राजा से रंक बना एक्टर भगवान दादा.

Master Bhagwan Dada

सन 50 के तथा 60 के दशक के बीते दिनों के बेताज बादशाह, सुपर स्टार रहे भगवान दादा को कौन नहीं जनता ? वो कभी 25 कमरों के बंगले में रहता था. राज कपूर के बराबर फीस चार्ज करता था. अंत ऐसा हुआ की अंतिम समयमें चॉल में रहना पड़ा.

हिंदी बॉलीवुड सिनेमा के वो दिग्गज अभिनेता जिन्हें बॉलीवुड का भगवान भी कहा जाता था. सन 1951 में फिल्म ‘अलबेला’ के गीत ‘शोला जो भड़के’, ‘भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन खोटे’ गाने के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.

कभी एक्टर की गिनती सबसे अमीर एक्टर्स में होती थी. आलीशान बंगला, गाड़ी सब कुछ था, इनके पास फिर भी उनका अंतिम समय चॉल में बीता. 60 के दशक में भगवान दादा एक्टर और डायरेक्टर बनकर खूब नाम और दाम कमाया.

एक्टिंग की दुनिया में कब किसकी किस्मच चमक उठे और कब किसकी किस्मत का सितारा डूब जाए, कोई नहीं बता सकता. बॉलीवुड में कई ऐसे कई सितारे रहे हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में एक्टिंग की दुनिया पर राज किया. खूब नाम और शोहरत भी कमाई. लेकिन अंतिम समय गरीबी में गुजरा.

भगवान दादा का जन्म टेक्सटाइल मिल मजदूरके घरमें हुआ था. शुरुआती दिनों में उन्होंने भी मजदूरी की, लेकिन बचपन से ही उन्हें एक्टिंग में भी इंट्रेस्ट था. फिल्मी दुनिया में उन्होंने फिल्म ‘क्रिमिनल’ से बॉलीवुड में कदम रखा था. अपने सिने करियर में उन्होंने ‘बहादुर’, ‘किसान’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया.

उनकी फिल्म ‘अलबेला’ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी. अपने करियर में भगवान दादा ने पैसे तो खूब कमाए लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब वे पूरी तरह बर्बाद हो गए. 1940 और 50 के दशक के इस अभिनेता की हालत भी ऐसी हो गई थी कि अंतिम समय उन्हें मुंबई के चॉल में बिताना पड़ा था.

भगवान दादा की गिनती सबसे अमीर हस्तियों में होती थी. उन्होंने अपने जीवन में काफी पैसा कमाया था. उनकी गिनती सबसे अमीर अभिनेताओं में होती थी. समुद्र किनारे 25 कमरों का आलीशान बंगला, लग्जरी गाड़ियां, नौकर चाकर सब कुछ था उनके पास. एक्टर और डायरेक्टर के तौर पर भगवान दादा ने नाम भी खूब कमाया. दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर के बाद यही थे, जो उस वक्त सबसे ज्यादा फीस चार्ज किया करते थे. लेकिन भगवान दादा को जुए और शराब की लत थी.

40 के दशक में भगवान दादा ने छोटे-छोटे रोल निभाकर पहचान बनाई थी. सन 1942 में भगवान दादा ने जागृति प्रोडक्शंस बनाया और वह प्रोड्यूसर बन गए. मेनस्ट्रीम सिनेमा से दूर फिल्में बनाना उनका पैशन था. इसके लिए उन्हें राज कपूर ने भी समझाया था. साल 1951 में उन्होंने ‘अलबेला’ बनाई जो उस दौर की बड़ी हिट साबित हुई. ‘शोला जो भड़के’ गाने के बाद वह पॉपुलर ही हो गए थे. इसके बाद उन्होंने ने ‘झमेला’ और ‘भागम भाग’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं. लेकिन देखते ही देखते उनके हाथों से सफलता निकलती गई.

