विठोबा रुक्मिणी मंदिर ” पंढरपुर.” |Pandharpur

Vitthal

भगवान विष्णु के अवतार बिठोबा और उनकी पत्नी रुक्मिणी का मंदिर महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर जिले मे पंढरपुर स्थित विद्यमान है. यहां भगवान श्री कृष्ण विठ्ठल रुप मे पूजे जाते है. यह श्री विठ्ठल और श्री रुक्मिणी का पवित्र स्थान है. पंढरपुर को भारत और महाराष्ट्र के दक्षिण काशी के देवता के रूप में भी जाना जाता है. ये सोलापुर से तक़रीबन 72 कि.मी. की दूरी पर विध्यमान है.

       भगवान श्री विट्ठल के भक्त को वारकरी कहते हैं , तथा इस संप्रदाय को ” वारकरी सम्प्रदाय ” कहा जाता है. वारकरी शब्द मे वारी का अर्थ यात्रा करना होता है. जो अपने आस्था स्थान की भक्तिपूर्ण यात्रा पुन: पुन: करता है, उसे वारकरी कहते हैं. विट्ठल ( वारकरी ) संप्रदाय के महान संतों मे संत श्री ज्ञानेश्वर, श्री नामदेव,श्री एकनाथ, श्री तुकाराम, सखूबाई , चोखामेला महार और कर्मामेला महार आदि संत हुए हैं. 

         वारकारी समाज जन्म आधारित जाति व्यवस्था, ऊंच नीच , अस्पृश्यता का विरोधी है. सांसारिक जीवन में रहकर दुःखी और दुर्बल लोगों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य मानते है. पंढरपुर शहर चंद्रभागा (भीम) नदी के तट पर बसा है. भीमा नदी जो उसके घुमावदार बहाव के कारण चंद्रभागा कहा जाता है, पंढरपुर उस तट पर सोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित बसा हुआ है.

       पंढरपुर कृष्ण भक्तों का एक धार्मिक स्थल है, जहां हर साल करोडों हिंदू तीर्थयात्री दर्शन के लिये आते हैं. भगवान विष्णु के अवतार श्री बिठोबा और उनकी पत्नी रुक्मिणी के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं.

         मुख्य मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों द्वारा किया गया था. सन 2001 साल की जनगणना के अनुसार पंढरपुर की जनसंख्या 91,381 थी. 

       श्री विठ्ठल मंदिर मे काकड़ आरती महापूजा, महानिधि, धुप आरती , आदि किए जाते है. पंढरपुर में बुधवार के दिन को सप्ताह का पवित्र दिन माना जाता है. यहाके आषाढ़ी एकादशी , कार्तिकी एकादशी , माघ एकादशी और चैत्र एकादशी ये चार महत्वपूर्ण त्योहार हैं. इन चारो त्योहारों में करीब 10 लाख वारकरी भक्त आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी के दिन उपस्थित रहते हैं.

          इसके अलावा यहां गुड़ी पड़वा, राम नवमी, दशहरा और दिवाली भी बहुत श्रद्धा के साथ हर्षोउल्लास के साथ मनाये जाते है. आषाढ़ी एकादशी मानसून की शुरुआत के बाद आषाढ़ माह में मनाई जाती है. संतों की पालकी आषाढ़ी एकादशी पर पंढरपुर पहुंचने के लिए पैदल यात्रा करती है और श्री विठ्ठल रुक्मिणी से मिलने के बाद वापस लौटती है. पुरे देशभर से भक्तजन यहां शामिल होते हैं.

          आनंदी से संत ज्ञानेश्वर, और देहू से संत तुकाराम महाराज की पालकी के साथ, लगभग 2 लाख वारकरी पंढरपुर के लिये पैदल चलकर पंढरपुर यात्रा पर निकलते है. इसके साथ ही, महाराष्ट्र में विभिन्न स्थानों से अन्य संतों की पालकी भी यहां पर लायी जाती है. आषाढ़ी एकादशी के समय करीब 8 लाख वारकरी विट्ठल की यात्रा करते हैं. 

          श्री विठ्ठल मंदिर पांडापुर शहर के मध्य भाग में स्थित है. मंदिर में कुल 8 प्रवेश द्वार हैं. मंदिर का मुख्य द्वार पूर्वी प्रवेश द्वार है. सोलह स्तंभों में से एक सोने और चांदी की चादरों से ढंका है और इसे ईगल स्तंभ के रूप में जाना जाता है. इसका उल्लेख सोलखम्ब के पास एक बड़ी चट्टान पर से पता चलता है. मुख्य गर्भ गृह 6 वर्ग फीट और 3 फीट ऊंचा है . इस ब्लॉक पर भगवान विठ्ठल की एक मूर्ति है. 

      श्री विठ्ठल को विठोबा, पंधरीनाथ , पांडुरंग, विठ्ठलनाथ आदि कई नाम से भी जाना जाता है. मुख गर्भ गृह के पीछे उत्तर पूर्व में माता रुक्मिणी का मंदिर है. यह श्री रुक्मिणी मंदिर में एक सभा, एक मंडप, एक हॉल और दर्शन के लिए और बाहर जाने की व्यवस्था है.

       पंढरपुर में सभी जातियों और धर्मों के भक्त को मंदिर में आनेकी छूट हैं यहां हर कोई को विठ्ठल के चरणों में सिर झुकाने का मौका मिलता है. इस तरह के सिर के साथ यहां आदरांजलि देने का अवसर शायद ही कभी अन्य मंदिरों में उपलब्ध होगा. एक सामान्य दिन में 2 से 3 घंटे, साप्ताहिक अवकाश पर 4 से 5 घंटे और तीर्थयात्रा पर 34 से 36 घंटे दर्शन के लिये समय लगता हैं. 

         पहले मंदिर मे नीच जातिके लोगों को प्रवेश नहीं था. तब सन 1946 मे साने गुरुजी ने हरिजनों के लिए पंढरपुर में विठ्ठल मंदिर में प्रवेश कराने के लिए उपवास कीये थे, तो मंदिर हरिजनों के लिए खोल दिया गया था. 

       यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है. कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण पुंडलिक की बाप की सेवा से अति प्रशन्न होकर प्रकट हुए तब पुंडलिक सेवामें लगे हुए थे, इसलिए उसने एक ईट प्रभु को दी . उनकी भक्ति से प्रशन्न होकर कृष्ण वर मागने को कहता है तो, पुंडलिक उसे यहीं बिराजमान होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करने कहता हे तबसे प्रभु ईट पर खड़ा है, अतः विट पर खड़ा, विट उभा से वे विठोबा कहा जाने लगा. 

         मान्यता के अनुसार पिछले 800 सालों से यहां यात्रा ( डिंडी ) का आयोजन किया जाता है. ( संपूर्ण )

बोला पुंडलिक वरदे हरी विठ्ठल। 
श्री ज्ञानदेव तुकाराम। 
बोला पंढरीनाथ महाराज कि जय। 
श्री ज्ञानेश्वर महाराज कि जय। 
श्री तुकाराम महाराज की जय। 

  —–====शिवसर्जन ====——

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