आचार्य श्री रजनीश जिसे लोग, ओशो , भगवान श्री रजनीश , आध्यात्मिक गुरु, प्रवचनकर्ता, दर्शनशास्त्री, सेक्स गुरु आदि अनेक नामो से जानते है. पहचानते है. ओशो को चाहने वाले और मानने वाले दुनिया भर मे करोडो अनुयायी है, तो उनके आलोचकों की भी कमी नहीं है.ओशो का बचपन का नाम श्री रजनीश चंद्र मोहन जैन था.
उनका जन्म मध्यप्रदेश के रायसेन, भोपाल, कुचवाड़ा गांव मे ता : 11 दिसंबर 1931 के दिन हुआ था. उनके पिता कपडे के व्यापारी थे, और रजनीश उनके ग्यारह बच्चों मे सबसे बड़े थे.
आचार्य श्री रजनीश बचपन से ही दिमाग़ से तेज था. बचपन से ही ज्ञान पिपासु रहा. वे हमेशा सामाजिक, धार्मिक और दर्शनशास्त्र के मुद्दों पर कब ? क्यू ? कैसे ? जैसे प्रश्न वो जिज्ञाषा वश पुछ लिया करते थे .
श्री रजनीश ने ता : 21 मार्च 1953 को 21 साल की उम्र में जबलपुर के डी.एन. जैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र की पढाई करते हुए ओशो प्रबुद्ध बने. उसके बाद सन 1956 मे सागर यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में फर्स्ट क्लास से एम.ए. की डिग्री हासिल की. ग्रेजुएशन की पढाई पूरी करते समय वे ऑल इंडिया डिबेट चैंपियन और गोल्ड मैडल विजेता भी रह चुके है. सन 1957 से 1966 तक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर तथा
रायपुर के संस्कृत कॉलेज में उनकी नियुक्ती दर्शन शस्त्र के प्रोफेसर के पद पर की गयी थी.
दरम्यान सन 1960 मे उन्होंने लोगोंके बिच सार्वजनिक व्यक्तव्य देना शुरू कर दिया था. और बोलने और तर्क देनेमे तेज होनेकी वजह नामचीन हो गये और उनके अनुयायी आचार्य रजनीश के नाम से उनको संबोधित करने लगे तथा ओशो वाणी के रूपमें रजनीश दुनिया भरमे प्रसिद्ध हो चुके थे. भारत भर की यात्रा करके अनेक सार्वजनिक जगह पर प्रवचन दिये.
करीब नव साल पढ़ाने के बाद उसने यूनिवर्सिटी में पढ़ाना छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने भारत में खुले मैदानों पर तक़रीबन बीस हजार से पचास हजार लोगो के बिच प्रवचन देना शुरू किया. साल में चार बार वे भारत के मुख्य शहरो में 10 दिन के ध्यान और व्यायाम शिबिर का भी आयोजन करते थे.
सन 1970 मे आचार्य रजनीश ने अपना ज्यादा समय अपने शुरुआती अनुयायी के साथ बॉम्बे ( आज का मुंबई ) मे बिताया था. जो की वे ” नव सन्यासी ” के नाम से जाने जाते है. सन 1974 मे रजनीश ने पुणे स्थित अपने आश्रम की स्थापना की और वहां स्थापित हुये जहां देश विदेश से लोग आने जाने लगे.
सन 1981 मे अमेरिका के ओरिगोन के वास्को काउंटी स्थित रजनीशपुरम आश्रम मे अपना वर्चस्व जमाया मगर राज्य सरकार और स्थानीय लोगोंके मतभेद को चलते उनकी गतिविधियों मे रूकावट आयी. अतः पुनः पुणे स्थित अपने आश्रम मे वापिस आ गये जहां सन 1990 मे उनकी करुण मृत्यु हो गयी. वर्तमान में उनका आश्रम ओशो अंतर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र नाम से प्रसिद्ध है.
सन 1970 में 14 अप्रैल को उन्होंने खुद की क्रांतिकारी ध्यान यंत्रनाओ को उजागर किया जिससे उनके जीवन में एक नए अध्याय की शुरुवात हुई. परिणाम स्वरूप उनके द्वारा बताई गयी ध्यान यंत्रनाओ का उपयोग मेडिकल डॉक्टर, शिक्षक और दुनियाभर में बहुत से लोग ध्यान लगाने के लिए करने लगे थे. यूरोप और अमेरिका जैसे देशो में लोग उन्हें मनोचिकित्सक भी कहते थे, क्योकि विदेशी लोगो के अनुसार वे इंसान का आंतरिक विकास करते थे.
उनके प्रवचन हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओ में होते थे. उनके प्रवचन में सभी आध्यात्मिक और धार्मिक तथ्यों का उल्लेख होता था, जिनमे योगा, जेन, ताओवाद, तंत्र और सूफी आदि का समावेश होता था.
रजनीश गौतम बुद्धा, जीसस, लाओ तजु और दुसरे रहस्यवादी लोगो पर भी प्रवचन देते थे. इन प्रवचन को बड़े पैमाने पर लोग सुनते थे.
जून 1964 में रणकपुर शिविर में पहली बार ओशो के प्रवचनों को रिकॉर्ड किया गया और किताब में भी छापा गया. इसके बाद ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिए. उनके प्रवचन पुस्तकों, ऑडियो कैसेट तथा वीडियो कैसेट के रूप में मार्किट मे उपलब्ध हैं. आचार्य रजनीश ने अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनियाभर के वैज्ञानिकों, बुद्धि जीवियों को और साहित्यकारों को प्रभावित किया था. सन 1969 में ओशो के अनुयायियो ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन बनाया जिसका मुख्यालय मुंबई मे था. बाद में उसे पुणे के कोरेगांव पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया. वह स्थान “ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसोर्ट ” के नाम से जाना जाता है. 1980 में ओशो “अमेरिका” चले गए और वहां सन्यासियों ने “रजनीशपुरम” की स्थापना की.
ओशो ने हजारों प्रवचन दिये. उनके प्रवचन पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध कराये गये हैं.
अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये थे. अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब 600 पुस्तकें हैं. संभोग से समाधि की ओर इनकी सबसे चर्चित और विवादास्पद पुस्तक है. इनके नाम से कई आश्रम चल रहे है.
अमेरिका के लोगों की तो उनके प्रति अटूट भक्ति-भाव था. सन् 1966 से सन् 1970 तक रजनीश के अनुयायी उन्हें आचार्य कहते थे, परंतु सन् 1970 के बाद वे भगवान रजनीश हो गए. नाम के आगे भगवान शब्द जुड़ने के कारण उनकी काफी आलोचना हुई थी. उन्होंने अपनी सफाई में कहा-‘भगवान शब्द का अर्थ ईश्वर नहीं है, प्रत्येक उस व्यक्ति को भगवान कहा जा सकता है, जो उरानंद की अवस्था में पहुंच चुका हो.
ओशो पिछली जिंदगी मे विवादों के घेरे मे रहे. ओशो रजनीश गरीबी के विरोधी थे. राजसी ( रॉयल ) लाइफ जीते थे. उनके शिष्यों ने ओशो को 93 रॉल्स रॉयल कारे भेट दी थी. उनके शिष्यों उनको 365 रॉल्स रॉयल कार की भेट देना चाहते थे. ताकि साल भर रोज नयी गाड़ी मे ओशो ऐशोआराम से सफर कर सके.
ओशो की ” संभोग से समाधी की ओर ” किताब बड़ी विवादोंके घेरे मे रही. हालाकि ओशो ने इससे भी ज्यादा विवादित बयान उनके अन्य किताबों मे दिया था. इस कारण ओशो को ” सेक्स गुरु ” भी लोग कहते थे. ओशो का पुणे के कोरेगांव पार्क मे कई तरह की ध्यान विधियां विकसित की थी. पश्चिमी लोग ओशो से ज्यादा ही प्रभावित थे.
सन 1981 तक यहां सालाना 30,000 लोग आते थे. जगह छोटी पड़ने लगी. विदेशियों के आने और आश्रम को लेकर 1977-78 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से खटपट हो गई थी. अतः शिष्यों ने अमेरिका बुला लिया. ओरेगॉन की तकरीबन 64, 229 एकड़ बंजर ज़मीन पर बड़ा सा कम्यून बनाया गया. नाम दिया गया रजनीशपुरम.
भीड़ वहां भी बढ़ने लगी. वहां की सरकार भड़क गयी. वहां के गवर्नर को आश्रम पर नज़र रखने को कहा गया. इसे एक ‘एलियन कल्ट’ द्वारा उनके देश में आक्रमण बताया गया. कहा गया ओशो उनके कल्चर और धर्म को बर्बाद कर रहे हैं.ओर अपना धर्म स्थापन करना चाहता है.
