जिंदगी तो सब जीते है मगर कुछ लोग लौटकर जाते वक्त मानवता की महक छोड़कर जाते है. ऐसी ही एक महा पुण्यात्मा , त्यागमूर्ति , महामानव , महात्मा श्री ज्योतिराव फुले की कहानी आप लोगो के साथ शेयर करनी है. जिनका जन्म 11अप्रेल 1827 के दिन सातारा से 25 मिल के अंतर पर कटगुन गांव मे हुआ था. उनके पिता का नाम गोविंद राव था और माता का नाम चिमना बाई था तथा उनकी पत्नी का नाम सावित्री बाई था.
ज्योतिराव फुले जब 13 सालके थे तब सन 1840 मे उनका विवाह नारगांव के खंडोबा श्री नेवसे पाटील की पुत्री सावित्री बाई से हुआ था. उस समय सावित्री बाई की उम्र 8 साल की थी. सावित्रीबाई का जन्म ता : 3 जनवरी 1831 के दिन हुआ था. वो जमाना बाल विवाह का था.
ज्योतिराव महान क्रांतिकारी, विचारक, समाजसेवी, तथा लेखक एवं दार्शनिक थे. लोग ज्योतिराव फुले को महात्मा फुले एवं ज्योतिबा फुले के नाम से पुकारते थे.
महात्मा ज्योतिराव फुले को 19 वी सदी का महान प्रमुख समाज सेवक माना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में फैली अनेक कुरूतियों को दूर करने के लिए सतत संघर्ष किया. अछुतोद्वार, नारी-शिक्षा, विधवा विवाह और किसानो के हित के लिए उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया.
वर्ष 1848 मे जब वह 21 साल का था तब ज्योतिराव के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया. एक दिन वे अपने एक ब्राह्मण मित्र की शादी में सामिल होने गये थे. तब दूल्हे के रिश्तेदारों ने निम्न जाति का होने की वजह उनका अपमान किया. इसके बाद ज्योतिराव ने खुद निश्चय कर लिया कि वे सामाजिक जाती असमानता के खिलाफ और समाज की स्त्रियों और निम्न जाति के लोगोंका उत्थान के लिये कार्य करेंगे. थॉमस पैन की किताब ” राइट्स ऑफ मैन ” ने उन्हें बहुत प्रभावित किया.
ज्योतिराव का परिवार कई पीढ़ी पहले माली का काम किया करता था. तब वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे, हार आदि बनाने का काम करते थे अतः उनकी पीढ़ी ” फुले ” के नाम से पहचानी जाने लगी.
जातिगत भेद-भाव के कारण उन्हें विद्यालय को छोड़ना पड़ा. विद्यालय छोड़ने के बाद घरेलु कार्यो के बाद जो समय बचता था उसमे वह किताबें पढ़ते थे. ज्योतिराव लोगोंके साथ विविध विषय पर चर्चा करते थे. लोग उनकी सूक्ष्म और तर्क संगत बातों से बहुत प्रभावित होते थे.
ज्योतिराव ने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दीया. किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी लडते रहे. स्त्रियों की दशा सुधारने उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने सन 1848 में एक स्कूल खोला.जो देश का पहला महिला स्कूल था.
उस समय लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया. उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, फिर भी फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति पत्नी , दो नो को घर से बाहर निकलवा दिया. मगर उसकी लगन और एकाग्रता की वजह उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं की तीन स्कूल खोल दी. और इस सामाजिक आंदोलन से महराष्ट्र को नई दिशा प्रदान की.
लोगोंको फुले ने वर्णसंस्था और जातिवाद के निर्मूलन के लिये आंदोलन शुरू करके अपनी स्पस्ट भूमिका जाहिर की. और कार्य को आगे बढ़ाया.
महात्मा फुले जी ने सामाजिक परिवर्तन, ब्रम्ह्नोत्तर आंदोलन, बहुजन समाज को आत्मसन्मान देने , किसानो के अधिकार दिलाने आवाज उठाई. दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिराव ने ता : 24 सितंबर 1873 के दिन ” सत्य शोधक समाज ” की स्थापना की और पहले कार्यकारी व्यवस्थापक तथा कोषाध्यक्ष बने. इस संस्था को निकालने का मुख्य उद्देश्य, समाज में शुद्रो पर हो रहे शोषण तथा दुर्व्यवहार पर अंकुश लगाना था.
ज्योतिराव मैट्रिक ( पुरानी ग्यारहवी ) तक पढ़े थे और उनके घर वाले चाहते थे कि वो अच्छे वेतन वाले सरकारी कर्मचारी बन जाए लेकिन ज्योतिराव ने अपना सारा जीवन दलितों की सेवा में बिताने का निश्चय किया था. उन दिनों में स्त्रियों की स्तिथि बहुत खराब थी. घर के कामो तक ही उनका दायरा था. .बचपन में शादी हो जाने के कारण स्त्रियों के पढने लिखने का तो सवाल ही पैदा नही होता था. दुर्भाग्य से अगर कोई बचपन में ही विधवा हो जाती थी तो उसके साथ बड़ा अन्याय होता था. तब उन्होंने सोचा कि यदि भावी पीढ़ी का निर्माण करने वाली माताए ही अंधकार में डूबी रहेगी तो देश का क्या होगा ये सोचकर उन्होंने महिला ओ के पढाने पर जोर दिया था.
ज्योतिराव फुले ने एक बड़ा और बेहतर स्कूल शुरु किया जहां जाति, धर्म तथा पंथ के आधार पर कोई भेदभाव नहीं रखा गया. उसके दरवाजे सभी जाती के लिये खुले रखे.
ज्योतिराव फुले बाल विवाह के खिलाफ थे, तो विधवा विवाह के समर्थक थे, शोषण का शिकार हुई महिलाओ के प्रति विशेष सहानुभूति रखते थे.
ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई फुले के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने काशीबाई नामक एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था. वह बच्चा बड़ा होकर एक डॉक्टर बना और उसने अपने माता पिता के नक्शेकदम पर चलकर अपने माता पिता के समाज सेवा के कार्यों को बखूबी आगे बढ़ाया.
मानवता की भलाई के लिए किये गए ज्योतिराव के इन निश्वार्थ कार्यों के कारण मई 1988 में उस समय के एक और महान समाज सुधारक “ राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर ” ने उन्हें “ महात्मा ” की उपाधी प्रदान की थी. कुछ विशेष :
*** फुले ने पुणे स्थित भिंडे वाडी मे ता : 3 अगस्त 1848 के दिन पहली महिला स्कूल शुरू की.
*** पुणे स्थित बुधवार पेठ मे ता : 17 सितंबर 1851 के दिन दूसरी महिला स्कूल शरू की.
*** ता : 15 मार्च 1852 के दिन वेताल पेठे मे भिडे के वाडे मे महिला की तीसरी स्कूल शुरू की.
*** सन 1852 मे दलितों के लिये स्कूल शुरू की.
*** सन 1855 के दिन प्रौढ़ो के लिये रात्रि स्कूल शुरू की.
*** सन 1863 मे बालहत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की. *** ता : 24 सप्टेंबर 1873 को सत्यशोधक समाजाची स्थापना, तथा व्हिक्टोरिया अनाथ आश्रमाची स्थापना की. *** सन 1880 मे महात्मा फुले की प्रेरणा से श्री ना. मे. लोखंडे ने भारत की पहली कामगार संघटना बॉम्बे मिल असोसिएशन की स्थापना की.
28 नवम्बर 1890 को ज्योतिराव फुले ने देह त्याग दिया और एक महान समाजसेवी इस दुनिया से हमेशा के लिये इस फ़ानी दुनिया को छोड़कर विदा हो गया.
