आज मुजे हमारे भारत देश का राजकीय प्रतिक ” अशोक चिन्ह ” के बारेमें आपसे बात करनी है. यह प्रतिक वाराणसी सरनाथ संग्रहालय में संरक्षित है. अशोक लाट को भारत देश के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में लिया गया है. यह एक ही पत्थर को काट कर सिंह स्तंभ बनाया गया है.
चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेर दिखाई देते है जो चारो दिशा ओकी ओर मुह किये खड़े है. चित्र मे हमें तीन शेर दिखाई देते है मगर वास्तव मे चार शेर है. चित्र मे चौथा शेर दिखाई नहीं देता है.
निचे गोल आधार पर एक हाथी , एक दौड़ता हुआ घोड़ा ,एक सांड और एक सिंह दिखाई देते है. हर पशु के बीचमे एक धर्म चक्र बना हुआ है. भारत सरकार द्वारा उसे गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 के दिन राष्ट्र के प्रतिक के रूप मे अपनाया गया था.
प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में लिखा गया है. शब्द “सत्यमेव “जयते शब्द मुंडकोपनिषद से लिए गए हैं, जिसका अर्थ है केवल सत्य की जीत होती है.
यह भारत का राजचिन्ह भारतीय पहचान और विरासत का मूलभूत हिस्सा है.
यह प्रतीक भारत सरकार के अधिकारिक लेटरहेड का एक हिस्सा है और सभी भारतीय मुद्रा पर भी प्रकट होता है. यह कई स्थानों पर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में भी कार्य करता है और भारतीय पासपोर्ट एवं सरकारी दस्तावेज पर प्रमुख रूप से प्रकट होता है. अशोक चक्र (पहिया) अपने आधार पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज के केन्द्र में स्थित हैं. प्रतीक का आम लोगों द्वारा प्रयोग करना भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित प्रयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत विनियमित और प्रतिबंधित है.
सरकार किसी निजी व्यक्ति या संघठन को प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति नहीं देता , यहां पर उल्लेखनीय है की अशोक मौर्य वंश का तीसरा शासक था , और प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक थे. उन्होंने 273 ई. पू. से 232 ई. पू. भारत में शासन किया था. अशोक के साम्राज्य में अधिकांश भारत, दक्षिण एशिया और उसके आगे, अब का अफगानिस्तान और पश्चिम में फारस के कुछ हिस्से, पूर्व में बंगाल और असम और दक्षिण में मैसूर शामिल हुआ था. कलिंग के युद्ध के बाद उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया और धर्म के सिद्धांतों के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था. अशोक ने देश के विभिन्न भागों में कई स्तूपों और स्तंभों का निर्माण कराया. इनमें से एक स्तंभ जो सारनाथ में स्थित है, को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है.
अशोक के कार्यकाल मे कला को बहुत प्रोहत्साहन मिला था. अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उसने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार किया था.
धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ था. परंपरा के अनुसार उसने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया था.अशोक ने प्रमुख राजपथों और मार्गों पर धर्मस्तंभ स्थापित किए थे. ये स्तंभ सबसे अधिक प्रसिद्ध है. इन स्तंभों का उपयोग स्थापत्यात्मक न होकर स्मारकात्मक था.
” ग्लोबल पैगोडा ” बौद्ध वास्तु कला का एक भव्य नमूना मिरा भाईंदर शहर के नजदीक एस्सेल वर्ल्ड मनोरंजन पार्क स्थित विध्यमान है, जो विश्व का अजूबा के रूपमें उभरकर सामने आ रहा है. जो बिपासना केंद्र के नामसे जाना जाता है. प्रवेश एंट्री बिलकुल फ्री है. हो सके तो एक बार जरूर देखने जैसा है.
———-======*======———–
शिव सर्जन