक समस्या आयी मगर वो पीछे ना हटी. उसने मराठी समाज को अपने कर्तुत्व से गौरांवित किया.
सिंधु ताई ने अपना पुरा जीवन अनाथ बच्चों की सेवा के लिये समर्पित कर दीया है. इसलिए उन्हे ” माई ” करके लोग पुकारते है. मराठी मे माई को ( माँ ) कहा जाता है. उन्होने करीब 1050 अनाथ बच्चों को गोद लिया है. उनके परिवार मे आज 207 दामाद और 36 बहूये सामिल है. आज करीब 1000 से भी ज्यादा पोते और पोतियाँ है. उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहुत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चला रहे है. उनका एक बेटा सिंधु माई के जीवन चरित्र पर ” पी एच डी ” कर रहा है.
इतनाही ही नहीं सिंधु माई 175 गाय की भी माई है. अपने आश्रम मे ये सभी गाय का लालन पालन करती है.
सिंधु माई को कुल 273 राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है , जिनमे “अहिल्याबाई होऴकर ” पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करने वाले समाज कार्यकर्ता ओंको दीया जाता है . उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) मे स्थित है. 2010 साल मे सिंधु माई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट बनाया गया था जिसका नाम था ” मी सिंधु ताई सपकाळ “, जो 54 वे लंडन चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया था.
सिंधु माई की कारकिर्दी देखकर सिंधु माई के पती 80 साल की उम्र मे उनके साथ रहने के लिए आए. तब सिंधु माई ने अपने पति को एक बेटे के रूप मे स्वीकार किया ये कहकर कि अब वो सिर्फ एक माँ है. आज वे बडे गर्व के साथ बताती है कि वो (उनके पति) उनका सबसे बडा बेटा है. सिंधु माई कविता भी लिखती है, और उनकी कविताओं मे जीवन का पूरा सार होता है. वे अपनी माँ का आभार प्रकट करती है क्योकि उनका मानना है कि अगर उनकी माँ ने उनको पति के घर से निकालने के बाद घर मे सहारा दिया होता तो आज वो इतने सारे बच्चों की माँ नहीं बन सकती थी.
सिंधुमाई ने अन्य समकक्ष संस्था की स्थापना की वह निम्नलिखित है
( 1 ) ” बाल निकेतन हडपसर ” ,पुणे.
( 2 ) ” सावित्रीबाई फुले लडकियों का वसतिगृह ”
( 3 ) ” चिखलदरा अभिमान बाल भवन ”
( 4 ) ” वर्धा गोपिका गाईरक्षण केंद्र ” वर्धा ( गोपालन)
( 5) ” ममता बाल सदन, ” सासवड सप्तसिंधु महिला
आधार बालसंगोपन व शिक्षणसंस्था ” पुणे.
आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंधुमाई ने अपनी संस्था के प्रचार के लिए और कार्य के लिए निधी संकलन करने के हेतू से प्रदेश दौरे किए आंतरराष्ट्रीय मंचपर उन्होंने अपनी वाणी और काव्य से सिंधु माई ने समाज को प्रभावित किया है. उनकी संस्था को विदेशी अनुदान आसानी पूर्वक मिले इस उद्देश से उन्होंने ” मदर ग्लोबल फाउंडेशन संस्था ” की स्थापना की है.
आज भी सिंधु माई देश विदेश मे जाकर भाषण देकर अपने अनाथालय के लिये चंदा जुटाती है. उसके भाषण मे मानवता, दया , देश प्रेम और करुण छलकती है. वो बिच बिच मे शेरो शायरी भी अपने भाषण मे कर देती है.
सिंधु सकपाल ( सकपाळ ) को जब घर से खदेड दीया तो वह कल्याण रेल्वे स्टेशन प्लेट फार्म पर भीख मांगकर गुजारा करने लगी. समस्या अनेक थी. आखिर काल कंटाल कर रेल्वे ट्रैक पर जान देनेका मन बनाया. बेटी के जन्म को सिर्फ 19 दिन हुए थे. उस दिन रोटी कुछ ज्यादा ही मिली थी.
फिर सोचा जब मरना ही है तो खाली पेट क्यों मरना. उसने पेट भर के रोटी खाई. फिर सोचा अगर जिंदा बच गई तो खाना कहांसे लाऊंगी ? इसीलिए कुछ रोटी पेट मे बांध के रख दी. बच्ची को भी स्तन पान कराया.
सोचा मरना हे तो खाकर ही मरूंगी. पेट भर खाना खाया. तीन बार मरनेका मन बनाया. आखरी बार खाना खाया बच्ची को झांसी की रानी की तरह कमर मे बांधा. सोचा बच गयी तो क्या करुँगी. इसीलिए रोटी साथ मे ली और रात दो बजे चल पड़ी रेल ट्रैक पर जान देने.
रात को प्लेटफार्म मे आयी तो सुनसान शांति थी. एक भिखारी प्यास से चिल्ला रहा था मुजे कोई पानी पिलाओ. प्यास से मे मर रहा हूं. सिंधु ने दूरसे उसे सुना, नजदीक गयी.मानो वो आखरी श्वास ले रहा था. सिंधु ने उसे पानी पिलाया. बोला रोटी भी है. छोटे छोटे टुकड़े करके उसे रोटी खिलाई, उसकी सेवा की तो वो बच गया.
फिर उसने सोचा मरना क्यों चाहिए ? क्यों ना जो मर रहे हो उनको जिंदा रखने के लिये जिया जाय. और यहीं बात को उसने अपने जीवन का मिशन बनाया और अनाथ बच्चों की माई बन गई और पुरे महाराष्ट्र राज्य मे महाराष्ट्र की ” मदर टेरेसा ” के रुप मे प्रसिद्ध हो गयी.
सिंधु ताई को कुल अनेक पुरस्कार मिले है जिसमे….. *** अहिल्याबाई होळकर पुरस्कर ( महाराष्ट्र राज्य ),
*** राष्ट्रीय पुरस्कार “आयकौनिक मदर”,
*** सह्यद्री हिरकणी पुरस्कार्,
*** राजाई पुरस्कार,
*** शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार,
*** दत्तक माता पुरस्कार,
*** रियल हिरोज पुरस्कार (रिलायन्स द्वारा),
सिंधुताईं को लगभग 750 राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले है उसमें के कुछ उस प्रकार है:-
*** महाराष्ट्र शासन का डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार (2010).
*** पुणे का अभियांत्रिकी कॉलेज का कॉलेज ऑफ दी इंजिनिअरिंग पुरस्कार (2012).
*** महाराष्ट्र शासन का अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार (2012).
*** मूर्तिमंत माँ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (2013).
*** आयटी प्रॉफिट ऑर्गनायझेशनचा दत्तक माता पुरस्कार (1996).
*** सोलापूर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृती पुरस्कार, *** राजाई पुरस्कार, शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार.
*** श्री रामपुर अहमदनगर जिले में सुनीता कलानिकेतन न्यासातर्फे स्वर्गीय सुनीता त्र्यंबक कुलकर्णी इनके स्मृति में दिया जानेवाला सामाजिक सहयोगी पुरस्कार (1992).
*** सीएनएन-आयबीएन और रिलायन्स फाउंडेशनने दिया ” रिअल हीरो पुरस्कार “(2012 ).
*** सन 2008 दैनिक लोकसत्ता का सह्याद्री की हिरकणी पुरस्कार’.
*** प्राचार्य शिवाजीराव भोसले स्मृती पुरस्कार (2015)
*** डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार (2017) आदि मुख्य पुरस्कार का समावेश है.
लोग उन्हें प्यार से ” अनाथों की मा ” कहते हैं. अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं. वो उन्हें पढ़ाती है, उनकी शादी कराती हैं और जिन्दगी को एक नए अंदाज से शुरू करने में मदद करती हैं. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. आज उनकी बेटी बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है.
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समेत अनेक अवॉर्ड पा चुकीं माई आज भी अपने बच्चों को पालने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से नहीं चूकतीं. वे कहती हैं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन पालन हो सकता है तो इसमें कोई बुरी बात नहीं. सभी बच्चों को वे अपना बेटा या बेटी मानती हैं और उनके लिए किसी में कोई भेद नहीं करती. रेलवे स्टेशन पर मिला वो पहला बच्चा, आज उनका सबसे बड़ा बेटा है और पांचों आश्रमों का प्रबंधन उसके कंधों पर हैं. अपनी 272 बेटियों का वे धूमधाम से विवाह कर चुकी हैं और परिवार में 36 बहुएं भी आ चुकी हैं.
सिंधु माई के भीतर देश भक्ति कूट कूट कर भरी है. एक बार वो अमेरिका प्रवचन करने गई. उपस्थित सभी श्रोता ओ ने सिंधु माई को सहराया. प्रवचन पुरा हुआ. वो स्टेज से निचे उतरने लगी. एक व्यक्ति ने उसे पूछा, आपने दान, चंदा का जिक्र क्यों नहीं किया ? इसपर सिंधु बोली मैं ऐसा बोलकर मेरा देश को कमजोर नहीं बताना चाहती थी.
मगर उपस्थित लोगोने डोनेशन के डॉलर से सिंधु की जोली छलका दी. ऐसी है सिंधु की देश भक्ति.
उसीके एक शेर के साथ मेरे आर्टिकल का समापन करुंगा….
” किसको अपना बनाये, कोई काबिल नहीं मिलता. “
पत्थर बहुत मिलते हे लेकिन दिल नहीं मिलता.
——=== शिव सर्जन ===——