मेजर धनसिंह थापा की शौर्य गाथा. I Dhan Singh Thapa

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सन 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध शुरु हो चूका था. ता: अक्टूबर की रात को चीनी सैनिकों ने गलवान की सिरिजाप चौकी पर हमला किया. चौकी की जिम्मेदारी मेजर श्री धनसिंह थापा की अगुवाई में गोरखा रेजिमेंट संभाल रहा था. इस टुकड़ी में कुल 27 जवान शामिल थे. जबकि चीन की टुकड़ी में करीब 600 से ज्यादा सैनिक सामिल थे.

चीन के सैनिकों ने मोर्टार और आर्टिलरी से हमला किया था. इस बीच भारतीय सैनिकों ने बंकर को और भी गहरा किया और मोर्चा संभाल लिया. भारतीय जवानों ने लाइट मशीन गन से जवाबी हमला किया.

थापा की टुकड़ी का संपर्क टूट गया. इस भीषण गोलीबारी में कई रेडियो सेट्स खराब हो गए. धनसिंह थापा की टुकड़ी का संपर्क टूट गया था. पर थापा और उनके सेकंड इन कमांड सूबेदार मिन बाहुदर गुरुंग का हौसला बरकरार रहा था. दोनों एक पोस्ट से दूसरे पोस्ट की तरफ भागते हुए मशीन गन से फायरिंग करते रहे. चीनी फौज जब पोस्ट के एकदम से करीब आ गई तो उन लोगों ने बम फेंकना शुरू किया. भारतीय सैनिक भी जवाब दे रहे थे.

हमारी गोरखा रेजिमेंट और चीनी सैनिकों के बीच में भीषण लड़ाई चल रही थी. दोनों तरफ से फायरिंग हो रही थी. तब धनसिंह थापा 27 जवानों के साथ इस पोस्ट पर डटे थे. लेकिन अब उनके साथ सिर्फ 7 जवान बचे थे. इस समय चीनी फौजियों ने एक बार फिर हैवी मशीन गन और रॉकेट लॉन्चर से हमला किया.

इस बार चीनी सैनिक झील की तरफ से भी एंफिबियस बोट्स से आए. भारत के दो स्टॉर्म बोट्स ने चीनी नावों पर हमला बोल दिया. चीनी हमले में भारत की दोनों नाव बर्बाद हो गई. अब तक सिर्फ 3 सैनिक धनसिंह थापा के साथ बचे थे. इसके बावजूद भी उन्होंने लड़ाई जारी रखी. थापा ने खुखरी से कई चीनी सैनिकों को खात्मा किया. लेकिन कुछ ही देर में धनसिंह थापा समेत 4 भारतीय सैनिकों को चीनियों ने बंदी बना लिया.

जब भारतीय चौकी पर चीनी कब्जे का समाचार सेना मुख्यालय पहुंचा तो सबने मान लिया कि मेजर धनसिंह थापा भी शहीद हो गए हैं. 28 अक्टूबर को उनके परिवार को चिट्ठी लिखकर उनके शहीद होने की सूचना भी दे दी गई. परिवार ने उनके अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं भी पूरी कर ली. लेकिन जब युद्ध समाप्त हुआ और बादमें चीनी सरकार ने युद्ध बंदियों की लिस्ट सौंपी तो उसमें मेजर धनसिंह थापा का नाम भी था. इसके बाद उनको रिहा कर दिया गया. 10 मई 1963 को धनसिंह थापा का भारत लौटने पर भव्य स्वागत किया गया.

धनसिंह थापा अपने घर पहुंचे तो उनकी पत्नी विधवा का जीवन जी रही थीं. इसके बाद धार्मिक मान्यता के मुताबिक उनका मुंडन किया गया और फिर से नामकरण किया गया. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ फिर से सात फेरे लिए. इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन फिर से शुरू हुआ.

मेजर धन सिंह थापा का जन्म ता : 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. 8 अगस्त 1949 को धनसिंह गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में शामिल हुए थे. मेजर धनसिंह थापा ने चीन युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका.

पहले शहादत की खबर आने के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. लेकिन जब वो लौटे तो देश ने उनका भव्य स्वागत किया. उनकी बहादुरी के लिए उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

उनकी मृत्यु 6 सितंबर 2005 में महाराष्ट्र के पुणे में हुई थी.

उल्लेखनीय है कि परमवीर चक्र को 21 बार सम्मानित किया गया है, जिनमें से कुल 14 को मरणोपरांत सम्मानित किया गया और 16 भारत पाकिस्तान संघर्षों में कार्यों से उत्पन्न हुए. 21 पुरस्कार विजेताओं में से 20 भारतीय सेना से हैं, और एक भारतीय वायु सेना से है.

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