यदि आपको पूछा जाय की हवाई जहाज का आविष्कार किसने किया था ? तो आप तुरंत ही कहेंगे कि ,
” राइट बंधुओं ने.” किया था. मगर हम जानते है कि त्रेता युग मे लंका पति रावण के पास ” पुष्पक ” नामका विमान था. चलो जानते है पुष्पक विमान के बारेमें कुछ विशेष जानकारी.
हिंदू पौराणिक धर्म ग्रंथ रामायण मे उल्लेख मिलता है कि रावण के पास पुष्पक विमान था. यक्ष प्रश्न ये है कि वह पुष्पक विमान राजा रावण के पास आया कहांसे ?
कहते है कि यह पुष्पक विमान धन के देवता, कुबेर के पास हुआ करता था. कुबेर रावण का छोटा भाई था. रावण ने अपने छोटे भाई कुबेर से छल कपट करके बलपूर्वक उसकी नगरी ” सुवर्णमंडित लंकापुरी ” छीन ली थी.
धार्मिक ग्रंथो के मुताबिक पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि अंगिरा ऋषि द्वारा किया गया था. इसका निर्माण एवं सुशोभीतकरण देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा किया गया था.
पुष्पक विमान विविध विशेषताओ से भरा पडा था. “पुष्पक ” विमान को आवश्यकता के अनुसार छोटा या बड़ा अथवा छोटा किया जा सकता था. पुष्पक विमान कि खास विशेषता थी कि उसको चलाने के लिए विमान संचालन मंत्र सिद्ध करना जरुरी होता था. उसको कहीं भी अपने मन की गति से असीमित चलाया जा सकता था. पुष्पक विमान हवामे उडने के साथ भूमि पर भी चलता था.
रावण के मृत्यु बाद विभीषण के आग्रह पर राम ने लंका से अयोध्या वापसी हेतु पुष्पक विमान का प्रयोग किया था. उसके बाद भगवान राम ने इसे इसके मूल स्वामी कुबेर को लौटा दिया था.
श्रीलंका की ” श्री रामायण रिसर्च समित्ति ” के अनुसार रावण के पास अपने पुष्पक विमान को रखने के लिए चार विमान क्षेत्र थे. जिसमे , (1) उसानगोड़ा. (2) गुरूलोपोथा, (3) तोतूपोलाकंदा और (4) वारियापोला आदि थे. उसमेंसे उसानगोडा हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पाचार्य विश्वकर्मा द्वारा पितामह ब्रह्मा के प्रयोग हेतु पुष्पक विमान का निर्माण किया गया था. विश्वकर्मा, की माता सती योगसिद्धा थीं. देवताओं के साथ ही 8 प्रकार के वसु बताये जाते हैं, जिनमें 8 वें वसु प्रभास की पत्नी योगसिद्धा थीं. यही प्रभास थे जिन्हें महाभारत के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था कि उन्हें मृत्यु लोक में काफ़ी समय व्यतीत करना होगा.
तब गंगा ने उनकी माता बनना स्वीकार किया, तथा गंगा-शांतनु के 8 वें पुत्र के रूप में उन्होंने ” देवव्रत ” नाम से जन्म लिया व कालांतर में अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाये थे. इन्हीं प्रभास-योगसिद्धा संतति विश्वकर्मा द्वारा देवताओं के विमान तथा अस्त्र-शस्त्र का तथा महल प्रासादों का निर्माण किया जाता था. वाल्मीकि में इस विमान का विस्तार से वर्णन किया गया है.
पवन पुत्र राम भक्त हनुमान जी ने जब इस विस्मयजनक विमान को देखा तो वे भी आश्चर्यचकित हो गये थे. रावण के महल के निकट रखा हुए इस विमान का विस्तार एक योजन लम्बा और आधे योजन चौड़ा था, वह एक सुन्दर महल के समान प्रतीत होता था. इस दिव्य विमान को विभिन्न प्रकार के रत्नों से भूषित कर स्वर्ग में देवशिल्पी विश्वकर्मा ने ब्रह्मा के लिए निर्माण किया था. यह विश्व का प्रथम अजूबा था.
