महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम ( Maharashtra State Road Transport Corporation.)
महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम जिसे ( एमएसआरटीसी, या केवल एस.टी ) के रूप में संक्षिप्त कहा जाता है. महाराष्ट्र, भारत की राज्य संचालित बस सेवा है जो महाराष्ट्र के भीतर कस्बों और शहरों के साथ इसके आसपास के राज्यों के लिए मार्ग सेवा प्रदान करती है. यह सभी बसों के लिए टिकटों की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी प्रदान करता है.
नाम बस शब्द लैटिन विशेषण रूप ओमनीबस ( “सभी के लिए” ) का संक्षिप्त रूप है, जो ओमनीस/ओम्ने “सभी” का मूल बहुवचन है. सैद्धांतिक रूप से इसका पूरा नाम फ्रेंच वोइचर ओमनीबस (“सभी के लिए वाहन”) है.
महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एसटी) की पहली बस 1948 में पुणे से अहमदनगर के बिच चली थी. यह नीली-सिल्वर रंग की बस थी. लकड़ी बॉडी वाली इस बस के किनारों पर कापड़ी कवर लगाया गया था.
एसटी से जुड़ी कुछ खास बातें :
*** 1920 के दशक में, कई उद्यमियों ने सार्वजनिक परिवहन से जुड़ा काम शुरू किया था.
*** 1939 में मोटर वाहन अधिनियम लागू होने से पहले, इन उद्यमियों की गतिविधियों पर कोई नियम नहीं थे.
*** तत्कालीन बॉम्बे राज्य सरकार ने 1948 में स्टेट ट्रांसपोर्ट बॉम्बे नाम से अपनी राज्य सड़क परिवहन सेवा शुरू की थी.
*** दादर-पुणे मार्ग पर अश्वमेध नाम से वातानुकूलित बस सेवा शुरू की गई.
शिवनेरी, अश्वमेध, और शीतल जैसी वातानुकूलित आराम सेवाएं चलाई जा रही हैं.
*** एसटी की आगाऊ टिकट बुकिंग की सुविधा एजेंटों और एसटी की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
सन 1948 तक यही स्थिति थी जब तत्कालीन बॉम्बे राज्य सरकार ने, स्वर्गीय मोरारजी देसाई के गृह मंत्री के रूप में, अपनी खुद की राज्य सड़क परिवहन सेवा शुरू की, जिसे स्टेट ट्रांसपोर्ट बॉम्बे कहा जाता है. और, इसके साथ ही, पुणे से अहमदनगर के लिए पहली नीली और चांदी की छत वाली बस शुरू हुई.
महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना महाराष्ट्र सरकार द्वारा आरटीसी अधिनियम 1950 की धारा 3 के प्रावधान के अनुसार की गई थी. महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम आधिकारिक राजपत्र में तारीख 29 नवंबर 1973 की अधिसूचना एमवीए 3173/30303-XIIA द्वारा प्रकाशित सड़क परिवहन की अनुमोदित योजना के तहत अपनी सेवाएं संचालित करता है.
इस योजना के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य का संपूर्ण क्षेत्र है. उपक्रम महाराष्ट्र राज्य के संपूर्ण क्षेत्र में स्टेज और कॉन्ट्रैक्ट कैरिज सेवाएं संचालित कर रहा है, सिवाय एमवी अधिनियम की धारा 68 ए (बी) के तहत परिभाषित एसटी उपक्रम और योजना में प्रकाशित अन्य अपवादों को छोड़कर.
1939 में मोटर वाहन अधिनियम के अस्तित्व में आने तक, उनकी गतिविधियों की निगरानी करने वाले कोई नियम नहीं थे, जिसके परिणाम स्वरूप मनमानी प्रतिस्पर्धा और अनियमित किराए थे. अधिनियम के कार्यान्वयन ने कुछ हद तक मामलों को ठीक किया. व्यक्तिगत ऑपरेटरों को एक विशेष क्षेत्र में निर्धारित मार्गों पर एक संघ बनाने के लिए कहा गया था.
यह यात्रियों के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि कुछ प्रकार की समय-सारिणी निर्धारित की गई; समय सारिणी, निर्दिष्ट पिक-अप पॉइंट, कंडक्टर और निश्चित टिकट की कीमतें सन 1948 तक यही स्थिति थी, जब तत्कालीन बॉम्बे राज्य सरकार ने, स्वर्गीय मोरारजी देसाई के गृह मंत्री के रूप में, अपनी खुद की राज्य सड़क परिवहन सेवा शुरू की, जिसे स्टेट ट्रांसपोर्ट बॉम्बे कहा जाता है. और, इसके साथ ही, पुणे से अहमदनगर के लिए पहली नीली और चांदी की छत वाली बस शुरू हुई.
उस समय 10 प्रकार की बसें प्रयोग में थीं.
(1) शेवरले, (2) फोर्ड मोटर कंपनी, (3) बेडफोर्ड व्हीकल्स, (4) सेडॉन एटकिंसन, (5) स्टूडबेकर, (6) मॉरिस कमर्शियल, (7) एल्बियन मोटर्स, (8) अशोक लीलैंड, (9) कमर्शियल और (10) फिएट. 1950 के दशक की शुरुआत में, मॉरिस कमर्शियल चेसिस के साथ दो लग्जरी कोच भी पेश किए गए थे. इन्हें नीलकमल और गिरिया रोहिणी कहा जाता था और ये पुणे महाबलेश्वर मार्ग पर चलती थीं. इनमें दो-दो सीटें, पर्दे, आंतरिक सजावट, एक घड़ी और हरे रंग की टिंटेड खिड़कियां थीं.