एक फिल्म ने किया बर्बाद :

कहा जाता है कि जब उन्होंने फिल्म हंसते रहना का निर्माण किया वो उनका सबसे गलत फैसला था. भगवान ने इस फिल्म के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था. लेकिन उनको ये फिल्म बीच में ही बंद करनी पड़ गई थी. इसकी वजह से उन्हें अपना सब कुछ बेचना पड़ गया था. वह तकरीबन पूरी तरह बर्बाद हो गए थे.

बता दें कि 60 का दशक आते-आते भगवान दादा कैरेक्टर रोल निभाने लगे थे. अपना घर चलाने के लिए मजबरी में उन्हें सब कुछ बेचकर ये काम करना पड़ा. आखिर में उन्होंने अपना बंगला भी बेच दिया और वह दादर में एक चॉल में रहने लगे. फिर एक वक्त ऐसा आया जब इंडस्ट्री ने उन्हें पूरी तरह भुला दिया और वह गुमनामी के अंधेरे में खो गए. सन 2002 में हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया.

भगवान दादा ने ही दोस्त और संगीतकार सी. रामचंद्र को फिल्मों में मौका दिया जिन्होंने 100 से ज्यादा फिल्में की. ऐ मेरे वतन के लोगों और ये जिंदगी उसी की है जैसे आइकॉनिक गाने उन्होंने ही संगीतबद्ध किए.

गीतकार आनंद बक्शी को भी फिल्मों में लाने में भगवान दादा का योगदान था. बक्शी साहब ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, अमर प्रेम, आराधना, शोले, परदेस, मोहरा, यादें, ख़ुदा गवाह जैसी 600 से ज्यादा फिल्मों में गीत लिखे थे.

भगवान दादा को शराब से बहुत लगाव था. बहुत पी. इतनी कि एक दोस्त ने मजाक में कहा था कि वे लोग खाली बोतलें भी बेचते तो बांद्रा में बंगला खरीद सकते थे. कथित तौर पर दादा शराब की बोतल लिए ही मरना चाहते थे. उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी.

उनकी मृत्यु पर तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शोक प्रकट किया था. उन्होंने अपने संदेश में कहा था कि भगवान दादा ने अपनी अदाकारी और नृत्य के विशेष अंदाज के माध्यम से हिंदी सिनेमा में हास्य अभिनेताओं की पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया है.

भगवान दादा ने एक तमिल फिल्म वना मोहिनी (1941) का निर्देशन भी किया था. ये फिल्म कई मायनों में मील का पत्थर मानी जाती है. इस फिल्म में मुख्य भूमिका एक हाथी चंद्रू और श्रीलंकाई एक्ट्रेस के. थवमनी देवी ने की थी. ये पहली फिल्म थी जिसमें किसी हाथी को क्रेडिट्स में प्रमुख रखा गया.

भगवान दादा द्वारा निर्देशित फ़िल्म अलबेला भारत में ही नहीं पूर्वी अफ्रीका में भी बहुत लोकप्रिय थी. उन्होंने जीवन में 300 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की लेकिन मराठी भाषी होने के बावजूद कभी भी कोई मराठी फिल्म नहीं की.

वे शेव्रले कारों के इतने शौकीन थे कि सिर्फ इसलिए शेव्रले नाम की एक फिल्म में काम किया.

हेमंत कुमार को भी उनकी पहली बड़ी फिल्म नागिन (1954) दिलवाने में दादा की भूमिका रही. गुरबत के दौर में सब दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन ओम प्रकाश, सी. रामचंद्र और राजिंदर कृष्ण जैसे दोस्त थे जो अंतिम समय तक चॉल में उनसे मिलने जाते रहे.

सन 1947 में भारत-पाक बंटवारे के दौरान दंगे शुरू हो गए. तब भगवान दादा ने मुंबई के भिंडी बाजार में रह रहे थे तब मुसलमान कलाकारों और टेक्नीशियंस को उन्होंने सुरक्षा दी थीं.