पुष्पक विमान को ऋगवेद में लगभग 200 से अधिक बार उल्लेख किया गया है. इसमें कई प्रकार के विमान जैसे तिमंजिला, त्रिभुज आकार के एवं तीन पहिये वाले, आदि विमानों का उल्लेख है. इनमें से कई विमानों का निर्माण अश्विनी कुमारों ने किया था, जो दो जुड़वां देव थे, एवं उन्हें वैज्ञानिक का दर्जा प्राप्त था.
” पुष्पक ” उपकरणों के निर्माण में मुख्यतः तीन धातुओं स्वर्ण, रजत तथा लौह का प्रयोग किया गया था. हमारे वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेखित किये गये हैं. यह एक ताजुब की बात है कि अग्निहोत्र विमान में दो ऊर्जा स्रोत (ईंजन) तथा हस्ति विमान में दो से अधिक स्रोत होते थे.
एक जलयान भी होता था जो वायु तथा जल दोनो में चल सकता था. कारा नामक विमान भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था. त्रिताला नामक विमान तिमंजिला था. त्रिचक्र रथ नामक तीन पहियों वाला यह विमान आकाश में उड सकता था. किसी रथ के जैसा दिखने वाला विमान वाष्प अथवा वायु की शक्ति से चलता था. विद्युत-रथ नामक विमान विद्युत की शक्ति से चलता था.
” पुष्पक ” का मतलब ” भगवान विष्णु के वाहन ” होता है. अनेक ग्रंथो मे पुष्पक के उड़ान, गति, सामान्य तथा आकस्मिक अवतरण के अलावा पक्षियों की दुर्घटनाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है.
शोधकर्त्ताओं के अनुसार, रावण की लंका में पुष्पक विमान के अलावा कई प्रकार के विमान थे, जिनका प्रयोग वह अपने राज्य के अलग-अलग भागों में तथा राज्य के बाहर आवागमन हेतु किया करता था.
पुष्पक विमान कई प्रकार के रत्नों से सजा था, तथा रंगों के सर्पों का अंकन किया गया था, तथा सुन्दर अंग वाले अश्व भी बने थे. विमान पर अति सुन्दर मुख एवं पंख वाले अनेक विंहगम चित्र बने थे, जो एकदम कामदेव के सहायक जान पड़ते थे. यहां गजों की सज्जा स्वर्ण निर्मित फूलों से युक्त थी तथा उन्होंने अपने पंखों को समेट रखा था, जो देवी लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए से प्रतीत होते थे.
उनके साथ ही वहां देवी लक्ष्मी की तेजोमय प्रतिमा भी स्थापित थी जिनका उन गजों द्वारा अभिषेक हो रहा था. इस प्रकार सुन्दर कंदराओं वाले पर्वत के समान तथा बसंत ऋतु मे सुन्दर कोटरों वाले परम सुगंध युक्त वृक्ष के समान वह विमान बड़ा मनोहर था.
पुष्पक विमानों के उड़ने व उतारने हेतु लंका में रावण द्वारा छह हवाई अड्डे बनाये गये थे.
(1) वेरागन्टोटा. यह एक सिंहली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है विमान के अवतरण का स्थल.
(2) थोटूपोला कांडा : इसका अर्थ विमानतल से ही है, यांनी ऐसा स्थान, जहां से कोई अपनी यात्रा शुरू करता हो. कांडा का अर्थ है पर्वत.
(3) थोटूपोला : कांडा से छः हजार फीट की ऊंचाई पर एक विमान विमान स्थल था.
(4) वारियापोला (मेतेले) : इसका अर्थ है, ऐसा स्थान जहां से विमान को उड़ने और उतारने दोनों की सुविधा हो. वर्तमान में यहां मेतेले राजपक्षा अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र उपस्थित है.
(5) गुरुलुपोथा (महीयानगाना,) : सिंहली भाषा के इस शब्द को पक्षियों के हिस्से कहा जाता है. इस विमानक्षेत्र में विमान घर (एयरक्राफ्ट हैंगर) एवं मरम्मत केन्द्र हुआ करता था.
(6) दंडू मोनारा विमान : यह विमान रावण द्वारा प्रयोग में लाया जाता था. स्थानीय सिंहली भाषा में मोनारा का अर्थ मोर से है.दंडू मोनारा का अर्थ मोर जैसा उड़ने वाला होता है.
मित्रों, यह जानकारी आपको अवश्य पसंद आयी होंगी.
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