शिशु के प्रति माँ की ममता क्या होती है ? ये सिर्फ एक माँ ही अच्छी तरह समज सकती है. मुर्गी के छोटे बच्चे को आप पकडनेकी कोशिश करो तो तुरत बच्चे की माँ, बच्चे का बचाव करते कूद पडती है, उसे कहते है माँ की ममता. अपने बच्चे को मारकर खुद रोती हे उसे कहते है माँ की ममता. खुद भूखी रहकर अपने बच्चे को खिलाती है, उसीको कहते है माँ की ममता. सही मे मा ममता की मूर्ति होती है.
नव महीने अपने कोख मे पालकर खानपान परहेज का पालन करती है उसे कहते है माँ की ममता. माँ के गुणगान के बारेमें आजतक बहुत कुछ लिखा जा चुका है.
श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के दरबार मे एक महिला को आरोपी बनाकर खड़ा किया गया. नाम पूछा गया. उसने अपना नाम हिरकनी बताया. उसके हाथ पाव मे काफ़ी खरोच आयी थी. सुरक्षा कर्मी का आरोप था, मुख्य दरवाजा बंद होनेके बाद मना करने पर भी इस महिला ने रात को गढ़ रायग़ढ़ का पहाड़ उतरकर अपने घर जानेका साहस किया था. सुनकर महाराज को बड़ा आश्चर्य हुआ.
जिस पत्थरीला पहाड़ से दिन मे उतरना मुश्किल हो, वहासे रातमे कैसे ये महिला उतरकर अपने घर गई होंगी ? और वो भी एक सामान्य नारी होकर. उसकी बहादुरी का कार्य देखकर शिवाजी महाराज ने तुरंत आदेश दिया और वहां पर एक दीवार खड़ी कर दी गई और एक बड़ा बुरुज बनाकर मीनार का नाम हीरकणी रखकर उनकी बहादुरी और उनके मातृप्रेम को देखते उन्हें बक्षिस दे कर गौरवाविंत किया गया.
हिरकनी दूध बेचकर अपने परिवार का पालन करती थी. रोज शाम वो दूध बेचने अपने वाकुसरे गांव से उपर रायगढ़ किले मे जाती थी. शिवाजी महाराज के आदेश अनुसार किले का मुख्य द्वार सूर्यास्त के बाद बंद किया जाता था. और दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के बाद खोला जाता था. उस दिन रोज की तरह हिरकनी को दूध बेचकर आनेमें देरी हो गई. तब तक किले का दरवाजा बंद हो चुका था. अब हीरकणी को किले के बाहर जाना नामुमकिन था.
हीरकणी रोने लगी. हाथ जोड़कर दरवान को प्रार्थना करने लगी , मेरा छोटा बालक दूध के बीना रोता होगा. यदि घर नहीं पहुंची तो रातभर भूखा रहेगा. मेरे पर कृपा करो , सरकार मुजे मेरे बेटे के पास जाने दीजिये. वो चौधार आंशु ओसे रोती रही, आजीजी करती रहे, मगर सब व्यर्थ. दरवान ने उसकी बात नहीं मानी और राजा श्री शिवाजी जी महाराज के आदेश पर डटे रहे. फिर कुछ सोचा ओर बोला, दरवाजा फिरसे खोलने का आदेश सिर्फ शिवाजी महाराज ही दे सकते है अतः आपको शिवाजी महाराज के पास लेकर चलते है, वो आपको स सम्मान आप के घर पहुंचाने को रक्षक भेजेंगे.
मगर हीरकणी व्याकुल हो चुकी थी. उसे तो सिर्फ अपना छोटा बालक ही आंख के सामने नजर आ रहा था.
वो पहेरेदारो की नजर से बचकर भाग निकली. पहाड़ की ऊंचाई से निचे तक की दुरी करीबन 4400 फीट थी. फ़िरभी उसने पहाड़ उतरकर रात को अपने घर जानेका फैसला किया. माँ की ममता ने उसका हौसला बढ़ाया, उसके वात्सल्य प्रेम ने निचे उतरने पर मजबूर किया.
वो निचे उतरने लगी, उतरते समय कांटे की वजह साडीके चीथड़े चीथड़े हो गये , पुरे शरीर पर चोट लगी. फ़िरभी आंख मे आंशु ओके साथ वो संभलकर निचे उतरती रही. आखिर अपने घर तक पहुंच गई मगर वो बुरी तरह घायल हो चुकी थी. जाकर अपने बच्चे को उठाकर गोदमे लिया. खूब रोयी. बच्चे को स्तनपान कराया. बच्चे को कलेजे से लगाया. सुबह ये बात वायु वेग से सब जगह फ़ैल गई और हिरकनी की यश गाथा की कीर्ति घर घर तक पहुंच गई.
माँ की ममता और हिरकनी की बहादुरी ने हिरकनी को इतिहास मे अमर बना दिया. आज भी किला देखने जाने वाले लोग हिरकनी की कहानी सुनकर भावुक हो जाते है.
उल्लेखनीय हे की श्री छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठी साम्राज्य की राजधानी के रूपमे सन 1674 की साल मे रायगढ़ किले को विकसित किया और अपनी राजधानी बनाया था. इस गढ़ मे आने जाने के लिये एक ही मार्ग था.
इस हीरकणी की कहानी की पुष्टि का प्रमाण महाराष्ट्र के पाठ्य पुस्तक मे भी मिलता है.
धन्य हे ऐसी माताए जो अपने जान की परवा किये बीना अपने शिशु का रक्षण करती है.
माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होंगी…..
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शिव सर्जन