बॉलीवुड फ़िल्म का एक जमाना ब्लैक एंड वाइट एरा का रहा था. उस ज़माने में भगवान दादा के कई गाने सुपर डुपर हिट रहे थे…. शाम ढले खिड़की तले तुम सिटी बजाना छोड़ दे.

शोला जो भड़के, दिल मेरा धड़के, दर्द जवानी का सताए बढ़ बढ़ के…. इस गाने में उन्हें मस्त, मंद गति से नाचते जरूर देखा होगा.

सन 1951 में रिलीज हुई हिंदी फिल्म अलबेला ने तो सबका मन जीत लिया था. भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन खोटे गाना हर दर्शको के जबान में रहता था. शादी ब्याह में बैंड बाजे वालोका पसंदीदा गाना था.

सन 1975 से 1989 के बीच सबसे ज्यादा कॉन्सटेबल और हवलदार पांडू वे ही बने थे. फरार (1975), शंकर शंभू (1976), खेल खिलाड़ी का (1977), चाचा भतीजा (1977), शिक्षा (1979), साहस (1981), कातिलों के कातिल (1981), दर्द-ए-दिल (1983), बिंदिया चमकेगी (1984), सनी (1984), झूठा सच (1984), रामकली (1985), लवर बॉय (1985), काली बस्ती (1985 ), फर्ज़ की जंग (1989), गैर कानूनी (1989) जैसी फिल्मों में उन्होंने यादगार अदाकारी का किरदार निभाए थे.

उनके कार्यकाल में उन्होंने कुक, बारटेंडर, डांसर, भगवान दादा, मुंशी, सचिव, एक्टर, कैदी, यात्री, शराब बेचने वाला, ट्रेन मास्टर, कव्वाल, डकैत जैसे ‘मामूली’ और ‘निचले’ रोल उन्होंने किए थे.

भगवान दादा की यादगार क्षणे :

मुंबई के दादर इलाके में लालूभाई मेंशन नाम की चॉल थी. श्री गणपति उत्सव के दौरान इधर से निकलने वाले जुलूस इस चॉल के सामने रुका करते थे और भोली सूरत दिल के खोटे गाना बजाते थे और नाचते थे. उन्हें इंतजार होता था कि भगवान दादा अपनी चॉल से निकलें और अपना सिग्नेचर डांस स्टेप करके दिखाएं. और वे आते थे. ऐसा करते थे. उसके बाद ही जुलूस आगे बढ़ता था.

महाराष्ट्र के अमरावती में 1913 को उनका जन्म हुआ. पूरा नाम था भगवान अभाजी पलव. बाद में उन्हें भगवान, मास्टर भगवान और भगवान दादा के नाम से पुकारा जाता था.उनके पिता कपड़े की मिल में मजदूरी किया करते थे.

उनका बचपन गुरबत में बीता. दादर, परेल के मजदूर इलाकों में खेले-बढ़े. चौथी कक्षा के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. बाद में वे अपने समय के सबसे धनी अभिनेताओं में से एक बन गए. उन्होंने साइलेंट फिल्मों के दौर से काम करना शुरू किया. करीब सन 1931 से और सन 1996 तक यानी करीब 65 साल सक्रिय रहे. बतौर अभिनेता, निर्देशक, लेखक, निर्माता और अन्य भूमिकाओं अपना योगदान दिया.

वे हिंदी फिल्मों के पहले एक्शन हीरो थे. मुक्कों से लड़ाई की शुरुआत उन्होंने की थी. बिना बॉडी डबल के एक्शन करना भी संभवत: उन्होंने ही शुरू किया. दादा हिंदी फिल्मों के वे पहले डांसिंग स्टार थे.

उन्होंने भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म भेडी बंगला (1949) बनाई थी. वी शांताराम जैसे दिग्गज फिल्मकार इससे बहुत प्रभावित हुए थे.

राज कपूर उनके दोस्त थे. भगवान दादा को राज कपूर ने ही सलाह दी कि सोशल मैसेज वाली फिल्म बनाएं. जिस पर उन्होंने अलबेला डायरेक्ट की. और ये फिल्म 1951 में प्रदर्शित हुई. उसी साल राज कपूर की आवारा रिलीज हुई थी.