ज्योतिराव की जीवनी पर अनेक महान लेखकों ने किताब लिखकर उन्हें गौरांवित किया है.
ज्योतिराव ने अछूतोद्धार के लिए उनके अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी. परिणाम स्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया. समाज सेवा के कार्यों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर विरोधी ओने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए.
ज्योतिराव फुले ने सुधारवादी विचार का प्रचार व प्रसार करने के लिये श्री कृष्णाराव भालेकर जी की मदद से पुनासे ” दीनबंधू ” नामक अखबार का प्रकाशन सन 1877 मे शुरू किया. अपने मित्रों के सहारे दलितों को शिक्षा देने मंडल नामकी संस्था स्थापन की.
सन 1888 मे विक्टोरिया रानी के चिरंजीव द्वारा एक आयोजित ( डयूक ऑफ़ केनोट ) कार्यक्रम मे किसानो के प्रतिनिधि के रूपमें उपस्थित रहकर उन्होंने किसानों की अनेक समस्या को उजागर किया.
ज्योतिराव फुले ने हंटर कमीशन के सामने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षण मुफ्त मे मिले ऐसा आग्रह किया. अतः उसे सन 1888 मे ” महात्मा ” की पदवी प्रदान की.
महात्मा फुले लिखित ” सार्वजनिक सत्यधर्म ” को सत्य शोधक समाज का प्रमाण ग्रंथ माना जाता है.” अस्पृश्यांची कैफियत ” यह महात्मा फुलें जी का अब तक अप्रकाशित ग्रंथ है.
भारतीय सामाजिक क्रांति के प्रथम जनक कहे जाने वाले महात्मा ज्योतिराव फुले महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, लेखक, दार्शिनक, संपादक और क्रांतिकारी थे. उन्होंने जीवन भर निम्न जाति, महिलाओं और दलितों के उद्धार के लिए कार्य किया. इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले ने भी पूरा योगदान दिया.
महात्मा फुले ने दलितों पर लगे अछूत के लांछन को धोने और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के लिये आमरण तक प्रयत्न किए. उनका मानना था कि यदि आजादी, समानता , मानवता, आर्थिक न्याय, शोषणरहित मूल्यों और भाईचारे पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है तो असमान और शोषक समाज को उखाड़ फेंकना ही होगा.
सावित्रीबाई फुले स्वयं इस स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं. इसके लिये उन्हें लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. यहां तक कि उन्होंने लोगों द्वारा फेंके जाने वाले पत्थरों की मार भी झेलने पड़ी थी.
विधवाओं की शोचनीय दशा को देखते हुए उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और सन 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम की स्थापना की तथा साथ ही , उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके. ता : 28 नवम्बर 1890 को महात्मा ज्योतिराव फुले की मृत्यु हुई.
महात्मा फुले ने समाज कार्य करते हुए अनेक पुस्तकें भी लिखीं. इनमें “तृतीय रत्न ” ” ब्रह्माणंचे कसाब “. ” इशारा” ” ” पोवाडा−छत्रपति शिवाजी भोंसले यांचा “. ” अस्पृश्यांची कैफि़यत ” इत्यादि प्रमुख हैं. संविधान के प्रणेता श्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी उनसे काफी प्रभावित हुए और महात्मा की ही राह पर चलते हुए उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए जिनका प्रत्यक्ष परिणाम आज देखा जा सकता है.
महात्मा गांधी ने ज्योतिराव फुले को ” खरा महात्मा ” शब्द से संबोधित किया था. बाबा साहेब आंबेडकर फुले को गुरु मानते थे. अस्पृश्य महिलाओ के तथा श्रमीक लोग के लिये महात्मा फुलें ने आयुष्यतक प्रयत्न किये.
श्री ज्योतिराव के कार्य को देखते , कई लोग आज भी फुले को असली राष्ट्रपिता मानते है.
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