माशूका की जुल्फों का आसियाना.

तेज तूफानी बारिस गिर रही थी. शाम के ठीक छह बजे होंगे. सुनसान रास्ते पर एक अकेली महिला, बस का इंतजार करते बस स्थानक पर खड़ी थी.

दूर देखा तो, चमकती हुईं दो हेड लाइट नजदीक आते दिखाई दे रही थी. वो धीरे धीरे आगे बढ़कर बस स्टैंड पर आकर रुक गई.

मगर वो बस नहीं एक कार थी. अंदर बैठा एक अजनबी इंसान ने उस महिला को लिफ्ट देने के उदेश्य से बस स्टैंड पर शायद कार को खड़ी रखी थी. उसने कार का दरवाजा खोला, और बोला कामिनी आप ! यहां इस वक्त ? अकेली ! सुधीर को लगा कोई स्वपना तो देख नहीं रहा हूं !!! अचानक सुधीर को सामने देखकर कामिनी को सुखद आश्चर्य हुआ.

वो बोली, में यहां बस का इंतजार कर रही हूं. सुधीर को देखकर उसका डर दूर हो चूका था. सुधीर बोला, कहां तक जाना है ? चलो मैं आपको छोड़ देता हूं. कामिनी बीना हिचकिचाहत कार में बैठ गई. कार आगे बढ़ने लगी. दरअसल दोनों कॉलेज काल में जिगरी दोस्त थे. दोनों ने शादी के बंधन में बंधने की सौगंध खाई थी. सुधीर को कामिनी के जुल्फों का आशियाना बनाना था.

मगर किस्मत को कुछ और मंजूर था. कामिनी के गरीब मा बाप को ये रिस्ता मंजूर नहीं था. उनको लगता था की वो लोग लड़के वालों के बरोबरी के नहीं थे. कामिनी उनकी एकलौती बेटी थी. बीचमे ही उन्होंने कॉलेज छुड़वाकर कामिनी की शादी उनकी बिरादरी में कर दी थी.

शादी के एक साल के भीतर ही कामिनी के माता पिता का दुःखद निधन हो जाता है.

गाडी सुनसान रास्ते से आगे बढ़ रही थी. बारिस थोड़ी कम हुईं. कामिनी ने चुपकी तोड़ी और बोली मुजे विकास नगर तक जाना है. इसपर सुधीर बोला, आपसे पहले ही मेरा घर आता है. चलो मेरा घर दिखा देता हूं. कामिनी ने कहां, नहीं, नहीं आज नहीं. कल मेरी छुट्टी है. कल रविवार है. में सुबह आपको मिलने आपके घर जरूर आउंगी. सुधीर ने घर का पता दिया और दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर शेयर किये.

ये कहानी की शुरुआत 1970 से होती है. जब सुधीर और कामीनी दोनों एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे.

सुधीर करोड़ पति बाप का एकलौता बेटा था. उनकी माता गृहणी थी. सुधीर गुजराती और कामिनी मराठी समुदाय से थी. सुधीर के मा बापने सुधीर को हा कह दीया था, मगर कामिनी के मा बाप तैयार नहीं थे. यहीं कारण वश कामिनी के मा बापने उसको बीचमे कॉलेज छुड़वाकर कामिनी की शादी पुणे स्थित उनके बिरादरी में कर दी थी.

समय बितता गया. कामीनी के सांस ससुर का देहांत हो गया. पति को दारू की लत लग गई, और एक दिन उसकी ट्रक की टक्कर से मौत हो गई. उसके माथे पर दुःखोंका पहाड़ आ पडा. कर्ज में घर बिक गया. वो पुणे से मुंबई आ गई. कामिनी को पता नहीं था की सुधीर ने नया घर उनके ही एरिया में लिया है. उसको उसी वक्त पता चला जब दोनों एक बस स्टैंड पर पहली बार मिले.

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत कामिनी रविवार को सुधीर को मिलने उसके घर जाने निकली. कामीनी शुभ्र शादी में कोई परी से कम नहीं लग रही थी. उसके घर के पते पर जाकर डोर बेल बजाई. अंदर से सुंदर, खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला.

स्वागत करते वो बोली, आवो बहन कामीनी! अंदर आवो. हम लोग आपही का इंतजार कर रहे थे. सुनकर कामीनी को अजीब सा अहेसास महसूस हुआ कि ये अनजान महिला उसे कैसे जानती है ! ? कामिनी ने घर में प्रवेश किया. सोफा पर सामने बैठा सुधीर ने बैठे बैठे ही कामिनी का स्वागत किया. आवो अंदर कामीनी ! संकोच मत करो. बैठो मैंने आपके बारेमें मेरी यह पत्नी स्वाति को सब कुछ बता दिया है.

तीनो एक सोफे में बैठे. कामिनी ने खुद के साथ घटी सब कहानी बता दी कि शादी के बाद उसके साथ क्या क्या हुआ. उसकी आंख से आंसू टपक रहे थे. स्वाति ने अपने रुमालसे कामिनीके टपकते आँसू पोछे.

स्वाति तु सुधीर से बात कर तब तक तेरे लिए मैं खीर बनाके लाती हूं. सुधीर ने बताया था कि तुझे खीर बहुत पसंद है. कॉलेज के दिनोंमे आप खीर खाने अपनी पसंदीदा होटल में जाते थे. यह कह कर स्वेता किचन में खीर बनाने चली गई.

कामिनी ने सुधीर से कहां कि वो पुनासे मुंबई आनेके बाद वो विकास नगर में भाड़े से रूम रहकर रहती है. और वो आदर्श विद्या मंदिर स्कूल में बच्चों को पढ़ाती है. इसके लिए वह बस में आती जाती है. दोनों ने पुरानी यादे ताज़ा की. तब तक स्वेता खीर बनाकर लायी. तीनो ने खीर का लुफ्त उठाया. दोपहर का खाना खाया और शाम को सुधीर कामिनी को उसके घर छोड़ आया.

अब तो सुधीर ऑफिस जाते समय कामिनी को साथ लेके जाता था और साथ लेके आता था. ये सिलसिला दो तीन महीना चला. एक रविवार के दिन स्वाति ने कामिनी को अपने घर खाना खाने बुलाया. स्वाति ने स्वादिस्ट खाना पकाया. तीनो ने साथमे बैठकर लुफ्त उठाया. तीनो के हसी मज़ाक में समय पास हो रहा था.

कामिनी के जानेसे पहले स्वाति ने कामिनी से कहां, कामिनी आपको तो पता है , हमारा बंगला कितना बड़ा है और इसमे हम दोनों मिया बीबी ही रहते है. वैसे आप वहां भाड़े की रूम में रहती हो. क्यों ना आप मेरे घर रहने आ जावो. पहले आनाकानी की, मगर बहुत आग्रह करने पर कामिनी साथ रहने को तैयार हो गयी.

दिन गुजरते गए. स्वाति को बीमारी ने घेर लिया. उसका स्वास्थय बिगड़ने लगा. डॉक्टर से निदान करने पर पता चला कि स्वाति को ब्लड कैंसर हुआ है. स्वाति अब समज चुकी थी वो अब वो साल डेढ़ साल की महेमान है. यह बात मिया बीबी सुधीर स्वाति ने कामिनी को नहीं बताई थी.

अब स्वाति ज्यादा करके आराम ही करती थी. एक दिन स्वाति ने सुधीर कामिनी को पास बुलाया. दोनों के हाथ

अपने हाथ में पकड़कर बोली, मैं अब कुछ महीनों की महेमान हूं. कामिनी मुजे ब्लड कैंसर हुआ है. मैं ज्यादा साल जी नहीं पाऊंगी. कामिनी बहन आज मैं सुधीर का हाथ तेरे हाथमे देती हूं. आज के बाद आप दोनो पति पत्नी के रुप में रहोंगे. आप दोनोंकी ख़ुशीमें ही मेरी ख़ुशी है. दोनों का स्वाति की सहमति से कोर्ट मेरेज हुआ.

इस बातको एक साल बीत गया. रविवार का दिन था. रातके बारा बजे थे. स्वाति को अस्वस्थ महसूस होने लगा. उसने दोनों को पास बुलाया. स्वाति की सांसे तेज चलने लगी. उसने खड़ा होने की कोशिश की मगर गिर गई. वो

कुछ कहना चाहती थी मगर कह ना सकी. उसकी आंखे एक पल के लिए खुली और बंद हो गई. तुरंत डॉक्टर को बुलाया. उसने स्वाति को मृत घोषित किया. दोनों पर दु:ख का पहाड़ गिर पड़ा. शास्त्रोक्त पद्धति से उसका पुरा क्रियाकरम किया गया.

कामिनी गर्भवती (PREGNANT) थी. उसे मेटरनिटी अस्पताल में भर्ती किया गया था. सुधीर वैटिंग रूम में बैठा था. अंदर से नर्स भागते हुईं आयी और सुधीर से बोली, बधाई हो. लड़की हुईं है. सुधीर का ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. कामिनीको मिला और कहां हमारी स्वाति बोर्न बेबी के रुप में वापस आयी है. उसका नाम “आहाना” रखा गया जिसका अर्थ होता है, “उगते हुए सूरज से निकलने वाले पहली किरण”

इस घटना को तीन महीने हो गए. एक दिन उनके बंगले पर एक लक्ज़री कार आकर खड़ी हुईं. उसमेसे दो काला कोट पहने वकील बाहर आये. उन्होंने बताया की स्वाति के पिता जी का अब देहांत हो चूका है. उसकी संपत्ति का एक मात्र वारस स्वाति है, और वसीयत नामा के अनुसार ” स्वाति टेक्सटाइल ” मील की स्वाति मालिक है.

स्वाति को पूर्वाभास हो चूका था की कैंसर के कारण अब उसकी मृत्यु निश्चित है इसीलिए उसने पिताकी सारी मिलनेवाली संपत्ति सुधीर के नाम पर वसीयत कर दी थी. अब सुधीर कामिनी करोड़ों पति बन चुके थे.

ठीक एक साल बीत गया. आज बिटिया आहाना का प्रथम जन्मदिन था. उसका जन्मदिन सादगी से मनाया. उस दिन सुधीर ने कामिनी से कहां, अब हमें पैसों की कमी नहीं है. मेरा बिज़नेस भी टॉप चल रहा है. क्योंना हम स्वाति के नाम से एक निशुल्क कैंसर अस्पताल खोले, ताकी कई लोगोंकी जान बचाई जा सके. सुनकर कामिनी को ख़ुशी हुईं ये तो सोने पर सुहागा है. पूछने की क्या जरुरत है ? इससे स्वाति की यादगिरी कायम रहेगी.

उसने शहर में एक प्लॉट ख़रीदा. अखबारों में जाहिरात की गई. काम शुरु हुआ, लोगोंने दान के रूपमें धन देना शुरु किया.अरबो का धन एकत्रित हुआ. दो सालमे अस्पताल बनकर तैयार हुईं. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा… “स्वाति कैंसर अस्पताल व रिसर्च सेंटर”

जहां गरीब कैंसर पीड़ितों का निशुल्क इलाज होने लगा.

स्वाति मरी नहीं…. वो जिंदादिल थी, जिंदादिल है और वो हम सबके बिच सदा जिंदा रहेंगी!

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →