मानवीय संवेदना ” स्पर्श ” Human Sense “Touch”

BABY TOUCH FINGER

              ” स्पर्श ” एक अनुभूति है. स्पर्श एक अहसास है. इसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता. ये बीना बोले बहुत कुछ कह जाता है. स्पर्श की परिभाषा का वर्णन करना अति कठिन है. स्पर्श एक संवेदना है. हर स्पर्श बीना बोले कुछ ना कुछ कहता है. जिसका सिर्फ अहसास कर सकते है. 

        प्रेमिका का स्पर्श सबको पसंद होता है. ऐसा पहला स्पर्श जिंदगी भर याद रहता है. स्पर्श हमें सही या गलत का अहसास कराने में भी अहम रोल अदा करता है.इसीलिए तो आजकल बेटियों को ” GOOD TOUCH ” और ” BAD TOUCH ” के बारेमें स्कूलों में सिखाया जाता है. 

        स्पर्श के अनेकों प्रकार है, जैसे माँ – बाप का स्पर्श, बहन का स्पर्श , दोस्त का स्पर्श, भाई का स्पर्श, प्रेमी प्रेमिका का स्पर्श. और हैवान का स्पर्श. विज्ञान की भाषा में स्पर्श तीन प्रकार के होते हैं (1) ऐक्टिव स्पर्श, (2) पैसिव स्पर्श, (3) सोशियल स्पर्श. ऐक्टिव स्पर्श वह भावनात्मक अहसास है जिसमें व्यक्ति की जॉइंट्स और मसल्स एक साथ काम करती हैं. पैसिव स्पर्श छूने के अहसास से ज्यादा स्किन के अंडरलाइंग टिशूज में सेंसेशन पैदा करने से संबंधित होता है. तथा सोशियल स्पर्श दो लोगों के बीच भावनात्मक जुड़ाव विकसित करता है.

       आजके जमाने में तो लड़का लड़की कॉलेज लाइफ से पहले स्कूल लाइफ से ही स्पर्श की अनुभूति करने लग जाते है. जिस तरह एहसास महसूस किया जाता है वैसे ही स्पर्श भी महसूस किया जाता है.

         सन 1969 में रिलीज हुई ” खामोशी ” फ़िल्म का एक गाना जिसे गुलजार साहब ने लिखा है. श्री हेमंत कुमारजी ने इसे संगीत से सवारा है. तथा कोकिल कंठी लता मंगेशकर दीदी ने अपनी सुरीली आवाज में गाया है. 

प्रस्तुत है गानेकी कुछ पंक्तिया. इसमे अहसास और स्पर्श का सुंदर समन्वय किया गया है. 

हमने देखी है उन आँखों की महकती ख़ुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक ख़ामोशी है, सुनती है, कहा करती है
न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है सिर्फ एहसास…

वाह गुलजार साहब, मान गये आपको. सैलूट. 

इंटरनेट पर स्पर्श के बारेमें एक सुंदर पंक्तिया पढनेको मिली. इसके रचनाकार कौन है ? पता नहीं मगर ये नेहा जी की पोस्ट है अतः उनके सौजन्य के साथ, शब्दो को छेड़छाड़ किये बीना प्रस्तुत करता हूं. 

पहला स्पर्श जब तूने माँ के रूप में मुझे किया,
बेटी बन तेरी कोख में मैं खिलखिलाई,
दूसरा स्पर्श जब पापा ने अपनी गोद मे लेकर किया,
उनकी प्यारी परी बन मैं मुस्कुराई,
तीसरा स्पर्श जब भाई ने राखी बंधवाने में किया,
उनकी छोटी प्यारी बहन बन मैं गुदगुदाई,
चौथा स्पर्श जब पति ने घूंघट उठाते समय किया,
उनकी धर्मपत्नी बन मैं शरमाई,
लेकिन जब पांचवा स्पर्श किसी हैवान ने किया,
तब एक पीड़ित बन मैं घबराई और लड़खड़ाई,

       ( वाह… वाह… रचनाकार को सैलूट )

रिश्तो के साथ स्पर्श की परिभाषा भी बदल जाती है.ये सुंदर कुछ पंक्तिया बहुत कुछ कहकर जाती है. सन 1980 में स्पर्श फ़िल्म का फिल्मांकन किया गया था जिसका लेखन और निर्देशन सई परांजपे ने किया था. मुख्य किरदार शबाना आज़मी और नसीरुद्दीन शाह ने निभाया था. फ़िल्म को सन 1985 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार – सई परांजपे को मिला था. फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का पुरस्कार भी उन्ही को मिला था. 

स्पर्श के बारेमें शास्त्रों में कहा गया है कि बड़ों के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए. हमारी मान्यताओं के मुताबिक जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो अहंकार समाप्त होता है और हृदय में समर्पण एवं विनम्रता का भाव जागृत होता है. अध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि, जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो यह किसी व्यक्ति के लिए नहीं होता है, यह आप उस परमात्मा को प्रणाम करते हैं जो व्यक्ति के शरीर में आत्मा के रूप में मौजूद होता है. चरण स्पर्श करते समय हमेशा दोनों हाथों से दोनों पैरों को छूना चाहिए. एक हाथ से पांव छूने के तरीके को शास्त्रों में गलत बताया गया है.

स्पर्श के बारेमें शास्त्रों में कहा गया है कि बड़ों के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए. हमारी मान्यताओं के मुताबिक जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो अहंकार समाप्त होता है और हृदय में समर्पण एवं विनम्रता का भाव जागृत होता है. अध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि, जब आप किसी का चरण स्पर्श करते हैं तो यह किसी व्यक्ति के लिए नहीं होता है, यह आप उस परमात्मा को प्रणाम करते हैं जो व्यक्ति के शरीर में आत्मा के रूप में मौजूद होता है. चरण स्पर्श करते समय हमेशा दोनों हाथों से दोनों पैरों को छूना चाहिए. एक हाथ से पांव छूने के तरीके को शास्त्रों में गलत बताया गया है.

      दृष्टिहीन लोग स्पर्श का सहारा लेकर नोटों में अंकित ब्रेल लिपि अनुसार चलनी नोटों की कीमत कोसटीक पहचानते है. माँ की ममता, वात्सल्य का स्पर्श सबसे निराला, आशिर्वाद स्वरूप होता है.     

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                       शिव सर्जन प्रस्तुति.

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