” दरभंगा ” राज बिहार प्रान्त के मिथिला क्षेत्र में करीब 8380 कि. मी. के दायरे में अस्थित्व में था. और इसका मुख्यालय दरभंगा शहर था. इस राज की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी.
ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गाँव दरभंगा नरेश के शासन में थे. राज के शासन-प्रशासन के कारोबार देखने के लिए करीब 7,500 अधिकारी बहाल थे. भारत के रजवाड़ों में एवं प्राचीन संस्कृति को लेकर दरभंगा राज का महत्त्वपूर्ण और विशेष स्थान रहा है.
दरभंगा-महाराज खण्डवाल कुल से थे जिसके शासन-संस्थापक श्री महेश ठाकुर थे. इनका गोत्र शाण्डिल्य था. उनकी अपनी विद्वता व उनके शिष्य रघुनन्दन की विद्वता की चर्चा सम्पूर्ण भारत में होती थी. कहा जाता है कि, महाराजा मानसिंह के सहयोग से शहंशाह अकबर द्वारा उन्हें राज्य की स्थापना के लिए अपेक्षित सहयोग व धन प्राप्त हुई थी.
दरभंगा को ” मिथिलांचल का दिल ” कहा जाता है. दरभंगा राज अपने गौरव शाली अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. राजे रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है. ऐसे दरभंगा राज के आखिरी महाराजा कामेश्वर सिंह जी तो अपनी शान-ओ-शौकत के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे. इनसे प्रभावित होकर ही अंग्रेजों ने उन्हें ” महाराजाधिराज ” की उपाधि दी थी.
दरभंगा महाराज ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए का दान दिया था. पटना में बना अपना दरभंगा हाउस इस राज परिवार ने पटना विश्वविद्यालय को दान में दे दिया था. इसके अलावा कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में भी इस परिवार ने महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान दिया है.
आचार्य विनोबा भावे द्वारा चलाए गये भूदान आंदोलन के दौरान महाराज दरभंगा कामेश्वर सिंह ने पुराने पूर्णिया जिले में 15 हजार 411 एकड़ 71 डिसमिल जमीन दान में दी थी. इस जमीन का वितरण भूमिहीनों के बीच किया जाना था.
दरभंगा में देश का दूसरा लाल किला है. जो पूरी तरह दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर बनाया गया है. दरभंगा महाराज ने 85 एकड़ जमीन पर एक आलीशान किले को निर्माण कराया था. 1934 के भूकंप के बाद किले का काम शुरू हुआ था जो सालों तक चलता रहा था. किले के तीन तरफ करीब 90 फीट ऊंची दीवार थी, जो लाल किले से ऊंची है. इसे दिल्ली के लाल किले की तरह दिखने के कारण लाल किला कहा जाता है.
18 वीं शताब्दी के अंत से दरभंगा भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख केंद्रों में से एक बन गया था. दरभंगा राज के राजा संगीत, कला और संस्कृति के महान संरक्षक थें. दरभंगा राज से कई प्रसिद्ध संगीतकार जुड़े थे. उनमें प्रमुख थें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, गौहर जान, पंडित राम चतुर मल्लिक, पंडित रामेश्वर पाठक और पंडित सिया राम तिवारी.
दरभंगा राज ध्रुपद के मुख्य संरक्षक थे, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक मुखर शैली थी. ध्रुपद का एक प्रमुख विद्यालय आज दरभंगा घराना के नाम से जाना जाता है. आज भारत में ध्रुपद के तीन प्रमुख घराने हैं – डागर घराना, बेतिया राज (बेतिया घराना) के मिश्र और दरभंगा (दरभंगा घराना) के मिश्र.
महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह एक अच्छे सितार वादक थें. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान कई सालों तक दरभंगा राज के दरबारी संगीतकार रहे थे उन्होंने अपना बचपन दरभंगा में बिताया था.
सन 1887 में दरभंगा के महाराजा के समक्ष गौहर जान ने अपना पहला प्रदर्शन किया था और उन्हें दरबारी संगीतकार के रूप में नियुक्त किया गया था. 20 वीं सदी के शुरुआती दौर के प्रमुख सितार वादकों में से एक पंडित रामेश्वर पाठक दरभंगा राज में दरबारी संगीतकार थें.
दरभंगा राज ने ग्वालियर के नन्हे खान के भाई मुराद अली खान का समर्थन किया था. मुराद अली खान अपने समय के सबसे महान सरोद वादकों में से एक थें. मुराद अली खान को अपने सरोद पर धातु के तार और धातु के तख्ती प्लेटों का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति होने का श्रेय दिया जाता है, जो आज मानक बन गया है.
कुंदन लाल सहगल महाराजा कामेश्वर सिंहके छोटे भाई राजा बिशेश्वर सिंह के मित्र थे. जब भी दोनों दरभंगा के बेला पैलेस में मिले, गजल और ठुमरी की बातचीत और गायन के लंबे सत्र देखे गए. कुंदन लाल सहगल ने राजा बहादुर की शादी में भाग लिया, और शादी में हारमोनियम बजाया था.
