योद्धाके अश्वारूढ़ प्रतिमा का रहस्य. 

horse g3fe13589b 1920

      आज मुजे घोड़े पर स्वार अश्वारूढ़ प्रतिमा की बात करनी है. वर्तमान में हमारे मिरा भाईंदर शहर मे भाईंदर पूर्व काशीमीरा नाका स्थित हिंदवी स्वराज्य के प्रणेता श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की अश्वारूढ़ प्रतिमा तो आपने अवश्य देखी होंगी. 

       मगर क्या आप को पता है ? कि घुड़सवार ( equestrian ) की प्रतिमा 

बताती है कि उसपर स्वार योद्धा को किस प्रकार वीरगति मिली है. 

        आपने शहर के प्रमुख चौराहों पर महापुरुषों और योद्धाओं की प्रतिमा को देखा होगा.उनके हाथ में उनका हथियार भी होता है.

        इनमें से कुछ अश्वारूढ़ योद्धाओं की प्रतिमा ओमे में घोड़े का एक पैर जमीन पर होता है तो किसी प्रतिमा में घोड़े के दोनों पैरों को हवा में उपर उठते देखा होगा.     

        मगर इन प्रतिमा मे योद्धाओं की मौत का रहस्‍य छुपा होता है. ये शायद आपको पता नहीं होगा. 

       घोड़े पर स्वार योद्धा की वीरगाथा का राज उस प्रतिमा के घोड़े मे छुपी होती है. वास्तव मे हर योद्धा की प्रतिमा उसके वीरगति प्राप्त करने की कहानी को बयां करती है.आप मूर्ति को देखकर जान सकते हैं कि किसी योद्धा की जान कैसे गई थी. 

       मिसाल के तौर पर अगर आपको महाराणा प्रताप की मृत्यु की कहानी जाननी है तो आपको यह बात उनकी अश्वारूढ़ घोड़े की प्रतिमा से पता चल सकती है. 

        रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति में उनके घोड़े के दोनों पैर हवा में दिखाया जाता है जिससे पता चलता है कि रानी लक्ष्मी बाई की मौत युद्ध में लड़ते हुए हुई थी. 

         अगर आपने कभी श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा देखी है तो आपको याद होगा कि छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा में उनके घोड़े का सिर्फ एक पैर हवा में हैं. जिससे पता चलता है कि छत्रपति शिवाजी की मौत भी संदेहास्पद स्थितियों में हुई थी.  

      उल्लेखनीय है कि घोड़े का एक पैर हवा में होना यह बताता है कि जिस शहीद की प्रतिमा बनी है वह किसी संदेहास्पद परिस्थितियों में या फिर युद्ध से मिले जख्मों के कारण वीरगति को प्राप्त हुआ है.

         इसके साथ ही अगर किसी योद्धा की मूर्ति के घोड़े के दोनों पैर जमीन पर होते हैं तो वह योद्धा प्राकृतिक मौत को प्राप्त हुआ होगा.

        रणभूमि मे युद्ध के समय राजा महाराजा मैदान मे लड़ाई करने के लिए उतरते थे उस समय अपने सैनिकों के साथ उनके खास घोड़े भी रक्षक बनकर योद्धा की भूमिका निभाते थे. और अपने मालिक की रक्षा पूरी जबाबदारी से करते हुए वीर गति को प्राप्त हो जाते थे. इसी कारण योद्धा ओकी प्रतिमा 

बनती है तो उनके साथ घोड़ों को भी बनाया जाता है ताकि अपने राजा के साथ उसे भी याद किया जाए.

       घोड़े की मूर्ति प्रतिमाओं के साथ खड़ी हुई योद्धा के रक्षक और वीरता का संदेश पहुंचाती हैं. और योद्धा के साथ अमर हो जाते है. 

 दो पैरों पर खड़ा घोड़ा : 

          यदि किसी अश्वारूढ़ प्रतिमा के साथ खड़े घोड़े के दो पैर अगर ऊपर की तरफ हवामे होते हैं तो वह घोड़ा यह संदेश देते हैं कि इस वीर पुरुष या फिर वीरांगना ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े हैं और युद्ध लड़ते-लड़ते सदगति को प्राप्त हुआ है. यह योद्धा रणभूमि में दुश्मन से युद्ध करते हुए शहीद हुआ था. यह एक ऐसा महान योद्धा है जिसने रणभूमि में प्राण त्यागे थे. 

 एक पैर उठा हुआ घोड़ा : 

     यदि किसी भी वीर पुरुष योद्धा के घोड़े का एक पैर उठा हुआ होता है तो वह यह संदेश देता है कि युद्ध में योद्धा बहुत जख्मी हो गया था और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई या फिर युद्ध में हुए जख्म की वजह से उसकी मृत्यु का कारण हो सकता है.

सामान्य रूप से खड़ा घोड़ा :

         अगर कोई अश्वारूढ़ योद्धा का घोडा अपने चारों पैरों पर खडा हो तो वह घोड़ा यह संकेत देता है कि उस वीर पुरुष ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े हैं लेकिन उनकी मृत्यु सामान्य रूप से हुई है. उस योद्धा की मौत ना तो किसी जंग या युद्ध के दौरान हुई है. पर इसकी मौत

यदि किसी महान योद्धा के घोड़े की चार और आगे जमीन पर हैं तो इसका मतलब है इस योद्धा की मृत्यु ना तो युद्ध भूमि में हुई है और ना ही रणभूमि में घायल होने की वजह से हुई है बल्कि इस महान योद्धा की मृत्यु ” प्राकृतिक ” कारणों से हुई है. 

    ——=== शिवसर्जन ===——

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →