हर जिज्ञासु जानना चाहता है कि राष्ट्रपति भवन मे किस प्रकारका खाना परोसा जाता होगा. आइये हम आपकी जिज्ञासा की संतुष्टि करते है.
राष्ट्रपति भवन जितना खास होता है, उतना ही खासमखास इसका रसोईघर ( KITCHEN ) होता है.
यहां पर परोसा जाने वाला खाना विदेशी मेहमानो के लिए हमारी भारतीय संस्कृति का प्रतिक होता है. और इसको सफल बनानेमें रसोइए, बेकर्स, हलवाई, बटलर और कमरों को साफ़ करने वाले
जैसे कई लोगोका परिश्रम होता है. यह भोजन कूटनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा होता हैं.
भारत के राष्ट्रपति दिल्ली में 320 एकड़ फैले राष्ट्रपति भवन में रहते हैं. जब यहां कोई बड़ा अतिथि आता है, तो उसकी तैयारियां पहले से ही शुरू कर दी जाती हैं. हमें ये जानना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति भवन का किचन कैसे काम करता है ?
राष्ट्रपति भवन में दो किचन हैं , (1) राष्ट्रपति का निजी किचन और (2) किचन भवन में होने वाले कार्यक्रम जैसे कॉन्फ्रेस, पुरस्कार वितरण आदि में खानपान की जिम्मेदारी संभालने वाला किचन. स्वाभाविक है पहला किचन आकार में छोटा है और दूसरा किचन बड़ा है. इसलिए पहले किचन का स्टाफ दूसरे किचन से छोटा हैं.
बड़े किचन की मुख्य जिम्मेदारी सीनियर एक्जीक्यूटिव संभालते हैे. बड़े किचन में अत्याधुनिक उपकरण और 5सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. इस किचन में सीनियर की अगुआई में लगभग 45 लोगों की बड़ी टीम काम करती है. जब पिछली बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को राष्ट्रपति भवन में भोज के लिए आमंत्रित किया गया था, तब उन्होंने भी यहां के पकवानों की बहुत तारीफ की थी.
राष्ट्रपति भवन का बड़ा किचन कई भागों में बटा है. इनमें मुख्य किचन के उपरांत बेकर्स, स्वीट सेक्शन तथा कॉन्टिनेटल और ट्रेनिंग एरिया शामिल हैं. ये पूरा किचन वातानुकूलित है. किचन की सफाई के लिए एक खास टीम एनी टाइम तैयार रहती है , जो हमेशा हाईजीन के अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार किचन को साफ रखती है.
इसी किचन मे राष्ट्रपति भवन के आधिकारिक समारोहों, रिसेप्शन, और कॉन्फ्रेंस में खानपान की व्यवस्था की जाती है. सन 80 के दशक में राष्ट्रपति भवन के किचन ने आधुनिक रूप लेना शुरू किया था और 90 के दशक तक यह किचन विश्व के फाइव स्टार होटलों के व्यंजनों को मात देने लगा था. आज यह दुनिया के किसी भी बेहतरीन होटल के किचनों को टक्कर देता है.
राष्ट्रपति भवन की रसोई के सभी काम की समयसीमा तय होती है. रसोई में टीम रोजाना 15-16 घंटे तक काम करती है. किसी भी समारोह के लिए तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं. मेन्यू की प्लानिंग पर यहांका वरिष्ठ एग्जीक्यूटिव शेफ इस पर अपनी मुहर लगाते है.
मेन्यू बन जाने के बाद सामग्रियों की लिस्ट स्टोर में भेज दी जाती है,जिस में खानपान के सामान से क्रॉकरी, कांच के सामान आदि सभी आवश्यक चीजें भी शामिल होती हैं.
दावत का मेन्यू सुनिश्चित होने के बाद राष्ट्रपति भवन की ही प्रिंटिग प्रेस इसे छापती है. इसकी डिजाइनिंग भी एक डिजाइन विभाग द्वारा करवाई जाती है. राष्ट्रपति भवन में किसी भी भोज से करीब छह से आठ घंटे पहले टेबल तैयार कर ली जाती है. उस पर क्रॉकरी सज चुकी होती है. टेबल पर विविध फूलों की सजावट होती है.
सभी प्रकार की वानगी अलग प्रोग्राम और उनके नेचर के साथ मेहमानों की रूचि के अनुसार तय की जाती हैं. अगर कोई खास मेहमान आ रहा हो तो फिर तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती है.
