रंग लाल हैं, लाल बहादुर के| Lal Bahadur Shastri

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भारत देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम उनकी देश भक्ति, ईमानदारी और सादगी के लिये याद किया जाता हैं. हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूपमें श्री जवाहर लाल नेहरू का कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक रहा. उसके बाद श्री गुलजारी लाल नंदा ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर ता : 27 मई 1964 से ता : 9 जून 1964 तक 14 दिन तक अपना कारोबार संभाला. 

         उसके बाद आये श्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश के दूसरे प्रधानमंत्री के रूपमें ता : 9 जून 1964 से ता : 11 जनवरी 1966 तक अपना कारोबार संभाला. वे अपने मृत्यु तक करीब 18 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. 

  वे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने देश को ईट का जवाब पत्थर से देना सिखाया. शास्त्री जी ने देश को, ” जय जवान जय किसान ” का नारा दीया. 

     स्वातन्त्र सेनानी श्री शास्त्री जी भारतीय राजकीय कांग्रेस राजनीतिक दल से जुड़े थे. उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी. उनका जन्म ता : 2 अक्टूबर 1904 के दिन मुगलसराय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मे हुआ था. पिता का नाम श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और उनकी माता का नाम रामदुलारी देवी था. पत्नी का नाम ललिता देवी था. 

    उनको छह संताने हुई. जिसमे कुसुम और सुमन नामकी दो पुत्रिया हरिकृष्ण , सुनील अनिल और अशोक नामके चार पुत्र हुये. 

       जब शास्त्री जी पुलिस मंत्री बने तो उन्होंने भीड़ को काबू में रखने लाठी की जगह पानी की बौछार करने का नया प्रयोग प्रारम्भ किया. सन 1951 में, श्री नेहरू के नेतृत्व में उनको अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव पद पर नियुक्त किया गया.शास्त्री जी ने सन 1952, सन 1957 व सन 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने का भगीरथ कार्य किया. 

        नेहरू के देहांत के बाद शास्त्री की साफ सुथरी छबि के कारण उनको सन 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. उनके कार्य काल मे सन 1965 मे भारत पाक युद्ध हुआ. सन 1962 के युद्ध मे चीन से भारत बुरी तरह हार चूका था. शास्त्री के सक्षम नेतृत्व की वजह पाकिस्तान परास्त हुआ. 

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रंग लाल हैं, लाल बहादुर के| Lal Bahadur Shastri 3

     ताशकंद में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ता : 11 जनवरी 1966 की रात को ही उनका रहस्यमय तरीके से देहांत हो गया. उनकी मृत्यु के बाद उनकी देश भक्ति को देखते, उनको देश का सर्वोच्च पुरुस्कार ” भारत रत्न ” से सम्मानित किया गया. 

    शास्त्री के कार्य काल मे पाकिस्तानी आक्रमण से लडते हमारी सेना लाहौर तक पहुंच गयी थी. तब अमेरिका की सरकार ने लाहौर में रह रहे अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की. बादमे रूस और अमेरिका की मध्यस्थी से भारत और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को रूस के ताशकंद समझौता में बुलाया गया. 

       शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते की हर शर्तों को मंजूर तो कर लिया मगर पाकिस्तान के जीते इलाकों को लौटाना हरगिज स्वीकार नहीं किया. अंतर्राष्ट्रीय दवाब में शास्त्री जी को ताशकंद करार समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा पर लाल बहादुर शास्त्री ने खुद प्रधानमंत्री कार्यकाल में इस जमीन को वापस करने से इंकार कर दिया. 

   पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही भारत देश के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री का संदिग्ध स्थिति मे निधन हो गया. कांग्रेस संसदीय दल ने इन्दिरा गांधी को शास्त्री का विधिवत उत्तराधिकारी चुन लिया. 

        शास्त्री के मृत्यु के बारेमें यह भी आरोप लगाया गया कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ था. सन 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आर. एन. चुघ और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं है. बाद में प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उन्होंने अपनी मजबूरी जतायी. 

