माता का स्थान, स्वर्ग से महान.

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माँ के बारेमें जितना लिखा जाय, उतना कम है. आप 40 – 45 सालके हो? आपकी माताजी हयात है? यदि हा तो आप बड़े भाग्यशाली हो. अब भी पुख्ता समय है, उसके प्रति सोचनेका. आप सयुंक्त परिवार में वात्सव्य कर रहे हो? या फिर विभक्त परिवार में. क्या आज भी आपकी माताजी स्वस्थ जी रही है?

कभी उसके साथ बैठकरआपने उसके हालात के बारेमें, उनसे चर्चा की है? वो क्या चाहती है. 65 – 70 की उम्र में वो डायाबिटीस, ब्लड प्रेसर, किडनी की बीमारी, घुटनों के दर्द से पीड़ित तो नहीं है ? समय निकालो और आज ही आपके फॅमिली डॉक्टर का संपर्क करे.

जरुरत हो तो मेडिकल रिपोर्ट निकाले, डॉक्टर की सलाह अनुसार औषधी शुरु करे. आज आपको दो तीन हजार खर्चा होगा, और उसका जीवन कई साल बढ़ जायेगा. जो आपके लिए फायदेमंद होगा. यदि आज ऐसा ना किया तो भविष्य में चार पांच लाख रुपये खर्चा करने के बाद भी आप की माताजी इस दुनिया में ना हो.

अधिकांश बच्चें माँ को बचपन से अपने घर में काम करते देखते है. मगर स्वाभाविक है, आज से 30 – 35 साल पहले की स्फूर्ति उनके पास ना हो. हो सकता है बच्चों की भलाई के लिए वो पहले जैसी स्फूर्ति दिखाकर कार्य करने की कोशिश कर रही हो.

माँ एक बागबान की तरह अपने बच्चोंका पालन करती है. उसे अच्छी शिक्षा देनेके लिए उसे मारती है, फिर खुद रोती है. उसके एक एक आंशु के बूंदमें माँ की सहानुभूति नजर आती है.

आपने कभी माँ के लिए प्रभु से प्रार्थना की है ? नहीं ना! वो रोज सुबह उठकर अपने बच्चों के सुखमय जीवन के लिए प्रभु से दुआएं मांगती है. बच्चें पोते की बीमारी में प्रभु से मन्नत मांगती है. माँ के लिए तो बच्चों का मंगलमय जीवन ही सब कुछ होता है.

सबसे पहला मदर्स-डे 8 मई 1914 को अमेरिका में मनाया गया तबसे आज तक मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रुप में मनाया जाता है. सिर्फ एक दिन के लिए माताजी को याद किया जाता है. सोशल मीडियाके विविध ग्रुप, व्हाट्सएप्प, फेसबुक पर माँ की स्तुति की जाती है. मगर बादमे हासियामें धकेल दीया जाता है.

हमारे वेद पुराण और शस्त्रों में भी माता और जन्मभूमि की महिमा बताई गई है.

” जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी “

अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है.

जिस प्रकार से माता का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय है. इसी प्रकार से जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है.

आजके इस आर्टिकल का समापन ” दादी मा ” फ़िल्म के एक गाने के साथ करना पसंद करुंगा, जिसे गीतकार मजरूह सुलतानपुरी ने लिखा है और गायक महेन्द्र कपूर और मन्ना डे साहब ने स्वर दिया है.

गाने के बोल है :

उस को नहीं देखा हमने कभी

पर इसकी ज़रूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग

भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी

उस को नहीं देखा हमने कभी…

इनसान तो क्या देवता भी

आँचल में पले तेरे

है स्वर्ग इसी दुनिया में

कदमों के तले तेरे

ममता ही लुटाये जिसके नयन, हो…

ममता ही लुटाये जिसके नयन

ऐसी कोई मूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी…

क्यों धूप जलाये दुखों की

क्यों ग़म की घटा बरसे

ये हाथ दुआओं वाले

रहते हैं सदा सर पे

तू है तो अंधेरे पथ में हमें, हो…

तू है तो अंधेरे पथ में हमें

सूरज की ज़रूरत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी…

कहते हैं तेरी शान में जो

कोई ऊँचे बोल नहीं

भगवान के पास भी माता

तेरे प्यार का मोल नहीं

हम तो यही जाने तुझसे बड़ी, हो…

हम तो यही जाने तुझसे बड़ी

संसार की दौलत क्या होगी

ऐ माँ, ऐ माँ तेरी…

( भगवान को हमने कभी नहीं देखा. मगर उसकी जरुरत भी क्या है? हे! माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होंगी. सैलूट गीतकार )

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