रियल इस्टेट : पर्दे के पीछे की कहानी.| Real Estate

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            जीवन के मुख्य तीन जरूरियात है. रोटी, कपड़ा और मकान. इंसान रोटी के कमाता है. सभ्यता मे रहने के लिए कपड़ा पहनता है. खुदको ठंडी, गरमी , बारिश और तूफान जैसी कुदरती आपदा से बचानेके लिए परिवार सह मकान मे निवास करता है. 

          आज आपसे अचल संपत्ति – स्थिर संपत्ति – जमीन जायदाद के बारेमे कुछ बात करनी है. 

          साठ सत्तर के दशक पहले का, एक जमाना था, जब मुंबई मे रूम ” पगड़ी ” सिस्टिम से बिकती थी. वैसे देखा जाय तो पगड़ी लेना या देना कानूनन गुन्हा है. फिर भी गैर कानूनी तरीके से, रूम – दुकान पगड़ी, सिस्टम पर खुले आम बिकी जाती थी. स्थानीय प्रशासन का कोई कंट्रोल नहीं था. 

      कई बुजुर्ग लोगोंको पता होगा की उस ज़माने मे मकान मालिक रूम बनाके जब बेचता था तो रूम बनने की लागत ब्लैक मे किरायेदार (भाडुत) से वसुल कर लेता था और फिर उसके बाद मकान मालिक हर महीने किरायेदार से ” भाड़ा ” वसुल करता था. उसके बदलेमे मकान मालिक किरायेदार को पावती देता था. पगड़ी के बदले तीन महीना भाड़ा की डिपॉजिट पावती दी जाती थी. खैर वर्त्तमान मे तो लिव एंड लायसेंस और मालिकी हक का जमाना आ गया है 

         मिसाल के तोर पर मानो मासिक भाड़ा पचास रूपया तय किया गया हो तो डिपाजिट पावती तीन महीने का भाड़ा 150 रुपये की दी जाती थी. जिसकी वैल्यू आजके अग्रीमेंट के जीतनी थी. पावती के ऊपर दार्शनिक रूपसे तीन महीने की डिपाजिट पावती ऐसा लिखा जाता था. 

         उसके बाद रूम पर मकान मालिक का वन थर्ड हक रहता था जबकि किरायेदार का टू थर्ड हक रहता था.अगर 

किरायेदार कानून का उल्लंधन न करे तो उसे आजीवन रहनेका हक मिलता था.अगर किरायेदार रूम बेचना चाहे तो वो नया किरायेदार ढूंढकर ला सकता था. मकान मालिक भाड़ा डिपाजिट पावती नये किरायेदार के नाम ट्रांसफर करने का पैसा वसूलता था. 

         मानो किरायेदार ने पांच हजार रुपिया पगड़ी दी हो और वह रुम वो दूसरे को आठ हजार मे बेचता है तो उसे तीन हजार रूपया अधिक फायदा हुआ, अब मकान मालिक को फायदे का वन थर्ड मतलब एक हजार ट्रांसफर फीस के रूप मे देना पडता था. ताकि वो नये भदुआत के नाम पर रूम को ट्रांसफर करके दे. इसमें टू थर्ड के हिसाब से किरायेदार को दो हजार रुपये फायदा हुआ   

        इस तरह ट्रांसफर मनी अमाउंट लेकर नये किरायेदार को मकान मालिक रूम ट्रांसफर कर देता था. मुंबई सहित महाराष्ट्र के कई इलाको मे आज भी यह सिस्टिम के हजारों घर, दुकान गैर कानूनी पगड़ी सिस्टिम पर हैं. आज सब जगह संपत्ति के भाव बढ़ गये है अतः मालिक और किरायेदार हर कोई अधिक मुनाफा कमाना चाहता है… ! 

         फलस्वरूप… स्ट्रक्चर अत्यंत धोकादायक – जर्जरित होनेके बावजूद भी किरायेदार मकान छोड़ना नही चाहता और मकान मालिक जबरन खाली करवाने के लिये पानी – बिजली कनेक्शन कट करवा देना, , भाड़ा नही स्वीकारना, ईमारत की मरम्मत नही करवाना,गुंडों का सहारा लेना, जैसे अनेक निर्दयी हथकंडे अपनाता है. 

