मिराभाईंदर की बढ़ती आबादी और भवन निर्माण मे होने वाला विलंब. Part LX

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कोई भी देश के विकास मे जनगणना का विशेष महत्त्व होता है. जिससे एक दिशा निर्धारित करना, जलपुरती, खाद्य सामग्री का आबादी के अनुसार पुरवठा करना, शैक्षणिक, सामाजिक स्थिति के अनुसार भावी योजना को कार्यान्वित करना, जनसंख्या के आधार पर सुविधा उपलब्ध कराने जैसे अनेक कार्य का आयोजन किया जा सकता है.

भारत में प्रतिदिन 68,500 बच्चे जन्म लेते हैं, जो दुनिया में जन्‍म लेने वाले बच्चों का पांचवा हिस्सा है. और उसके अनुपात मे प्रतिदिन 22,500 लोगोंकी मौत होती है.

अब आप समज सकते हो कि कुछ सालमेही हमारे देश की जनसंख्या विश्व मे सबसे अधिक क्यों हो जाने वाली है.

मिरा भाईंदर महानगर पालिका की बात करें तो सन 1936 मे भाईंदर पूर्व पश्चिम की कुल जनसंख्या करीबन 5000 की थी. उस समय भाईंदर पूर्व खारीगांव की जनसंख्या सिर्फ 200 लोगोंकी थी.

उसके बाद सन 1961 मे यहां की जन संख्या करीब 9500 की हो गई थी. भारत देश की प्रथम जन गणना सन 1964 मे की गईं थी. बाद हुई सन 1981 की जन गणना के अनुसार मिरा भाईंदर की जन संख्या 35121 की थी. 12 जून 1985 को यहां मिरा भाईंदर नगर पालिका की स्थापना हुई थी.

उसके बाद बस्ती विस्फोट होते गया और सन 1991 मे मीरा भाईंदर शहर की कुल जनसंख्या 175372 हो गई. जो सन 2001 मे बढ़कर कुल 520000 तक पहुंच गई. सन 2002 मे मिरा भाईंदर शहर महानगर पालिका के रूपमें अस्थित्व मे आया. सन 2011 मे हुई जनगणना अनुसार मीरा भाईंदर की कुल जनसंख्या 809378 तक पहुंच गई थी. वर्तमान 2021 मे आज मीरा भाईंदर की जनसंख्या 15 लाख से उपर होने का अनुमान किया जा रहा हे.

मिरा भाईंदर क्षेत्र की जन संख्या तेजीसे बढ़ने का मुख्य कारण, मुंबई महानगर मे बढ़ते निवासों के दाम की वजह से लोग सस्ते दाम की शोध मे भाईंदर, नायगांव, वसई और विरार की ओर आकर्षित हुए. नये लोग आते गये और यहांकी जन संख्या मे दिन दुगुना रात चौगुना की तरह यहां जन संख्या मे वृद्धी होती गई.

दूसरा कारण यह भी था की वसई, विरार और नायगांव मे आवासों के दाम मिरा भाईंदर की तुलनामे कम जरूर थे मगर वहां पानीकी विकट समस्या और वारंवार बिजली खंडित होनेके कारण लोग मिरा भाईंदर को ही उपयुक्त समजने लगे. और बुलेट की रफ़्तार से यहां की जन संख्या मे बढ़ोतरी हुई.

बढ़ती आबादी के अनुसार यहां पर ग्रामपंचायत से नगर पालिका और नगर पालिका से महा नगर पालिका की स्थापना की गई मगर बढ़ती आबादी के अनुपात मे यहां सुविधाएं उपलब्ध ना होनेकी वजह अनेक समस्या का समुंदर निर्माण हुआ. जन सुविधा के अभाव के कारण यहां का विकास कार्य कछुआ गति से आगे बढ़ा.

GST के अमल के चलते शहर के कई लघुद्योग मृतप्राय हुए. तो उसके बाद करोना के कहर ने लोगोंकी कमर तोड़ दी. लोगोंको भूखे मरने की नौबत वक्त आ गई. चश्मा कंपनी की मंदी के कारण अनेकों को नौकरी से हाथ धोना पडा. कई कामगार नगर पालिका के सफाई काम मे भरती हुए तो कई लोग आजीविका के लिए रिक्शा चलाने लगे.

नव निर्माण मेट्रो ट्रैन प्रकल्प और भाईंदर (प ) सुभासचन्द्र बोस ग्राउंड से पांजू , नायगांव ,वसई , विरार मार्ग तथा भाईंदर से ठाणे जलमार्ग का लोकार्पण शुरु होनेसे जनता को काफ़ी हद तक जरूर राहत मिलेगी.

भाईंदर की सबसे बडी समस्या मे एक बडी समस्या यहाके बिल्डिंगो के पुनः निर्माण की है. एक बार पुरानी बिल्डिंग टूटने के बाद ऐसी बिल्डिंग के पुनः निर्माण मे सालो साल लग जाते है. इसका मुख्य कारण एक ये भी हो सकता है की तत्कालीन विकासकर्ता ने उस समय अधिक FSI का उपयोग करके अनधिकृत बांधकाम किया हो.

दूसरा कारण ये भी हो सकता है, की कॉ ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी मे काम करने वाले मेम्बरों की कमी. दो या तीन मेंबर के शिवा अन्य मेम्बरों की काम करने की उदासीनता.

एक ओर कारण कन्वेन्स डीड यांनी मालकी हक का सात बारा उतारा मे सोसाइटी का नाम सामिल करना. कभी ऐसा भी देखा जाता है कि जमीन किसी एक की होती है, दूसरा विकास करता है, और तीसरा खरीददार होता है. ऐसे मे कन्वेन्स डीड सोसाइटी के नाम पर करना जरुरी होता है.

ऐसे कामोमे विलंब के कारण नव निर्माण होने वाले भवन मे काफ़ी समय लग जाता है. एक बार बिल्डिंग गिरा देनेके बाद सभी मेम्बरो का आपस मे एक साथ मिलना असंभव हो जाता है.

जमीन मालिक ( land lord ) कन्वेन्स सोसाइटी के नाम ट्रांसफर करने अधिक पैसे मांगता है और विकास कार्य मे रुकावट आती है.

भवन निर्माण मे सरकारी परवाना हासिल करने मे पारदर्शकता लानी अति आवश्यकता है. ताकी निर्माण कार्य तेजी से हो सके.

——=== शिवसर्जन ===——

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