पिछले दिनों फेसबुक पर एक सुंदर रोचक प्रेरक कहानी पढनेको मिली. ये कहानी आप लोगोंके साथ शेयर करना चाहता हूं…..
एक राजाने कई वक्त राज किया. ढलती उम्र थी. उसके बाल भी सफ़ेद होने लगे थे. एक दिन उस राजाने दरबार में एक उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया. उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया.
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरुजी को भी दीं, ताकि यदि उसकी इच्छा हो तो नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें. नृत्य शुरू हुआ, सारी रात नृत्य चलता रहा. ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी. नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा…..
” बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताय ”
एक पलक के कारने, क्यों कलंक लग जाय.”
इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपनी समज के अनुरुप अलग अलग अर्थ निकालना शुरू किया. तबले वाला ने सतर्क होकर बजाना शरू कर दिया. जब गुरूजी ने यह दोहा सुना तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने अर्पित कर दी.
वही दोहा नर्तकी ने फिर से पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया. फिर नर्तकी ने दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना खुदका मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया.
नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा अब बस कर, एक दोहे से तुमने वैश्या होकर भी सबको लूट लिया है. जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे…. राजन ! इसको तू वैश्या मत कह, ये तो अब मेरी भी गुरु बन गयी है. इसने मेरी बंद आँखें खोल दी हैं. यह कह रही है कि मैं सारी उम्र तक संयमपूर्वक भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई.. मैं तो चला…यह कहकर गुरु जी अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चला गया.
राजा की लड़की ने कहा कि पिता जी, मैं अब जवान हो गयी हूँ. आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था. लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही. क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ? इसने तो मेरी आँखे खोल दी हे जिसे आप वेश्या कह रहे हो.
इस बात पर युवराज ने कहा ,”पिता जी , आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे. मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देनेका प्लान बनाया था लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि हे पगले, आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, फिर क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर ले रहा है. धैर्य रख, सब ठीक हो जायेगा.
जब ये सब लोगों की बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी अब आत्म ज्ञान हो गया. राजा के मन में वैराग्य आ गया. राजा ने तुरन्त फैसला लिया कि क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ. फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा , बेटी , दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं. तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में स्वीकार कर सकती हो. राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब राज त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया.
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा , मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया. उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि , हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना. बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी. मुजे शक्ति दे प्रभु.
इस घटना से यह पता चलता है कि दुनिया बदलते देर नहीं लगती. एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है. बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है. इसी लिये कहां जाता है कि प्रशंसा से कभी पिघलना नहीं चाहिए, आलोचना से कभी भी उबलना नहीं चाहिए. नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहें.
ये छोटीसी कहानी ने आपको भी चिंतन करने पर मजबूर कर दिया है. क्या आप भी कोई मोह माया मे फसे हो ? यदि हा तो आजही राजा की तरह फैसला करो. और अपने जीवन को आनंद मंगल बना दो , ” तथास्तु.”
——-===शिवसर्जन ===—-