आजसे 35 साल पहले के श्मशान की दुर्दशा देखकर सिर शरम से झुक जाता था. चारो और कचरे के ढेर, गंदगी की बदबू,आवारा पशुओंका जमावड़ा और
सुविधाओ की शून्यता से लोग परेशान थे. लोगोंको बैठने तक की जगह नहीं थी. श्मशान मे आये लोगो को नर्क का अहसास होता था.
ब्लैक एंड वाइट तस्वीर मे दिखाई दे रहा श्मशान बंदरवाड़ी मे खारीगांव वाले लोगोंके लिए था. तस्वीर मे आप देख सकते है कि ये श्मशान नहीं, कोई डंपिंग ग्राउंड लगता है. आजुबाजु की इंडस्ट्रीज का कचरा रात के समय यहीं पर फेंक दिया जाता था.
सुबह मे आजुबाजु के लोग यहां पर अपना पेट हलका करते थे. जिससे आलम यह था कि श्मशान मे आये लोगोंको चलने के लिए पाव रखने तक की जगह नहीं रहती थी. नगर पालिका की स्थापना होने के कई साल तक ऐसी परिस्थिति थी.
इस संबंध मे भाईंदर के लोकप्रिय हिंदी समाचार पत्र “भाईंदर भूमि” तथा ” संदेश ” अखबार ने कई बार इसके समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किये थे.
ऐसी ही हालत गोड़देव, नवघर तथा भाईंदर पश्चिम के राई, मुर्धा, मोरवा तथा मीरारोड के श्मशानों की थी. उस वक्त ना स्ट्रीट लाइट, ना ही पक्के रोड, ना गटर का ठिकाना. लोग पानी की एक एक बूंद के लिए तरसते थे. तत्कालीन
भवन निर्माता अनधिकृत बांधकाम मे लगे थे. ना कोई प्लान, ना विकास आराखड़ा, सब जगह ठोंकम ठोक का दौर चलता था.
लाश को जलाने के लिए लकड़ी तक दूरसे लानी पडती थी. बारिस के समय मे मुस्किले ओर बढ़ जाती थी.
वर्तमान मे कई श्मशानो मे पानी तथा लकडी और पंखे जैसी सुविधा उपलब्ध है. बाग बगीचे से श्मशान को सुशोभित किया गया है. भाईंदर पश्चिम मे तो शव दाह के लिए इलेक्ट्रिक भठ्ठी भी लगाई गई है. कई श्मशानों मे शिव जी के मंदिर की स्थापना की गई है.
उल्लेखनीय है कि मिरा भाईंदर महा नगर पालिका क्षेत्र मे आवारा तथा पालतू पशुओंको दफ़नाने के लिए एक भी जगह दफ़न भूमि नहीं है. इस संदर्भ मे ” शांति सेवा फाउंडेशन ” संस्था की संस्थापक अध्यक्षा समाज सेविका श्रीमती नीलम तेली जैन विगत दो साल से मिरा भाईंदर प्रशासन से पशुओके लिए दफ़न भूमि की मांग कर रही है. मगर अभी तक आश्वाशन के अलावा कोई प्रगति नहीं हुई है.
वर्त्तमान मे पालतू तथा आवारा पशुओंकी लाश को लोग रातके समय रोड के उपर फेंक देते है. जिससे दुर्गंध तो फ़ैलती ही है, साथमे वायु प्रदुषण से हवाका संतुलन बिगड़ता है.
——=== शिवसर्जन ===——