राष्ट्रपति भवन का किचन कि वो डिनर या लंच में भारतीय और कॉन्टिनेंटल व्यंजनों को परोसे. इसकी परंपरा तब से हुई, जब सन 1929 में राष्ट्रपति भवन बनकर तैयार हुआ था. तब इस भवन को वायसराय हाउस कहा जाता था. क्योंकि अंग्रेज वायसराय यहां पर रहा करता था.
राष्ट्रपति भवन के किचन में स्नैक्स विशेषज्ञ केक, ब्रेड्स, पिज्जा, डोनट्स, पेस्ट्री, बर्गर आदि विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए जाते हैं, तो मिठाईयों के विशेषज्ञ जलेबी, गुलाब जामुन, इमरती, बंगाली मिठाइयां आदि बनाते है. जिन लोगों ने राष्ट्रपति भवन मे दावत मिली है उनका कहना है कि यहां के समोसे, ढोकला और कचौड़ियों बेहद स्वादिष्ट होते हैं.
अवधी व्यंजनों के अलावा मुर्ग दरबारी, गोश्त थाखनी, दाल रायसीना, कोफ्ता, आलू बुखारा कुछ ऐसे व्यंजन हैं जो लाजवाब है.यहां परोसे जाने वाले अवधी व्यंजनों में दाल रायसीना के स्वाद का भी कोई मुकाबला नही कर सकता.
जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे तब उनके निजी किचन के मेन्यू में कई तरह के बंगाली व्यंजन और मिठाइयां बनाए जाते थे. इसके बाद अब नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसमें अपनी पसंद के अनुसार बदलाव कराया था.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान भारतीय राष्ट्रपति भवन में शानदार डिनर का आयोजन किया, जिसमें एक से बढ़कर एक कई व्यंजन परोसे गए थे.
यहां पर भोजन में कई तरह के सूप, वेज और नॉन वेज व्यंजनों के साथ ही कई तरह के डेजर्ट होते हैं. इसके बाद चाय, कॉफी और मेहमानों की विदाई के समय उन्हें पान और माउथ फ्रेशनर खाने को दिया जाता है. खाने के दौरान नौसेना का बैंड बजता है. इसके संगीत का कंपोजिशन हिन्दी, अंग्रेजी और संबंधित देश की सभ्यता के अनुसार होता है.
राष्ट्रपति भवन के छोटे किचन मे वर्तमान राष्ट्रपति का निजी किचन होता है. जिसमें राष्ट्रपति, उनके परिवार और निजी मेहमानों के सिए व्यंजन बनाए जाते हैं.
सन 1990 मे जब राष्ट्रपति मंडेला भारत आए तो उन्हें राजस्थानी सफ़ेद मांस और मशरूम झालफ़्रेज़ी परोसा गया. इसी साल 1990 में जब यासेर अराफ़ात भारत आए तो उन्हें मुग़लई बिरयानी और मटर पनीर के साथ साथ इडली, वड़ा और साँभर भी परोसा गया. जब सन 2001 में परवेज़ मुशर्ऱफ़ भारत आए तो उन्हें नेपाल के चिकन डंपलिंग, अमृतसरी स्वादिष्ट मछली और तमिलनाडु के चिकन चेट्टीनाड के साथ साथ डोसा भी परोसा गया जिसे उन्होंने बहुत पसंद किया.
राष्ट्रपति भवन मे जब भी कोई नया राष्ट्रपति आता है तो वो यहां के मेनू में अपनी ओर से कुछ जोड़ता है या फिर घटाता है. जब डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति बने तो उनका जोर थाली में भोजन परोसने में था. ऐसा ही होने लगा लेकिन इसमें खाने की बहुत बर्बादी होती थी. लोग थोड़ा ही खाते थे और ज्यादा चीजें बची रह जाती थीं. उस ज़माने में बचे हुए खाने को गोल मार्केट के एक ढाबे में भेजा जाता था.
जब भी कोई खास विदेशी मेहमान राष्ट्रपति भवन मे आता है, तो उसकी सूचना विदेश मंत्रालय के जरिए राष्ट्रपति भवन में भेजी जाती है. इसके बाद उस मेहमान के लिए खाने की रिसर्च शुरू हो जाती है. ये देखा जाता है कि वो क्या पसंद करता है और क्या नहीं. फिर उस देश के खाने के डिशेज को भी देखा जाता है. ये भी खयाल रखा जाता है कि हर विदेशी खास मेहमान का भोज जब राष्ट्रपति भवन में हो तो उसे भारतीय भोजन भी पेश किया जाए.
