लोकसभा और राज्य सभा का चुनाव एक साथ कराने में लाभ और हानि.

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भारत में लोकसभा (संसद) और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का विचार लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है. क्या आपको ये पता है ? भारत देश में सन 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ ही होते थे. सन 1947 में आज़ादी के बाद भारत में नए संविधान के तहत देश में पहला आम चुनाव सन 1952 में हुआ था.

उस समय राज्य विधानसभाओं के लिए भी चुनाव साथ ही कराए गए थे, क्योंकि आज़ादी के बाद विधानसभा के लिए भी पहली बार चुनाव हो रहे थे. उसके बाद साल 1957, 1962 और सन 1967 में भी लोक सभा और विधान सभा के चुनाव साथ ही हुए थे.

लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले विधानसभाओं और लोकसभाओं के बार-बार भंग होजाने के कारण यह अभ्यास धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गया था.

साथ चुनाव का लाभ :

अगस्त 2018 में भारत के विधि आयोग द्वारा एक साथ चुनावों पर जारी मसौदा रिपोर्ट में कहां गया है, एक राष्ट्र एक चुनाव के अभ्यास से सार्वजनिक धन की बचत की जा सकती है, प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले तनाव को कम किया जा सकता है. सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा तथा चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न प्रशासनिक सुधार किये जा सकते है.

एक साथ चुनाव कराने में चुनौतियाँ :

संविधान के अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 172 में यह कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा, यदि इन्हें पहले भंग न किया जाए तथा अनुच्छेद 356 के तहत ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती हैं जिसमें विधानसभा पहले भी भंग की जा सकती हैं.

इसलिये केंद्र अथवा राज्य सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार गिरने की स्थिति में ONOE योजना की व्यवहार्यता सबसे अहम प्रश्न है. इस तरह के बड़े बदलाव के लिये संविधान में संशोधन करने से न केवल विभिन्न स्थितियों और प्रावधानों पर व्यापक तौर पर विचार करने की आवश्यकता होगी, बल्कि ऐसे बदलाव भविष्य में किसी प्रकार के संवैधानिक संशोधनों के लिये एक चिंताजनक मिसाल भी साबित हो सकते हैं.

EVM और VVPAT की आवश्यकता :

एक साथ चुनाव के लिये लगभग 30 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की आवश्यकता होगी. भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India- ECI) ने ई सन 2015 में सरकार को एक व्यवहार्यता रिपोर्ट सौंपी, जिसमें संविधान तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन का सुझाव दिया गया था.

भारतीय चुनाव आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये पर्याप्त बजट की आवश्यकता होगी. प्रत्येक 15 वर्ष की अवधि के बाद मशीनों को बदलने की अतिरिक्त लागत के साथ EVM और VVPAT की खरीद के लिये कुल लगभग 9,284.15 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी. तथा एक साथ में चुनाव होने से चुनावों के लिये मशीनों को एकत्र करने हेतु भंडारण लागत में वृद्धि होगी.

अब सन 2024 का लोकसभा का चुनाव घोषित हो चूका है, ऐसे में साथ में विधानसभा का चुनाव होना अगले पांच साल पीछे चला गया है.

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