         दूसरी तरफ अब ओनरशिप का जमाना आ गया है. 

इसलिए दोनों पक्ष मे खींच तान होती रहती है. आज भी हजारो दुकान, रूम, फ्लैट के विवादों की वजह से ईमारत, बिल्डिंग का पुनः निर्माण नही हो पा रहा है.

      जिससे सरकार को करोड़ो रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है. यु कहो की विकास की गति को रूकावट आ रही है. कुछ साल पहिले सरकार ने एक कानून पारित किया था. जिसके अंतर्गत किरायेदार को मकान मालिक को सो महीने का भाड़ा देकर पगड़ी की संपत्ति को अपने नाम ओनर शीप करवा लेना था, मगर इस कानून के अंतर्गत सम्पूर्ण महाराष्ट्र भर मे आजतक कोई किरायेदार रूम का मालिक नही बन पाया है. ये किरायेदार के साथ न्याय था. 

       यह एक सरकार की अच्छी पहल थी. मगर किरायदार का दुर्भाग्य था , की कानूनको कार्यान्वित करने नही दिया गया. मकान मालिक और किरायेदार का ये झगड़ा बरसो से चालु है, अतः सरकार को चाहिए की हस्तक्षेप करे अन्यथा नुकसान किरायेदार, मकान मालिक और सरकार को भी है. 

यदि बात मुकदमे तक पहुचती है तो निर्णय आनेमे वर्षो निकल जाते है. जिसका फायदा वकील को होता है !

        सरकार को चाहिए की एक्सपर्ट वकील की पेनल को यह काम दिया जाय,और संशोधन किया जाय. विकास की भावना रखने वाली मोदी जी की सरकार क्या इस समस्या का समाधान कर पायेगी ?

       नये कानून के अनुसार वर्तमान यदि मकान मालिक को रूम भाड़े से देनी हो तो ग्यारह महीने का लिव एंड लायसन अग्रीमेंट बनाना पड़ता है. उसको रजिस्टर करके सरकारी कायदा अनुसार स्टेम ड्यूटी,रजिस्टर फीस भरनी पड़ती है. 

अगर करार को आगे बढ़ाना हो तो फिरसे नया करार नामा बनाना पड़ता है और इसमें सरकार को रेवेन्यू भी मिलता है. 

मुंबई सहित अनेक जगह बाबा आदम के जमाने से पगड़ी की यह लड़ाई मकान मालिक और किरायेदार के बिच चल रही है. सरकार यह सब जानते हुए भी मूक दर्शक बनकर तमासा देख रही है और गैर कानून को बढ़ावा दे रही है. 

        नगर सेवक, आमदार, सांसद, न्यायालय जानते हुए भी अनजान बने हुए है. बरसो से रेंट एक्ट बने हुए है. वकील लोग को इससे खेलनेकी आदत पड़ गई है. प्रोपर मुंबई मे ऐसी पगड़ी की अनेको ईमारत -बिल्डिंग जर्जरित अवस्थामे खड़ी है. उसमे से हर साल बारिश मे कोई ना कोई ईमारत धराशाही होते रहती है. 

       हर साल बारिस मे ऐसी ईमारत गिरती है. लाशे गिनी जाती है, शासन द्वारा मृतक के परिवार को लाखो की मदद की जाती है, मगर इसका परमेनन्ट सोलुशन के लिये कोई आगे नही आता. 

       चुनाव आते है, वादे किये जाते है. फिर परिस्थिति वही की वही. कोल्हू के बैल चले 100 मील मगर वहिकै वही. 

               आपसे भी निवेदन है इस आर्टिकल को शेर करो ताकी आप भी देश हित मे शामिल होनेका का सौभाग्य प्राप्त कर सके. 

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                          शिव सर्जन प्रस्तुति.

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