मुगल बादशाह अकबर के वजीर “बीरबल.” (श्री महेशदास दुबे ऊर्फ बीरबल)

Birbal

बादशाह अकबर का शाही दरबार उनके 9 रत्नों की वजह दुनिया भर में पहचाना जाता है. उन सभी रत्नों में बीरबल का दर्जा सबसे ऊंचा था. बीरबल उनके दिमाग और चतुराई की वजह से तथा मुश्किल हालातों में भी संतुलन न खोने की क्षमता के कारण प्रसिद्ध हो गये. अकबर-बीरबल के ढेरों किस्से हैं, जिनमें मुश्किल से मुश्किल हालात को बीरबल का तेज दिमाग झट से संभाल लेता था.

         बीरबल हाजर जवाबी था. मुगल बादशाह अकबर के दरबार का प्रमुख वज़ीर और अकबर के परिषद के 9 रत्न सलाहकारों में से एक था. उनका जन्म महर्षि कवि के वंशज भट्ट हिंदू गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वह बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे. प्रारम्भ में ये पान का सौदा बेचते थे. जिसे सामान्यतः “पनवाड़ी” (पान बेचने वाला) कहा जाता है. 

        उनकी पत्नी का नाम उर्वशी देवी था जिनसे उन्हें एक पुत्री हुयी थी जिसका नाम सौदामिनी रखा गया था. बीरबल 

 बृज भाषा के जानकार और अच्छे कवि थे. कला के बेहद प्रेमी थे. अतियंत चतुर और बुद्धिमान थे. इन्हीं खूबियों की वजह अकबर के करीबी और दोस्त बन गये थे. प्रभावित होते गए और जल्दी ही दोनों की दोस्ती गहराने लगी. 

      बीरबल का मूल नाम महेशदास दुबे था और उनका जन्म मध्य प्रदेश के सिधी जिले के घोघरा में हुआ था. बीरबल के पिता गंगादास का निवास घोघरा गांव में था. बीरबल की माता अनभा देवीने सन 1528 में रघुबर और महेश नाम के जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था. यहीं महेश आगे चलकर बीरबल के नामसे प्रसिद्ध हुआ. आज भी मध्य प्रदेश के सिधी जिले में सोन नदी के पार बसा घोघरा वैसा ही है जैसा कई सौ साल पहले हुआ करता था.

     बीरबल की 37 वीं पीढ़ी भी इसी गांव में रह रही है और ये लोग मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं. अकबर के साम्राज्य में दरबारी और सलाहकार रहे बीरबल के जन्म स्थान के बारे में मत मतांतर है. कुछ विद्वान उन्हें आगरा के निवासी, कोई कानपुर के घाटमपुर तहसील के, कोई दिल्ली के निवासी और कोई मध्य प्रदेश के सीधी जिले का निवासी बताते हैं. मगर ज्यादातर विद्वान मध्य प्रदेश के सीधी जिले के घोघरा गाँव को ही बीरबल का जन्मस्थान स्वीकार करते हैं. 

          शहंशाह अकबर ने बीरबल को “वीर वर” का खिताब दिया था, आगे चलकर लोग उन्हें वीरवर से बीरबल पुकारने लगे. और बीरबल कई कहानियो, लोककथाओं का हिस्सा बन गए हैं. माना जाता है कि ” बीरबल ” बादशाह अकबर के दरबार में साल 1556 के दौरान शामिल हुए थे तब वे 28 साल के थे. 

            राजसी मामलों में अपनी काबिलियत की वजह से बीरबल बादशाह के चहेते बन गए. उन्हें राजा के ओहदे से नवाजा गया था ऐसा कहा जाता है कि तब उनके पास 2000 सैनिक भी थे. 

             जब फतेहपुर सीकरी का निर्माण हो रहा था, तब अकबर ने बीरबल के लिए भी एक किला बनवाने को कहा था ताकि उनकी मुलाकातें रोज हो सकें. ये भी माना जाता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्त तक अकबर के खास वजीर के तौर पर काम करते हुए एक बार भी बीरबल को दरबार न आने की सजा नहीं मिली थी. 