      श्री शास्त्रीजी के मौत की साजिश के बारेमें सूचना के अधिकार के तहत माँगी गयी एक जानकारी पर प्रधान मंत्री कार्यालय की ओर से यह कहा कि ” शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ को सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेष अधिकारों को ठेस भी पहुँच सकती है. ये तमाम कारण हैं जिससे इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता.” यह थी सूचना के आधार पर मांगी गई जानकारी. 

       लाल बहादुर शास्त्री जी जब देश के प्रधान मँत्री थे तब उन्होने एक फिएट कार बैंक से लोन पर ली थी. प्रधान मँत्री रहते हुए भी वे बैंक की किश्त नहीं भर पाए. उनकी हत्या के बाद उनकी पत्नी ने अपनी पेंशन से लोन अदा किया. क्या ऐसे गुण आजके नेता ओमे हैं ? बिल्कुल नहीं अधिकांश नेता रिश्वतखोरी मे व्यस्त हैं.    

       सन 1920 में शास्त्री जी भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे. सव्तंत्रता संग्राम के आंदोलनों में उनकी भूमिका विशेष रही थी जिस में सन 1921 का असहयोग आंदोलन, सन 1930 का गांधीजी के नेतृत्व मे दांडी कूच आंदोलन और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय माना जाता हैं.

        लाल बहादुर शास्त्री जब केवल 11 वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था. 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे. इस आंदोलन मे हिस्सा लेनेकी वजह उन्हें सात साल तक ब्रिटिश जेल मे रहना पड़ा था. 

          लाल बहादुर काशी विद्या पीठ में शामिल हुए. विद्या पीठ की ओर से उन्हें दी गई प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ” शास्त्री ” था, और यही नाम आगे उनके नाम के साथ जुड़ गया और उनका पूरा नाम लाल बहादुर शास्त्री हो गया. 

         शास्त्री महात्मा गांधी को गुरु मानते थे. उनका कहना था की मेहनत प्रार्थना करने के समान हैं. वे महात्मा गांधी के समान विचार रखते थे. 

        श्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने अपनी किताब, ” लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी ” किताब मे लिखा हैं कि उनके पिता सरकारी खर्चे पर मिली कार का प्रयोग नहीं करते थे. एक बार उन्होंने अपने पिता की कार चला ली तो उन्होंने किलोमीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा करवा दीया था. 

      शास्त्रीजी बहुत कम साधनों में अपना जीवन सादगी मे जीते थे. वह पत्नी को अपने फटे हुए कुर्ते दे दिया करते थे. उन्हीं पुराने कुर्तों से रुमाल बनाकर उनकी पत्नी उन्हें प्रयोग के लिये देती थीं.

    अपने गुरु महात्मा गांधी के ही लहजे में एक बार कहा था, “ मेहनत प्रार्थना करने के समान है.” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं. लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था, ”जो शासन करते हैं उन्‍हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं. 

     जब वह प्रधानमंत्री बनकर पहली बार काशी अपने घर आ रहे थे, तब पुलिस उनके स्वागत के लिए चार महीने पहले से रिहर्सल कर रही थी. उनके घर तक जाने वाली गलियां काफी संकरी थीं, जिस कारण उनकी गाड़ी वहां तक नहीं पहुंच पाती. फिर रास्ता बनाने के लिए गलियों को चौड़ा करने का फैसला किया गया. यह बात शास्त्री जी को मालूम हुई तो उन्होंने तत्काल खबर भेजी कि गली को चौड़ा करने के लिए किसी भी मकान को तोड़ा न जाए. मैं पैदल घर जाऊंगा.

        लाल बहादुर शास्त्री जी किसी भी प्रोग्राम में वी वी आई पी की तरह नहीं, बल्कि आम आदमी की तरह जिना पसंद करते थे. प्रोग्राम में इवेंट ऑर्गनाइजर उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनवाते तो वे उन्हें समझाते थे कि गरीब आदमी भूखा सोया होगा और मै मंत्री होकर पकवान खाऊं, ये अच्छा नहीं लगता. दोपहर खाने में वे अक्सर सब्जी – रोटी खाते थे. 