दरभंगा राज का सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा और पुलिस बैंड था. मनोकामना मंदिर के सामने एक गोलाकार संरचना थी, जिसे बैंड स्टैंड के नाम से जाना जाता था. बैंड शाम को वहाँ संगीत बजाता था. आज बैंडस्टैंड का फर्श अभी भी एकमात्र हिस्सा है.
” मिथिलांचल का दिल ” – ” दरभंगा.” के बारेमें कुछ जानकारी हासिल की थी आज आगे…….
दरभंगा के लोक निर्माण कार्य :
*** महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह बहादुर ने स्कूल, डिस्पेंसरी और अन्य सुविधाओं का निर्माण किया और उन्हें जनता के लाभ के लिए अपने स्वयं के धन से बनाए रखा.
*** दरभंगा राज के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह बहादुर ने दरभंगा में सभी नदियों पर बनाए गए लोहे के पुलों का निर्माण शुरू किया था.
*** मुजफ्फरपुर जजशिप के निर्माण और उपयोग के लिए 52 बीघा भूमि दान किया था.
*** दरभंगा राज में किसानों के लिए सिंचाई प्रदान करने के लिए इस क्षेत्र में खोदी गई कई झीलें और तालाब थे और इस प्रकार अकाल को रोकने में मदद मिलती थी.
*** दरभंगा राज द्वारा 19वीं सदी के शुरुआती भाग में 1,500 किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण किया गया था.
*** वाराणसी में राम मंदिर और रानी कोठी जैसे कई धर्मशालाओं (धर्मार्थ आवासों) का निर्माण किया गया था.
*** बेसहारा लोगों के लिए घरों का निर्माण किया गया था.
*** मुंगेर जिले में मान नदी पर एक बड़ा जलाशय कहारपुर झील का निर्माण किया गया था.
*** दरभंगा राज दुग्ध उत्पादन में सुधार के लिए क्रॉस-ब्रीडिंग मवेशियों का अग्रणी था. दरभंगा राज द्वारा हांसी नामक एक बेहतर दूध देने वाली गाय की नस्ल पेश की गई.
आज से 146 साल पहले दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह के जमाने में उनके किले के अंदर तक रेल लाइनें बिछाई गई थी और ट्रेनें आती-जाती थीं. दरअसल, सन 1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत की थी. उस वक्त उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था. तब राहत कार्य के लिए समस्तीपुर के बाजितपुर से दरभंगा तक के लिए पहली ट्रेन मालगाड़ी चलाई गई थी.
महाराजा श्री लक्ष्मेश्वर सिंह ने उत्तर बिहार में रेल्वे लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी बनाई थी और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया. इसके लिए अपनी जमीन तक उन्होंने तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और एक हज़ार मज़दूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई गई थी. उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान है.
उनकी कंपनी तिरहुत रेलवे ने सन 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की इनमें से प्रमुख लाइन…..
दरभंगा-सीतामढ़ी, सकरी-जयनगर, समस्तीपुर-खगड़िया, समस्तीपुर-दलसिंहसराय, समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर-मोतिहारी, मोतिहारी-बेतिया, हाजीपुर-बछवाड़ा, और नरकटियागंज-बगहा लाइनें प्रमुख हैं इसके अलावे भी विभिन्न जगहों से अनेक ट्रेने चलाई गई थी.
इसके अलावा महाराजा ने अपने लिए पैलेस ऑन व्हील नाम से भी एक ट्रेन चलाई थी, जिसमें राजसी सुविधाएं मौजूद थीं. इस ट्रेन में चांदी से मढ़ी सीटें और पलंग थे. इसमें देश-विदेश की कई हस्तियों ने दरभंगा तक का सफर किया था. देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, कई रियासतों के राजा-महाराजा और अनेक अंग्रेज अधिकारी शामिल थे. उस वक्त श्री महात्मा गांधी को छोड़ भारत एवं विदेशों के हर बड़ी हस्ती ने इस शाही ट्रेन के सफर का लुत्फ उठाया था.चूंकि महात्मा गांधी थर्ड क्लास में ही सफर करते थे और इस ट्रेन में राजशाही वाली व्यवस्था थी.
वर्तमान में दरभंगा आज एक शहरी समूह है, जो शहरी टाउन की श्रेणी में आता है. यह पूर्वी भारत में बिहार राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित है. वर्तमान में, दरभंगा शहर में पुराने दरभंगा राज और लाहेरियासराय के जुड़वां कस्बे शामिल हैं. वर्तमान में दरभंगा आज दरभंगा नगर निगम और दरभंगा डिवीजन और दरभंगा जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है. यह उत्तर बिहार में मिथिलंचल के दिल में स्थित प्रमुख जिलों और शहरों में से एक है और इस प्रकार यह मिथिलंचल की एक अनौपचारिक राजधानी भी है.