रोहिंग्या मुसलमान लोग एक राज्यविहीन इंडो-आर्यन जातीय समूह है जो मुख्य रूप से इस्लाम का पालन करते हैं और म्यांमार के रखाइन राज्य में रहते हैं. रोहिंग्या आमतौर पर म्यांमार (बर्मा) के रखाइन (अराकान) राज्य में केंद्रित मुसलमानों के समुदाय को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, हालांकि वे देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ पड़ोसी बांग्लादेश और अन्य देशों के शरणार्थी शिविरों में भी पाए जा सकते हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच यानी HRW के मुताबिक, भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या देश के अलग-अलग हिस्सों में कैंपों और झुग्गियों में रहते हैं. अन्य एक अनुमान के मुताबिक, करीब 5 हजार रोहिंग्या मुस्लिम जम्मू-कश्मीर के आसपास के इलाकों में रहते हैं.
रखाइन राज्य में अधिकांश मुसलमान खुद को ‘रोहिंग्या’ कहते हैं, उनकी भाषा (रोहिंग्या) बंगाली भाषा से ली गई है और बांग्लादेश में पास के चटगाँव में बोली जाने वाली चटगाँव बोली के समान है.
रोहिंग्या मुसलमान ये मुस्लिमों का एक समुदाय है. सदियों से ये लोग म्यांमार में रहते आए हैं. वहां रखाइन नाम का प्रांत है. वहां की बहु संख्यक आबादी रोहिंग्या हैं. रोहिंग्या कहते हैं कि वो लोग मुस्लिम व्यापारियों के वंशज हैं. करीब नौवीं सदी से रखाइन में रह रहे हैं.
1948 में म्यांमार को आजादी मिली, तब रोहिंग्या मुसलमानों ने पहचान पत्र के लिए अप्लाई किया. नए आजाद हुए देश में उन्हें नागरिकों के कुछ अधिकार भी मिले.
म्यांमार ज्यादातर रोहिंग्या को बांग्लादेशी घुसपैठिया कहता है. उसका यह कहना है कि रोहिंग्या असल में बांग्लादेशी किसानों की एक कौम है. अंग्रेजों के राज में ये लोग म्यांमार (तब का बर्मा) में आ बसे थे. उस समय म्यांमार पर भी अंग्रेजों का ही राज था.
उन्होंने बड़ी तादाद में रोहिंग्या मुसलमानों को मजदूरी वगैरह के लिए म्यांमार भेजा. म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी है बौद्ध. उनकी रोहिंग्या मुसलमानों से नहीं पटती. सरकार और सेना भी बहुसंख्यकों के साथ है. उधर बांग्लादेश कहता है कि रोहिंग्या उसके नहीं, म्यांमार के ही हैं. इस चक्कर में रोहिंग्या ऐसा समुदाय बन गया, जिसका अपना कोई देश नहीं.
रोहिंग्या लोग रोहिंग्या या रुआइंग्गा बोलते हैं, जो म्यांमार में बोली जाने वाली अन्य बोली से अलग है उन्हें देश के 135 आधिकारिक जातीय समूहों में से एक नहीं माना जाता है और 1982 से उन्हें म्यांमार में नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, जिसने उन्हें प्रभावी रूप से राज्यविहीन बना दिया है.
रोहिंग्या केवल इंडोनेशिया में सुरक्षा की तलाश नहीं कर रहे हैं. अधिकांश रोहिंग्या बांग्लादेश (960,000), मलेशिया (107,000) और भारत (22,000) में भाग गए हैं और उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया गया हैं.
भारत में 2012 के बाद से रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या तेजी से बढ़ी है. गृह मंत्रालय ने, UNHRC के हवाले से बताया कि भारत में दिसंबर 2021 तक 18 हजार रोहिंग्या मुस्लिमों के होने की जानकारी मौजूद है. 2017 में मोदी सरकार ने राज्य सभा में बताया था कि भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या आबादी अवैध रूप से रह रही हैं.
रोहिंग्या का इतिहास :
1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के ऐतिहासिक अराकान प्रांत (आज के रखाइन राज्य) में आकर बस गए थे. इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मी में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे. इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में आश्रय दिया था.
सन 1948 में बर्मा को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली. बर्मा की आजादी की लड़ाई में रोहिंग्या मुसलमानों का काफी अहम् योगदान था. इसके फलस्वरूप देश की आजादी के बाद रोहिंग्या के समुदाय को आधिकारिक पदों पर नौकरियां मिली. हालाँकि, सन 1960 के दशक से रोहिंग्या समुदाय के साथ अन्याय शुरू हो गया. उन्हें अल्पसंख्यक मानकर उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया गया.
इसके बाद साल 1982 में जब देश में बर्मा राष्ट्रिय कानून पारित किया गया था, तो इसमें रोहिंग्या को देश की जनता के रूप में कोई जगह नहीं दी गयी थी.