कभी आप लोगोंने सोचा है ? कि यदि चंद्रमा न होता तो क्या होता? यक्ष प्रश्न है. उत्तर जानना दिलचस्प होगा!
नहीं देख सकेंगे सूर्य और चंद्र ग्रहण :
चांद के नहीं होने से चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण कभी नहीं होगा.जब चांद ही नहीं होगा तो सूरज को ब्लॉक करने वाली कोई वस्तु नहीं होगी और इस वजह से सूर्य ग्रहण भी नहीं होगा. वहीं, दूसरी तरफ बिना चांद के चंद्र ग्रहण तो हो ही नहीं सकता.
चंद्रमा के बीना पृथ्वी की धुरी का झुकाव समय के साथ बदलता रहेगा. जिससे पृथ्वी पर खतरनाक मौसमी बदलाव देखने को मिलेगा. वर्तमान में पृथ्वी 23.5 डिग्री पर झुकी है, लेकिन चांद के बिना यह बहुत ज्यादा झुक सकती है या शायद झुकी ही रह सकती है. इस वजह से धरती पर तेज हवा की रफ्तार में बढ़ोतरी होगी और इसके कारण अजीबोगरीब मौसम देखने को मिलता.
यही चंद्रमा यदि न होता, तो पृथ्वी का नज़ारा कुछ और ही होता. न चांदनी रातें होतीं, न कवियों की कल्पनाएं. रातें और भी अंधियारी और कुछ और ठंडी होतीं ; इसलिए क्योंकि चंद्रमा अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य-प्रकाश और उसकी गर्मी का एक हिस्सा पृथ्वी की तरफ परावर्तित कर देता है.
सबसे बड़ी बात यह होती कि पृथ्वी पर के समुद्रों में ज्वार-भाटा भी नहीं आता. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से ही पृथ्वी पर ज्वार-भाटा पैदा होता है. बहुत संभव है कि समुद्री जलधाराओं की दिशाएं भी आज जैसी नहीं होतीं.
हमारी पृथ्वी का एक दिन 24 घंटे का होता है. लेकिन, अगर चांद नहीं हो तो धरती पर एक दिन केवल छह से बारह घंटे का ही होगा. इस हिसाब से एक साल में दिनों की संख्या भी बढ़कर एक हजार से ज्यादा हो सकती हैं.
” चंद्रमा ” के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से पृथ्वी का घूमना धीमा होता है. जिसके कारण दिन 24 घंटे का होता है. लेकिन चांद अपनी जगह से गायब हो जाएगा तो चांद का गुरुत्वाकर्षण बल नहीं होगा. इससे पृथ्वी तेजी से घूमेंगी और दिन तेजी से बीत जाएगा.
वैज्ञानिको का कहना हैं कि यदि चंद्रमा नहीं होता, तो पृथ्वी पर मानव जाति का अभी तक उदय भी नहीं हुआ होता. यानी विकासवाद अभी बंदरों और जानवरों तक ही पहुँच पाया होता. ऐसा इसलिए, क्योंकि चंद्रमा के न होने पर ज्वार-भाटे नहीं होते और उनके न होने से भूमि और समुद्री जल के बीच पोषक तत्वों के आदान-प्रदान की क्रिया धीमी पड़ जाती. इससे विकसवादी प्रक्रिया ही धीमी पड़ जाती.
चंद्रमा के कारण पृथ्वी की अक्षगति का धीमा पड़ना आज भी जारी है. हर सौ वर्षों में वह 0.0016 सेकंड, यानी हर 50 हज़ार वर्षों में एक सेकंड की दर से धीमी पड़ रही है.पृथ्वी की गति धीमी पड़ रही है, और चंद्रमा की बढ़ रही है. अक्षगति बढ़ने से वह पृथ्वी से दूर जा रहा है, प्रतिवर्ष करीब 3 सेंटीमीटर की दर से दूर जा रहा है. एक समय ऐसा भी आयेगा, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा डेढ़ गुना दूर चला जायेगा.
यह भी हिसाब लगाया गया है कि डायनॉसरों वाले युग में, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा पृथ्वी के निकट हुआ करता था, उसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण पृथ्वी पर एक दिन 24 नहीं, साढ़े 23 घंटे का हुआ करता था और कुछेक अरब साल पहले केवल 4 से 5 घंटे का ही एक दिन हुआ करता था.
आसमान में चांद के बाद शुक्र ग्रह ही दूसरी सबसे चमकदार वस्तु है. परंतु यह आसमानको चांद जितना चमकदार नहीं बना सकता है. एक पूर्ण चंद्रमा चमकीले शुक्र ग्रह की तुलना में लगभग दो हजार गुना ज्यादा चमकीला होता है. ऐसे में अगर चांद आसमान से गायब हो जाएगा तो फिर हमारी रातें अंधकारमय हो जाएंगी.
चांद से संबंधित सभी त्योहार खत्म हो जाएंगे. ना पूर्णिमा होंगी, ना अमास. धार्मिक त्यौहार भी गड़बड़ा जायेगा. सबसे बुरी असर ज्योतिष शास्त्र पर पड़ेगी. कुंडली किस आधार पर बनेगी?
ना चांदनी रात होंगी, ना चंद्रमा की कला देखनेको मिलेंगी. मौसम के साथ बदलाव होने से धरती पर कई जीवों की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी.
सन 1950 में तत्कालीन अमेरिकन सरकार ने अपना शक्ति परिक्षण दिखाने के लिए चंद्रमा को विनाशक परमाणु बम से उड़ा देनेकी क्रूर साजिस रची थी.
मगर थैंक्स गॉड प्रोग्राम को रद्द किया गया था.
पृथ्वी और चन्द्रमा दोनों ग्रह और उपग्रह की तरह जुड़वां ग्रहों के समान हैं.
” चंद्रमा ” की उत्पत्ति के बारेमें मत मतांतर है. अग्नि पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले मानस पुत्रों को बनाया. उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ और चंद्रमा उन्हीं की संतान हैं.
स्कन्द पुराण के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति सागर मंथन के दौरान देवों और असुरोंने मिलकर जब समुद्र मंथन किया तब चौदह रत्न निकले थे. उन्हीं चौदह
रत्नों में से चंद्रमा है.
आधुनिक विज्ञानीक कुछ अलग कहते है. सन 1980 से आसपास इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली है कि 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी और थिया के बीच हुई टक्कर से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी.