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शिव भोला भंडारी की आराधना भक्त को मृत्यु के काल से मुक्त कर देती है. यह साधक को सुख समृद्धि ,शक्ति प्रदान करती है. लंकाधिपति राजा रावण रचित शिव तांडव श्रोत सिद्धि पाने के लिये उपयुक्त है. नियमित पाठ करनेसे भोलेनाथ के आशीर्वाद से चमत्कारिक लाभ होता है.
शिव तांडव श्रोत स्वास्थय की समस्या , सिद्धि प्राप्ति के लिए तथा किसी प्रकार के तंत्र, मंत्र से शत्रु परेशान कर रहा हो तो या मृत्यु भय मे इसका नियमित पाठ करना अत्यंत चमत्कारिक और लाभदायक होता है. तांडव शब्द ” तंदुल “से बना हुआ है, जिसका अर्थ उछलना होता है.
शास्त्रों के अनुसार किसी भी जाति या लिंग का कोई भी व्यक्ति कभी भी शिव तांडव स्तोत का जाप कर सकता है. शिव तांडव श्रोत की रचना रावन ने भगवान शिव जी को प्रसन्न करके लिये की थी. यह स्तुति पंचचामर छंद में है.
मान्यता के अनुसार एक बार लंकापति रावण ने अपना बल दिखाने के लिए कैलाश पर्वत को उठा लिया था और जब वह पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा तो उसका अहंकार तोड़ने के लिए भोलेनाथ ने अपने पैर के अंगूठे से दबा कर रख दीया.
इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह दर्द से चिल्ला उठा, प्रभु क्षमा करिए, क्षमा करिए और वह महादेव की स्तुति करने लगा. इस स्तुति को ही शिव तांडव स्तोत्र कहते हैं. कहा जाता है कि इस 17 श्लोक के शिव तांडव स्तोत्र से अति प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे माफ कर दिया और लंकापति को ” रावण ” नाम दे दिया.
शिव तांडव स्त्रोत को सुबह भजन के रूप में पाठ करने से आपको अपने किये पापों से मुक्ति मिलती है. शिव से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते समय मन को कोमल रखना जरुरी है. शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से जन्म कुण्डली में पितृ दोष और काल सर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. उल्लेखनीय है की ये किसी सिद्ध ब्राह्मण की देख रेख में ही किया जाना चाहिए ताकि मन वांछित फल की प्राप्ति हो.
तांडव के दौरान ऊर्जा और शक्ति से उछलना होता है, ताकि मन मस्तिष्क शक्तिशाली हो सके. तांडव नृत्य केवल पुरुषों को ही करने का विधान है. महिलाओं को तांडव करना मना होता है.
प्रातः काल या प्रदोष काल में इसका पाठ करना सर्वोत्तम होता है. पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए. इसके बाद गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. अगर नृत्य के साथ इसका पाठ करें तो सर्वोत्तम होता है. पाठ के बाद शिव जी का ध्यान करके अपनी प्रार्थना करना चाहिए.
शिव तांडव श्रोत संस्कृत मे है अतः उसका हिंदी अनुवाद ही यहां पर देना उचित समजता हूं.
( 1 ) जिन्होंने जटारूपी अटवी (वन) से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारणकर, डमरू के डम-डम शब्दों से मण्डित प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें || 1 ||
( 2 ) जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में वेगसे घूमती हुई गंगाकी चंचल तरंग-लताओं से सुशोभित हो रहा है, ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है, सिरपर बाल चंद्रमा विराजमान है, उन शिव में मेरा निरन्तर अनुराग हो || 2 ||
( 3 ) गिरिराजकिशोरी पार्वती के विलासकालोपयोगी शिरोभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है, जिनकी निरंतर कृपा दृष्टि से कठिन आपत्ति का निवारण हो जाता है, ऐसे किसी दिगम्बर तत्व में मेरा मन विनोद करे || 3 ||
( 4 ) जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगों के फणों की मणियों का फैलता हुआ पिंगल प्रभापुंज दिशारूपिणी अंगनाओं के मुखपर कुंकुमराग का अनुलेप कर रहा है, मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे || 4 ||
( 5 ) जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के मस्तक की कुंकुमों की धूलसे धूसिरित हो रही हैं, नागराज के हार से बंधी हुई जटावाले वे भगवान चन्द्रशेखर मेरे लिए चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों || 5 ||
( 6 ) जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के स्फुलिंगों के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था,जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं, सुधाकर की कला से सुशोभित मुकुटवाला वह महादेवजी का उन्नत विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक हो || 6 ||
( 7 ) जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर धक्-धक् जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव को हवन कर दिया था, गिरिराजकिशोरी के स्तनों पर पत्रभंग-रचना करने के एकमात्र कारीगर, उन भगवान त्रिलोचन में मेरी धारणा लगी रहे || 7 ||
( 8 ) जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधीरात के समय फैलते हुए दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है, जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, वे संसारभार को धारण करनेवाले चंद्रमा से मनोहर कांति वाले भगवान गंगाधर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें || 8 ||
( 9 ) जिनका कंठदेश खिले हुए नीलकमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करनेवाली हरिणी की सी छवि वाले चिन्ह से सुशोभित है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष-यज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी उच्छेदन करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ || 9 ||
( 10 ) जो अभिमानरहित पार्वती की कलारूप कदम्बमंजरी के मकरन्दस्त्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले मधुप हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष-यज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अन्त करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ || 10 ||
( 11 ) जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है, धिम-धिम बजती हुए मृदंग के गंभीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड तांडव हो रहा है, उन भगवान शंकर की जय हो || 11 ||
( 12 ) पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, साँप और मुक्ता की माला में, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में तृण अथवा कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराज में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूंगा || 12 ||
( 13 ) सुन्दर ललाटवाले भगवान चंद्रशेखर में दत्तचित्त हो अपने कुविचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबायी हुई विह्वल आँखों से “शिव” मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊँगा ? || 13 ||
( 14 ) जो मनुष्य इस प्रकार से उक्त इस उत्तमोत्तम स्त्रोत का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता रहता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही सुरगुरु श्री शंकरजी की भकॕति प्राप्त कर लेता है, वह विरुद्ध गति को नहीं प्राप्त होता, क्योंकि श्री शिवजी का अच्छी प्रकार चिंतन प्राणिवर्ग के मोह का नाश करने वाला है ||14 ||
( 15 ) सायंकाल में पूजा समाप्त होंने पर रावण के गाये हुए इस शम्भुपूजन सम्बन्धी स्तोत्र का जो पाठ करता है, शंकरजी उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली अनुकूल सम्पत्ति देते हैं || 15 ||
( 16 ) इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है, जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है ll 16 ll
( 17 ) शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है ll 17 ll
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
—–===शिवसर्जन प्रस्तुति ===—–