अत्र तत्र सर्वत्र भ्रस्ट्राचार फैला हुआ है. आज सभी जगह भ्रस्ट्राचार शिस्टाचार बन चूका है. मानवता के दुश्मन, अनीति जिसका धर्म बन चूका है , ऐसे लोग जिन्होंने लाज लज्जा का त्याग कर दिया है, ऐसे तमाम भेड़िये प्रवृति के लोगों के लिये भ्रस्ट्राचार सदाचार बन चूका है.
अनीति भ्रस्ट्राचार की जननी है. गरीब, लाचार, निर्दोष जनता ये सब जानती है मगर शासन प्रशासन के आगे लाचार है. आज आलम ये है की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गये तो क्या हुआ ? आगे रिश्वत दो और रिहा हो जाओ. पूरी सिस्टम ही भ्रस्ट्राचार में लिप्त हो चुकी है.
भ्रस्ट्राचार की यह दीमक कोई आजकी देन नहीं है. ये तो बर्षो से चली आ रही है. रिश्वत की हम बात करें तो आजसे 200 से 250 साल पहले ” ईस्ट इंडिया कंपनी ” मे काम पाने के लिये बड़ी मसक्कत करनी पड़ती थी. इसके लिये कोई निदेशक की सिफारिश होना जरुरी होता था. कंपनी के पास कुल 24 निदेशक थे. इसमे ज़्यादातर पुरुष ही काम करते थे. सिर्फ़ साफ़ सफ़ाई के लिए महिलाएं रखी जाती थीं.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी पाने के लिए सिर्फ़ सिफ़ारिश से काम नहीं चलता था. कंपनी को इसके लिए भी पैसे देने पड़ते थे ! उस वक़्त क़रीब पांच सौ पाउंड, गारंटी मनी के रूपमें देना पड़ता था. इसके अलावा अच्छे बर्ताव की गारंटी भी देनी पड़ती थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी में करियर की शुरुआत, बिना पैसे की नौकरी से करनी पड़ती थी…! पहले तो पांच साल बिना पगार काम करना पड़ता था. मगर 1778 में ये मियाद तीन साल कर दी गई थी.
कंपनी ने सन 1806 में कर्मचारी तैयार करने के लिए ” ईस्ट इंडिया कॉलेज ” शुरू किया था. हेलबरी में स्थित इस कॉलेज में कंपनी के मुंशियों बाबुओं को ट्रेनिंग दी जाती थी. यहां पर कर्मचारियों को इतिहास, क़ानून और साहित्य के साथ, साथ हिंदुस्तानी, संस्कृत, फारसी और तेलुगु ज़बानों की ट्रेनिंग भी दी जाती थी. मतलब भ्रस्ट्राचार का यह भूत लंबे समय से चलते आ रहा है.
लोकसभा में 24 जुलाई 2018 को भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) विधेयक, 2018 के पारित हो जाने से इस कानून को संसद की मंजूरी मिल गई है. यह विधेयक भ्रष्टाचार की रोकथान अधिनियम 1988 में संशोधन करता है.
यह विधेयक उन अधिकरियों को सुरक्षा प्रदान करेगा, जो अपना कार्य ईमानदारी से करते हैं. अब तक सरकारी कर्मचारियों पर रिश्वत लेने का आरोप तय होने के बाद 6 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल की सजा दिए जाने का प्रावधान था, जिसमें अब बदलाव करते हुए कारावास की सीमा बढ़ाकर 3 से 7 साल तक कर दी है.
कानून के मुताबिक अब तक रिश्वत लेना ही अपराध माना जाता था, लेकिन अब रिश्वत देना भी अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है. अपने फायदे या अप्रत्यक्ष रूप से काम को प्रभावित करने के लिए रिश्वत देने के आरोपी पर 3 से लेकर 7 साल तक जेल और जुर्माना लगाया जा सकेगा.
अखबारों में हम लोग खबरें पढ़ते रहते है की रिश्वतखोर को पकड़ा गया, मगर उसके बाद उनका क्या हुआ ? ये खबर वापिस सुननेको नहीं मिलती.
सरकारी बाबुओके काम में पारदर्शकता लाने की हम लोग बडी बडी बातें तो करते है मगर कही कभी कार्यान्वित होनेकी बात सुनाई नहीं देती है. कानून के रखवाले खुद भ्रस्ट्राचार में लिप्त है वो क्या दुसरोको न्याय दिलाएंगे. जब तक हमारे अधिनायक खुद आत्म निरिक्षण करके स्वताः नहीं सुधरते तब तक भ्रस्ट्राचार को नाबूद करना नामुमकिन है.
सभी पार्टियो को अपनी पार्टी चलानेके लिये धन की आवश्यकता है. यहीं कारण उन्हें भ्रस्ट्राचार करना जरुरी हो गया है. ये सभी की मज़बूरी है. चुनाव में जरुरत से ज्यादा खर्चा करना इसका मुख्य कारण है. इस देशमे भ्रस्ट्राचार जिस तरह फैला है यह देखते इसे नेस्तनाबूद करना मतलब,चाय से सक्कर अलग करना समान है.
भ्रस्ट्राचारने सरपंच से लेकर पार्षद, नगरसेवक, आमदार, सांसद,और कार्यपालिका के चपरासी से लेकर उपर तक फैला हुआ है, जिसने अधिकांश अधिकारी ओको चपेट में ले लिया है. भ्रस्ट्राचार की तुलना ब्लड कैंसर से की जा सकती है. जो नाइलाज है.
यहां तक की न्यायालय के कुछ जज तक को भी संदिग्ध नजर से देखा जाता है ? आज तो जिसकी लाठी ( पैसा ) उसीकी भैंस ( जीत ) जैसा माहौल है. ऐसे में गरीब जनता को न्याय मिलना संभव है ?
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शिव सर्जन प्रस्तुति.