बस का प्रकार बसों की संख्या :
(1) साधारण बस 13000
(2) शहरी बस 100
(3) अर्ध लक्जरी (हिरकनी) 450
(4) मिडी बस 30
(5) शिवनेरी-अश्वमेध ( वोल्वो और स्कैनिया ) 110
(6) शिवशाही एसी सीटर 1070
(7) साधारण स्लीपर सीटर 200
(8 नॉन एसी स्लीपर 100
(9) शिवाई इलेक्ट्रिक 50
(10) शिवनेरी- इलेक्ट्रिक 30
एमएसआरटीसी लगभग 15,512 बसों का बेड़ा संचालित कर रहा है जो प्रतिदिन 8.7 मिलियन यात्रियों को यात्रा कराती है.
वर्तमान समय में हमारे पास यातायात के कई साधन मौजूद हैं, जिसमें मोटर वाहनों में शामिल बस का साधन प्रमुख साधनों में से एक है. देशभर में प्रतिदिन करोड़ों यात्री बस के माध्यम से यात्रा करते हैं. बस को एक आम आदमी की सवारी भी कहा जाता है, जो कि कम दामों में कई किलोमीटर का सफर तय कराती है.
हर राज्य की अपनी एक ट्रांसपोर्ट सर्विस है, जिसके अंतर्गत राज्य बस परिवहन प्रणाली का संचालन किया जाता है. हालांकि, क्या आपको पता है कि भारत में पहली बार बस कब और कहां चली थी. यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम भारत की पहली बस और इसके स्थान के बारे में जानेंगे.
भारत की पहली बस ता : 15 जुलाई 1926 को देश में पहली बार चली थी, यह पहली बार था, जब देश में कोई बस सेवा का संचालन किया गया हैं. भारत के महाराष्ट्र राज्यके मुंबई शहर यानी कि देश की आर्थिक राजधानी में देश की पहली बस सेवा को शुरू किया गया था.
भारत की पहली बस सेवा उस समय अफगान चर्च यानी कि कोलाबा से लेकर क्राफर्ड मार्केट यानी की वर्तमान में ज्योतिबा फुले मार्केट तक चली थी. बताया जाता है कि उसे समय इस बस का किराया चार आने हुआ करता था.
सन 1937 में पहली बार डबल डेकर बस चली थी. भारत में आजादी से पहले 1937 में डबल डेकर बस का चलन शुरू हो गया था. यह वह समय था, जब बसों में सवारी की भीड़ बढ़ने लगी थी, जिसको देखते हुए डबल डेकर बस का कॉन्सेप्ट लाया गया था. बस की छत के ऊपर भी सवारियों के बैठने की व्यवस्था की गई थी.
भारत में पहली बस सेवा चलाने वाली इकाई मुंबई की ‘BEST’ इकाई थी, जिसे बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (BEST) के नाम से जानते हैं. यह मुंबई महानगरपालिका की एक स्वतंत्र इकाई है.
इस इकाई ने उस समय मुंबई में बिजली संयंत्र की स्थापना की थी, जिसके बाद इसके द्वारा ही मुंबई में पहली बस सेवा शुरू की गई थी और आज भी यह बस सेवा का संचालन कर रही है. आपको बता दे की मुंबई में इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन के स्थापित होने के बाद साल 1925 से ही देश में इलेक्ट्रिक ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया था. 1925 से 1928 तक मुंबई में लोकल ट्रेनें बिजली से चलने लगी थीं.
महाराष्ट्र में बस स्टैंड की बात करे तो निगम 247 बस स्टैंडों तथा तालुकाओं एवं महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थित 578 बस स्टैंडों के माध्यम से राज्य के लोगों को परिवहन सेवाएं प्रदान कर रहा है.
एस. टी. की रोचक बातें :
*** एसटी को हर साल कर के तौर पर करीब 1,200 करोड़ रुपये देने पड़ते हैं.
*** एसटी को डिज़ेल पर हर साल करीब 3,400 से 3,500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
*** एसटी के पास 15,400 गाड़ियां हैं और रोज़ाना 12 लाख लीटर डिज़ेल की ज़रूरत होती है.
*** दुनियाभर में सबसे पहले स्कूल के लिए स्पेशल गाड़ी का उपयोग उत्तरी अमेरिका में 19वीं सदी में किया गया था. चूंकि उस समय मोटर गाड़ियां नहीं होती थीं, इसलिए स्कूल से दूर रह रहे छात्रों को लाने और ले जाने के लिए घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल होता था.
*** क्या आपको पता हैं ? स्कूल बसों का रंग पीला क्यों होता हैं. इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक और सुरक्षा कारण हैं. साल 1930 में अमेरिका में हुए एक शोध में इस बात की पुष्टि हुई थी कि पीला रंग बाकी रंगों की तुलना में आंखों को सबसे जल्दी दिखाई देता है और बाकी रंगों के बीच आदमी का ध्यान सबसे पहले पीले रंग पर ही जाता है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, बाकी रंगों की तुलना में पीले रंग में 1.24 गुना ज्यादा आकर्षण होता है. स्कूलकी बसों का रंग सुरक्षा की दृष्टि से भी पीला रखा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पीला रंग होने की वजह से बस दूर से ही दिख जाती है. साथ ही पीले रंग की बस बारिश हो, रात हो, दिन हो या कोहरा हो, सभी मौसम में आसानी से दिखाई देती है और इसकी वजह से दुर्घटना होने की संभावना बहुत कम होती हैं.