उस वक्त अलबेला तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी. पहले नंबर पर राज कपूर की आवारा और दूसरे नंबर पर गुरु दत्त की बाज़ी थी. इस फिल्म के बाद भगवान दादा अपने करियर के चरम पर थे. लेकिन बाद में उन्होंने अलबेला की तर्ज पर झमेला और लाबेला जैसी फिल्में बनाई जो उतनी सफल नहीं हुईं.

एक घटना जिसके लिए शायद उन्हें कभी न भूल सकेगा वो ललिता पवार से जुड़ी है. 1942 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान भगवान दादा को एक थप्पड़ ललिता को मारना था. उन्होंने इतनी जोर से मार दिया कि ललिता चोटिल हो गईं. उनकी बाईं आंख की एक नस अंदर से फट गई. उनके मुंह के बाईं ओर लकवा हो गया. तीन साल उनका इलाज चला लेकिन आंख सही नहीं हो पाई.

ललिता पवार का चेहरा उसके बाद हमेशा के लिए बदल गया. एक्ट्रेस के तौर पर उनका प्रोफाइल भी. उन्हें नेगेटिव रोल बहुत मिलने लगे. बाद में बुरी औरत के किरदारों में अपनी लोकप्रियता का श्रेय वे भगवान दादा को देती थी.

भगवान दादा को बर्बादी के आंसू रुलाने वाली फिल्म का नाम था हंसते रहना. इसके हीरो थे किशोर कुमार. इसे बनाने के लिए दादा ने अपने जीवन की सारी जमा-पूंजी और पत्नी के गहने गिरवी रख दिए. लेकिन ये फिल्म पूरी नहीं हो पाई. अपने नखरों से किशोर कुमार ने फिल्म के निर्माण को बहुत नुकसान पहुंचाया और इसे बंद करना पड़ा.

जुहू में समंदर के ठीक सामने उनका 25 कमरों वाला बंगला था. उनके पास सात गाड़ियां थीं. हफ्ते के हर दिन के लिए अलग-अलग गाड़ी यूज़ करता था. उनके पास चेंबूर में आशा स्टूडियो भी था. उत्तरोत्तर असफलता के बाद वे दादर में दो कमरे वाली चॉल में रहने लगे. ***

ब़ॉम्बे टु गोवा (1972) कमर्शियल और सोलो हीरो के तौर पर अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म थी. लेकिन तब तक उन्हें नाचना नहीं आता था. बस में एक गाना था देखा न हाय रे सोचा न हाय रे रख दी निशाने पे जां.. इसमें वे नाच नहीं पा रहे थे. बाद में धीरे-धीरे बच्चन ने नाचने की स्टाइल विकसित की. हाथ आगे निकालकर धीरे-धीरे पैरों को हिलाना और ठुमकना. ये भगवान दादा स्टाइल थी. बच्चन के डांस की प्रेरणा भगवान दादा ही थे. बॉलीवुड में आज तक कोरियोग्राफर्स भगवान दादा स्टेप जैसी टर्म का उपयोग करते हैं. इस स्टाइल में अधिकतम भारतीय शादियों, पार्टियों में नाचते आ रहे हैं.

गोविंदा और मिथुन समेत बहुत से स्टार्स के डांस में भगवान दादा का बड़ा असर है. ऋषि कपूर को खुद भगवान दादा ने डांस के स्टेप सिखाए थे जब ऋषि किशोर अवस्था में थे. वे उनका बहुत अहसान मानते थे.

सन 1940 से पहले की भगवान दादा की फिल्मों की रील अब उपलब्ध नहीं हैं. क्योंकि मुंबई के गोरेगांव में फिल्मी नेगेटिव्ज़ के एक गोदाम में आग लग गई थी जिससे उनकी पूर्व की सारी फिल्में जल गईं थी.

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