ओशो पर रजनीशपुरम में अवैध गतिविधिया चलाने का आरोप लगाया गया.ओशो सन 1985 मे पुणे लौट आया और पहलेसे भी ज्यादा नास्तिकता की बातें करने लगे थे. ता : 19 जनवरी 1990 के दिन आचार्य रजनीश ( ओशो ) की मुंबई मे मौत हो गई.
माना जाता है की अमेरिकी सरकार ने ओशो को थेलियम नाम का स्लो पॉइजन ( जहर ) दे दिया था, जिससे धीरे-धीरे वो मौत की तरफ आगे बढ रहा था. अमेरिका से लौटने के बाद ओशो ने खुद बताया था कि मुझमें ज़हर के लक्षण हैं. मेरा रजिस्टेंस कमजोर हो गया है. मुझे खुद इस बात का शक था. जब मुझे अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था, और बिना कोई वजह बताये उन्होंने मुझे बेल नहीं दी थी. इसके बाद ही मुझमें ज़हर के लक्षण मैंने महसूस किया था.
ऐसा भी माना जाता है कि उनके कुछ ख़ास लोगों ने ही उनकी महंगी प्रॉपर्टी के लालच में उन्हें मार दिया था. वह कहानी रहस्य से भरी हुई है. ओशो की सेक्रेटरी नीलम कहना था कि जब उन्होंने ओशो की मां को मौत की बात बताई तो उन्होंने कहा , कि नीलम, उन्होंने उसे मार दिया है. ” संभोग से समाधि की ओर ” उनकी बहुचर्चित पुस्तक है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा अधिक सेक्स के संबंध में अन्य दूसरी पुस्तकों में उन्होंने सेक्स को एक अनिवार्य और नैसर्गिक कृत्य बताकर इसका समर्थन किया है. जबकि आमतौर पर दुनियाभर के धर्म सेक्स का विरोध करते है.
ओशो के सेक्स संबंधी विचारों का विश्वभर के लोगों ने उनके काल में घोर विरोध किया था और आज भी करते हैं. ओशो कहते हैं कि सेक्स पहली सीढ़ी है और समाधि अंतिम.
ओशो जन्म जात ज्ञानी नहीं था. जो भी सीखा यहींसे शिखा,जो दिया यहीं पर दिया. वास्तव मे ओशो पुस्तक प्रेमी था. बताया जाता है कि ओशो के पुस्तकालय मे अलग अलग 10000 पुस्तक का समूह था. ओशो हर पुस्तकों से कुछ ना कुछ सिखता था. उन्होंने गौतम बुद्ध , महावीर स्वामी , येशु क्रिस्ट जैसे महान विचारको कि कहानी पढ़ी थी, और वे उनके प्रवचन मे वारंवार उसका जिक्र करते थे. उदाहरण दिया करते थे. उन्होंने देश विदेश के कई लेखकों कि कहानी पढ़ी थी. शास्त्रों, पुराणों का गहरा अध्यन किया था.
घर परिवार कि छोटी छोटी कहानी को भी उन्होंने अपने प्रवचन मे कही थी. उन्ही के अवतरण को आपके साथ शेर करता हूं. परिवार संबंधी ओशो कहते थे कि ,
” एक-एक परिवार में कलह है. जिसको हम गृहस्थी कहते हैं, वह संघर्ष, कलह, द्वेष, ईर्ष्या और चौबीसों घंटे उपद्रव का अड्डा बनी हुई है. लेकिन न मालूम हम कैसे अंधे हैं कि देखने की कोशिश भी नहीं करते. बाहर जब हम निकलते हैं तो मुस्कराते हुए निकलते हैं. घर के सब आंसू पोंछकर बाहर जाते है. पत्नी भी हंसती हुई मालूम पड़ती है.पति भी हंसता हुआ मालूम पड़ता है. ये चेहरे झूठे हैं. ये दूसरों को दिखाई पड़ने वाले चेहरे हैं. घर के भीतर के चेहरे बहुत आंसुओं से भरे हुए है. चौबीस घंटे कलह और संघर्ष में जीवन बीत रहा है. फिर इस कलह और संघर्ष के परिणाम भी होंगे ही.”
इस अवतरण द्वारा ओशो बहुत कुछ कह जाता है जो आज आम घरों मे घटित हो रहा है.
——–===शिवसर्जन ===——-