आप लोगोंने कई बार सुना होगा की राजा को राजा, महाराजा, चक्रवर्ती या सम्राट कहा जाता हैं. ऐसा क्यों ? इसका मतलब क्या हैं ? क्यों ऐसा कहा जाता हैं ? आइये जानते हैं.
राजा एक देश या राज्यों के एक समूह पर शासन करता है, जबकि एक सम्राट कई देशों पर शासन करता है. इसलिए, सम्राट को इस संबंध में राजा से अधिक शक्तिशाली माना जाता है.
राजा का कार्य तथा शासन क्षेत्र केवल एक राज्य अथवा एक देश तक सीमित रहता है जबकि सम्राट देशों के एक समुह को नियंत्रित करता है. एक सम्राट को राजाओं के राजा के रूप में जाना जाता है. इतिहास में, एक राजा के मुकाबले सम्राट एक बहुत ही बड़ा शक्तिशाली व्यक्ति है.
राजा एक देश या फिर राज्यों के एक समूह पर शासन करता है, जबकि एक सम्राट कई देशों पर शासन करता है , इसलिए, सम्राट को राजा से अधिक शक्तिशाली माना जाता है.
राजा उसके राज्य की जनता पर हकूमत चलाता हैं. वो जनता से टेक्स के रूपमें अपनी आमदनी वसूलता हैं. और जनता के सुख, समृद्धि, सुशासन, और न्याय देनेकी जिम्मेदारी लेता हैं. वो सीधा जनता से संपर्क मे रहता हैं.
अब सम्राट किसे कहते हैं ? तो सम्राट वो होता हैं जो राजाओंका राजा होता हैं. अर्थात
एक राजा का कार्य तथा शासन क्षेत्र केवल एक राज्य अथवा एक देश तक सीमित रहता है जबकि सम्राट देशों के राजा पर शासन करता हैं. सम्राट का काम जनता से संपर्क मे रहना नहीं हैं, सम्राट राजाओसे संपर्क स्थापित करके उनको अपने आधीन रखता हैं, नियंत्रित रखता हैं. उनसे लगान वसूलता हैं.
राजा कैसे बनता हैं ? एक राजा वारसागत होता हैं, जिस को पैतृक संपत्ति मिलती हैं. अर्थात राजा का लड़का आगे चलकर राजा बनता हैं. कोई राजा को लड़ाई करके जीतकर भी राजा बन सकता हैं.
जबकि सम्राट बनने के लिए एक राजा को अनेक राजाओंको हराकर अपना अधिकार स्थापित करना होता हैं. पहले के जमाने मे ” अश्वमेघ यज्ञ ” किया जाता था. एक घोड़े को सजाकर खुला छोड़ दिया जाता था. उसके पीछे पीछे राजा के सेनापति और सैनिक चलतें जाते थे.
जहाँ-जहाँ घोड़ा भ्रमण करता था वहां-वहां की भूमि उस राजा के अधीन हो जाती थी. उस घोड़े को रोकने का मतलब उस राजासे लड़ाई करना होता था. यदि नहीं रोका तो उस राजाका स्वामित्व स्वीकार करना पडता था. ऐसे कई शक्तिशाली राजा बीना लड़े ही सम्राट बन जाते थे.
राजा रामजी ने भी ” अश्वमेघ यज्ञ ” किया था. जिसको उन्ही के बालक श्री लव – कुश ने रोका था.
अश्वमेध यज्ञ को विद्वान लोग राजनीतिक प्रयोग मानते थे. अश्वमेघ यज्ञ वही सम्राट कर सकता था, जिसका अधिपत्य अन्य सभी राजा मानते थे.
चक्रवर्ती राजा किसे कहते हैं ?
चक्रवर्ती’ शब्द का प्रचलन भारत में ही है. इस शब्द को उन सम्राटों के नाम के आगे लगाया जाता है जिन्होंने संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज किया हो.
चक्रवर्ती शब्द संस्कृत के ” चक्र ” अर्थात पहिया और वर्ती अर्थात घूमता हुआ से उत्पन्न हुआ है. इस प्रकार चक्रवर्ती एक ऐसे शासक को माना जाता है जिसके रथ का पहिया हर वक्त घूमता रहता हो.
कई राजाओं के पास चक्र नहीं होता था तो वे अपने पराक्रम के बल पर अश्वमेध यज्ञ करके यह घोषणा करते थे कि इस घोड़े को जो कोई भी रोकेगा उसे युद्ध करना होगा और जो नहीं रोकेगा उसका राज्य यज्ञकर्ता राजा के अधीन मान लिया जाएगा.
भारत खंड में ऐसे कई राजा हुए जिनके नाम के आगे चक्रवर्ती लगाया जाता है, जैसे भरत, हरीशचन्द्र, सुदास, रावण, श्रीराम, राजा नहुष, युधिष्ठिर, महापद्म, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक आदि. विश्व शासक को ही चक्रवर्ती कहा जाता था लेकिन कालांतर में समस्त भारत को एक शासन सूत्र में बांधना ही चक्रवर्तियों का प्रमुख आदर्श बन गया था.
महाराजा संस्कृत का शाब्दिक अर्थ है महान् राजा. इसका संगत स्त्रीलिंग शब्द महारानी है जिसका अर्थ होता हैं महाराजा की पत्नी या महान रानी जो स्वयं किसी विशाल क्षेत्र पर शासन करती हो. महाराजा की विधवा रानी को राजमाता कहते हैं.
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