       लाल बहादुर शास्‍त्री प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर रह चुके थे.

एक बार वे रेल की एसी बोगी में सफर कर रहे थे. इस दौरान वे यात्रियों की समस्या जानने के लिए थर्ड क्लास में चले गए. इसके बाद उन्होंने वहां की दिक्कतों को देखा फिर उन्‍होंने थर्ड क्लास में सफर करने वाले पैसेंजर्स को फैसिलिटी देने का फैसला करते हुए जनरल बोगियों में पहली बार पंखा का प्रबंध शुरू किया गया. 

         शास्त्री जी घर से रोज माथे पर बस्ता और कपड़ा रखकर वे कई किलोमीटर लंबी गंगा को पार कर स्कूल जाते थे. 

  हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उन्होंने साइंस प्रैक्टिल में यूज होने वाले बीकर को तोड़ दिया था. स्कूल के चपरासी देवीलाल ने उनको देख लिया और उन्‍हें जोरदार थप्पड़ मारा और लैब से बाहर निकाल दिया. रेल मंत्री बनने के बाद 1954 में एक कार्यक्रम में भाग लेने आए शास्त्री जी जब मंच पर थे, तो देवीलाल उनको देखते ही हट गए. लेकिन शास्त्री जी ने उन्हें पहचान लिया और देवीलाल को मंच पर बुलाकर गले लगा लिया.

      एक बार लाल बहादुर शास्त्री जी स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जेलमे भर्ती किये गये थे. उनके घर पर उनकी पुत्री बीमार थी और उसकी हालत काफी गंभीर हो गयी थी. उनके साथी मित्रों ने उनको छुट्टी लेकर पुत्री को देखने का आग्रह किया. पैरोल भी स्वीकृत हो गई, परन्तु शास्त्री जी ने पैरोल पर छूटकर जेल से बाहर जाना अपने आत्मसम्मान के विरुद्ध जैसा लगा क्योंकि ब्रिटिश सरकार उसे ये बॉन्ड लिखकर मांग रही थी कि बाहर निकलकर वे आन्दोलन में सक्रिय भाग नहीं लेंगे. 

       ये बात शास्त्री जी को मंजूर नहीं थी. इसीलिए मजिस्ट्रेट को पन्द्रह दिनों के लिए उन्हें बिना शर्त छोड़ना पडा. वे घर पहुँचे, लेकिन उसी दिन उनकी पुत्री का करुण देहांत हो गया. शास्त्री जी ने कहा, जिस काम के लिए मैं आया था, वह पूरा हो गया है, अब मुझे जेल वापस जाना चाहिये. और उसी दिन वो जेल वापस चले गये. 

        एक बार उनका सगा भांजा आई. ए. एस. की परीक्षा में सफल हो गया, परन्तु उसका नाम सूची में इतना नीचे था कि चालू वर्ष में नियुक्ति का नंबर नहीं आ सकता था, अगर शास्त्री जी जरा सा इशारा कर देते तो उसे इसी वर्ष नियुक्ति मिल सकती थी. बहन ने आग्रह किया, परन्तु उनका सीधा उत्तर था, “ सरकार को जब आवश्यकता होगी, नियुक्ति स्वतः ही हो जाएगी.” ऐसे थे हमारे महान नेता शास्त्री जी. 

     शास्त्री जी रेल मंत्री थे. तब एक रेल दुर्घटना हुई उन्होंने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समजकर तुरंत मंत्री पद से स्तीफा दे दिया. उनकी सत्य निष्ठा ईमानदारी को देखते ही उनको 

नेहरू जी का उत्तराधिकारी बनाया गया था. हमारा दुर्भाग्य हैं की आज तक शास्त्री जैसा कोई नेता देश मे पैदा नहीं हुआ. 

    ——–=== शिवसर्जन ===—–

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