        माना जाता है कि 16 फरवरी 1586 (उम्र 57-58) को अफगानिस्तान के युद्ध में एक बड़ी सैन्य मंडली के नेतृत्व के दौरान बीरबल की मृत्यु हो गयी थी. बीरबल न सिर्फ वजीर ए आजम थे, बल्कि मुगल बादशाह अकबर के जिगरी दोस्त भी थे. कहा जाता है कि बीरबल की मौत ने अकबर को भीतर से तोड़ दिया था.यहां तक कि दरबार के काम में भी उनकी रुचि खत्म हो गई थी. 

           बीरबल की मौत के पश्चात अकबर के जीवन में बड़ा बदलाव दिखा. खाना-पीना छोड़कर वे झरोखे से देखा करते और दरबारी काम से विरक्त होते गए. लगभग सालभर तक ये चलता रहा.

       बीरबल की मौत के बारेमें कहां जाता है की सन 1586 में बीरबल और ज़ैन खान कोका को स्वात और बाजौर क्षेत्रों में पश्तून युसुफ़ज़ाई के खिलाफ एक अभियान पर भेजा गया था. वहां दोनों नेताओं के बीच असहमति के कारण बीरबल के खिलाफ एक जाल बुना गया और धोखे से काबुल की धूसर पहाड़ियों से नीचे दिया गया. यहां तक कि बीरबल की लाश तक नहीं मिल सकी.अकबर के शासनकाल में ये मुगलों की सबसे बड़ी हार थी. जिसमें करीब 8000 से ज्यादा मुगल सैनिकों की जान गई थी. 

        इसमे बीरबलकी मौत के लिये अकबर बादशाह को सदमा लगा था. उन्होंने दो दिन तक न कुछ खाया और न पिया. दरम्यान तुरान का राजदूत भी राजसी चर्चा के लिए अकबर के पास आया हुआ था लेकिन उन्होंने उससे मिलने से भी मना कर दिया. अपने सबसे विश्वस्त और करीबी शख्स को खोने का दुख इतना ज्यादा था कि वे दिन-दिनभर झरोखे से बाहर देखते रहते थे. 

      बादशाह की हालत देख नौ-रत्नों में से एक अबुल फज्ल ने अकबरनामा में लिखा था कि वजीर की मौत ने उन्हें इतना दुख दिया कि उनका दिल हर बात से उठ गया था. बीरबल की लाश न मिलने की वजह से बाद के लगभग सालभर तक बादशाह अकबर काफी अस्थिर रहे

          सदमे से उबरने के बाद भी अकबर बीरबल की लाश खोजने के लिए काबुल जानेकी जिद पर अड़े हुए थे.अकबर चाहते थे कि शव का सही ढंग से अंतिम संस्कार हो सके. हालांकि बाद में दरबारियों के ये कहने पर कि बीरबल का शव सूरज की किरणों से ही पवित्र हो गया होगा, अकबर ने काबुल जाने का इरादा छोड़ दिया था. 

     कई बार अफवाहें उड़तीं कि बीरबल जिंदा हैं और फलां जगह देखे गए हैं. कोई कहता है कि वे संन्यासी होकर फलां जगह रह रहे हैं. जैसे ही ये बातें अकबर के कानों पहुंचती,वे तुरंत अपनी सेना को उस जगह भेज देते ताकि बीरबल का कुछ पता लग सके. 

         अकबर दरबारी काम-काज सामान्य तरीके से करते दिखने लगे लेकिन उनके भीतर कुछ टूट गया था. वे उस फतेहपुर सीकरी में लौटने की हिम्मत नहीं जुटा सके, जहां उनके विश्वसनीय वजीर, करीबी दोस्त बीरबल की यादें थीं. 

   ——-===शिवसर्जन ===———

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →