महाराष्ट्र के महान संत ” बाबा गाडगे.”| Baba Gadge

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           महाराष्ट्र राज्य महात्मा और संतों की भूमी है. यहां पर श्री संत तुकाराम , संत श्री ज्ञानेश्वर , संत नामदेव , संत एकनाथ , समर्थ रामदास , गजानन महाराज , शिर्डी के सांई बाबा , भक्त पुंडलिक , संत जनाबाई , संत गोरोबा, संत श्री चोखामेळा ,   
संत कन्होपात्रा , संत बहिणाबाई ,संत भानुदास महाराज, संत नित्यानंद महाराज जैसे अनेक संतों ने प्रकट होकर इस भूमी को पावन किया है. 

       ये सभी संतों ने अमन , शांति , भाईचारा, मानवता का पैगाम दीया है. मगर मुजे आज महाराष्ट्र जिला अमरावती, तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगांव नामक गांव मे ता : 23 फरवरी 1876 के दिन गरीब परिवार मे जन्मे श्री गाडगे बाबा की कहानी शेर करनी है. 

      संत श्री गाडगे बाबा जातिवाद , ब्राह्मणवाद , पाखंडवाद के कट्टर विरोधी थे. आप मानवतावाद के पुजारी थे. आपको स्वछता पसंद थी. आप हमेशा एक झाड़ू साथ रखते थे. जो स्वछता का प्रतिक था. गाडगे बाबा जानते थे की अस्वछता रोगोंकी जननी है. गंदगी से रोग उत्पन्न होते है , अतः 144 साल पहले ही हमें स्वछताके पाठ सिखाके गये. दुनियामे हर साल कोरोना रोग से भी ज्यादा लोग अन्य रोगोंसे मरते है. आज हमें बाबा की बातोंको अनुसरण करने की जरुरी है. 

         गाडगे बाबा निर्धन गरीब, भूखे, बेसहारा को सहारा बनने पर जोर देते थे. आप जन जागृति, जनसेवा को ही अपना मानव धर्म मानते थे. सामाजिक अन्यायों के खिलाफ उनकी लड़ाई काबिले तारीफ थी , प्रशंसनीय थी. खोखली परंपरा जैसे मूर्ति पूजा, जाती प्रथा, और अस्पृश्यता, कर्मकांड को धृणित और अधर्म मानते थे. 

        आप हमेशा अंधश्रद्धा , धार्मिक कुप्रथाओ का विरोध करते थे और कहते थे की ये सब ब्राह्मणवादीयों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये बनाई है. और यहीं मिथ्या धारणाओं के बल पर ये लोग जनता का शोषण करते है. 

        संत गाडगे बाबा की माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था. घर मे माता पिता उन्हें प्यार से ” देबू ” कह कर पुकारते थे. संत बाबा गाडगे का वास्तविक नाम देवीदास झिंगराजी जाड़ोकर था. घर मे डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे. इसी में वे खाना भी खाते और पानी भी पीते थे. महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं. इसी कारण कुछ लोग उन्हें गाडगे बाबा कहने लगे और बाद में वे संत गाडगे के नाम से महाराष्ट्र भर मे प्रसिद्ध हो गये. 

       गाडगे बाबा डॉ. अम्बेडकर के समकालीन थे. वैसे तो गाडगे बाबा बहुत से राजनीतिज्ञों से मिलते-जुलते रहते थे, लेकिन वे डा. आंबेडकर के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे. इसका कारण था जो समाज सुधार का कार्य वे अपने कीर्तन के माध्यम से लोगों को उपदेश देकर कर रहे थे, वही कार्य डॉ. आंबेडकर राजनीति के माध्यम से कर रहे थे.आंबेडकर खुद तथाकथित साधु-संतों से दूर ही रहते थे, वहीं गाडगे बाबा का सम्मान करते थे. वे गाडगे बाबा से समय-समय पर मिलते रहते थे तथा समाज-सुधार सम्बन्धी मुद्दों पर उनसे साथ सलाह-मशविरा भी करते रहते थे. 

         शिक्षा के बारेमें गाडगे बाबा कहते थे की यदि शिक्षा के लिये खाने की थाली भी बेचनी पड़े तो उसे बेचकर भी शिक्षा ग्रहण करो क्योंकि हाथ पर रोटी लेकर खाना खा सकते हो मगर शिक्षा के बीना जीवन अधूरा है. शायद यह अम्बेडकर का ही प्रभाव था. 

       बाबा शिक्षा पर उपदेश देते समय डॉ. अम्बेडकर जी को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहते थे कि ‘‘ महत्त्व कांक्षा से एक गरीब का बच्चा भी अच्छी शिक्षा लेकर उच्च डिग्रियां हासिल कर सकता है. आप कहते थे की शिक्षा कोई एक ही वर्ग की ठेकेदारी नहीं है. 

       गाडगे बाबा ने 31 शिक्षण संस्थाओं तथा एक सौ से अधिक अन्य संस्थाओं की स्थापना की. बाद में सरकार ने इन संस्थाओं के रख-रखाव के लिए एक ट्रस्ट बनाया. 

        गाडगे बाबा एक महान समाज सुधारक थे, एक जीती जागती संस्था के समान थे. उनके समाज-सुधार वादी कार्यों को देखते हुए डॉ.अम्बेडकर ने उन्हें जोतिबा फुले के बाद सबसे बड़ा त्यागी, जनसेवक कहा था,

          गाडगे बाबा डॉ. अम्बेडकर से कई बार मिल चुके थे. वे बाबा साहेब के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व से प्रभावित थे. बाबा साहेब और संत गाडगे बाबाने एक साथ तस्वीर खिंचवायी थी.आज भी कई घरों में ऐसी तस्वीरें दिखायी देती हैं. संत गाडगे बाबा ने डा. बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित पिपल्स एजुकेशन सोसाएटी को पंढरपुर की अपनी धर्मशाला छात्रावास हेतु दान की थी. बाबा विशेष रूप से कबीर, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर आदि के काव्यांश जनता को सुनाते थे. हिंसाबंदी, शराबबंदी, अस्पृश्यता निवारण, पशुबलिप्रथा आदि उनके कीर्तन के विषय हुआ करते थे.

     डॉ. आंबेडकर जी के मृत्यु के 14 दिन बाद 20 दिसम्बर 1956 मे इस फ़ानी दुनिया से अलविदा कर दी. हजारों लोग उनकी अंतिम यात्रा मे शामिल हुए. उनकी शिक्षाये आज भी प्रेरणा श्रोत प्रासंगिक है.

     गाडगे बाबा की मृत्यु के प्रश्चात 1 मई सन् 1983 को महाराष्ट्र सरकार ने नागपुर विश्वविद्यालय को विभाजित कर ‘संत गाडगे बाबा’ अमरावती विश्वविद्यालय की स्थापना की। उनकी 42 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 20 दिसम्बर, 1998 को भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया. और सन् 2001 में महाराष्ट्र सरकार ने अपनी स्मृति में संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान शुरू किया था. 

       ऐसे सदीके महान संत श्री गाडगे बाबा जी को भाव पूर्वक कोटि कोटि वंदन. 

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                              शिव सर्जन

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