एक बार चीन से राष्ट्रपति ली फंग वहां आए तो उनका साथ एक डेलीगेट भी आया. तब अपने मेहमानों को खुश करने के लिए राष्ट्पति भवन के रसोइयों ने भारतीय व्यंजनों के साथ साथ कुछ चीनी व्यंजन भी बनाए थे. ली फ़ंग को वो इतने अच्छे लगे कि उन्होंने उन्हें दूसरी बार मांग कर खाया. उन्होंने कहा, था इतना स्वादिष्ट चीनी खाना मैंने चीन के बाहर पहली बार खाया है.
राष्ट्रपति वैंकटरमन के समय में ही पहली बार दक्षिण भारतीय इडली को राष्ट्रपति भवन के मैन्यू में स्थाई जगह दी गई, पहले औपचारिक मौकों पर इडली परोसने से परहेज़ किया जाता था.
जानते है राजभवन की खास बाते :
” राष्ट्रपति भवन ” भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी निवास है. वर्तमान भारत के राष्ट्रपति, उन कक्षों में नहीं रहते, जहां वाइसरॉय रहते थे, बल्कि वे अतिथि-कक्ष में रहते हैं. यहाँ राष्ट्रपति आगन्तुक से मिलते है.
सन 1950 तक इसे वाइसरॉय हाउस बोला जाता था. तब तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल का निवास हुआ करता था. यह नई दिल्ली क्षेत्र में स्थित है. इस महल में 340 कक्ष हैं और यह विश्व में किसी भी राष्ट्र अध्यक्ष के निवास से बड़ा है. भारत के प्रथम गवर्नर जनरल श्री सी राजगोपालाचार्य को यहां का मुख्य शयन कक्ष, अपनी नम्र रुचियों के कारण, अति आडंबर पूर्ण लगा जिसके कारण उन्होंने अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा. उनके उपरांत सभी राष्ट्रपतियों ने यही परंपरा निभाई है.
राष्ट्रपति भवन में दावत के समय नीली, हरी और लाल लाइट्स का खास मतलब होता है. राष्ट्रपति भवन में जब भी भोज होता है तो ये बैंक्वेट हाल में होता है और इसकी तीन रंग की लाइट्स का खास मतलब होता है. यहां के शेफ और किचन डिपार्टमेंट को इसे लेकर अच्छी तरह दक्ष किया जाता है. जब कोई विदेशी मेहमान यहां आता है और उसको दावत दी जाती है तो तीन रंग की लाइटों का बहुत महत्व होता है.
ये लाइट्स बैंक्वेट हाल में लगे हर तैल चित्र के ऊपर लगी होती हैं. इनका कंट्रोल करने के लिए हेड बटलर को उस समय वहां रखा जाता है. जैसे ही तैल चित्रों के ऊपर की नीली लाइट जलती है तो इसका मतलब है कि मेहमान अब खाने के लिए बैठ गए हैं और सारे बटलर सर्विस करने के लिए तैयार हो जाएं. खाना सर्व करने का काम बटलर का ही होता है. सारे बटलर तुरंत अलर्ट मुद्रा में आ जाते हैं.
इसके बाद हरी लाइट जलने की बारी आती है. मेहमानों के दावत की टेबल पर बैठते ही हरी लाइट जल उठती है और फिर बटलर तुरंत खाने को परोसने में लग जाते हैं. उस समय उनकी फुर्ती देखते ही बनती है. कुछ ही मिनटों में हर मेहमान के सामने पकवान सज जाते हैं. हर छह मेहमानों को खाना सर्व करने का काम एक बटलर को दिया होता है. राष्ट्रपति और मुख्य अतिथि के लिए अलग से एक बटलर होता है.
अब इसके बाद जैसे ही भोजन समाप्त होने लगता है और मेहमान खाने की टेबल से उठने वाले होते हैं. तब हेड बटलर लाल बत्ती जलाता है. इसका मतलब होता है कि सभी बटलर आगे बढ़ें और मेज़ों से प्लेट उठाना शुरू कर दें. और तब फिर बटलर पूरी तेजी के साथ डाइनिंग टेबल को साफ कर देते हैं.
( सोर्स सोशल मीडिया )