“विधाता का लेख और गुरु कृपा”

कहा जाता है कि विधाता ने लिखा लेख मिट नहीं सकता , मगर किसी पर गुरु की कृपा हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता है. यदि आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर यदि गुरु की कृपा आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते हैं, जो आपके नसीब में नहीं लिखा हैं.

इसीलिए तो कहा जाता है कि “कोई लाख करें चतुराई रे, करम ना लेख मिटे ना भाई रे.” मगर ये भी कहा जाता है कि……

भाग लिखी मिटे नही,

लिखे विधाता लेख,

मिल जावे गुरु मेहर तो,

लगे लेख पे मेख ।।

इस कथन को सार्थक करती एक सुंदर कहानी आप प्रबुद्ध लोगों के साथ शेयर करता हूं……

काशी नगर मे एक निसंतान धनवान सेठ रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए सेठ जी ने कई विद्वान ज्योतिषियों से सलाह मशवरा करने के बाद भी, उन्हें किसी भी प्रकारका लाभ नहीं हुआ. सेठ जी को सभी उपाय से फायदा नहीं हुआ तो सेठजी को किसी ने सलाह दी कि आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज रामायण पढ़ते हैं, वहां भगवान श्री राम स्वयं कथा सुनने आते हैं.

आप गोस्वामी जी से कहना कि आप भगवान से पूछे कि मुजे संतान कब होगी ? सेठजी बडी आशा लेकर गोस्वामी जी के पास गये और अपनी समस्या के बारे में भगवान से बात करने को कहा.

कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते हैं कि प्रभु वो एक सेठजी आए थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे. इस बात पर भगवान ने कहा कि गोस्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दु:ख दिए थे. इस कारण उनके तो सात जन्मों तक संतान नहीं लिखी हुई है. दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं. सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते हैं.

कुछ दिन बाद सेठजी के घर एक संत भिक्षा मांगने आते है. संत ने सेठ जी को कहा कि मुजे भिक्षा दो तो जो मांगोगे वो मिलेगा. तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती है कि गुरुजी मेरे संतान नहीं है. इसपर संत बोले कि तू एक रोटी देगी तो तेरे घर संतान जरूर होगी.

सेठ जी की पत्नी संत को दो रोटी दे देती है. उससे अति प्रसन्न होकर संत कहता है कि जाओ तुम्हारी दो संतान होंगी. एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वां संताने हो जाती है. कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता है. व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते हैं. उन्हें खेलते देखकर वे व्यापारी से पूछते हैं कि ये बच्चे किसके हैं ? व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही हैं. आपने तो झूठ बोल दिया कि भगवान ने कहा कि मेरे संतान नहीं होगी पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई हैं.

गोस्वामी जी ये सुनकर असमंजस मे पड़ जाते हैं. फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता है. बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते हैं. शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढ़ते हैं तो भगवान श्री राम उनसे पूछते हैं कि गोस्वामी जी आज क्या बात है. चिंतित मुद्रा में क्यों हो, तो गोस्वामी जी कहते है कि प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा करार कर दिया.

प्रभु आपने तो कहा ना कि सेठ को सात जन्म तक कोई संतान नहीं लिखी है. फिर उसके दो संतानें कैसे हो गईं, तब भगवान बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मों के कारण उसे सात जन्म तक संतान नहीं दे सकता, क्योंकि मैं नियमों की मर्यादा में बंधा हूं पर मेरे किसी संत सतगुरु ने उन्हें कह दिया कि तुम्हारे संतान होगी तो उस समय में भी कुछ नहीं कर सकता गोस्वामी जी. क्योंकि मैं भी संतों की मर्यादा से बंधा हूं, मैं पूर्ण संतों के वचनों को काट नहीं सकता.

गोस्वामी जी मुझे संत की बात रखनी पड़ती है, इसलिए यदि आप भी उसे कह देते कि जा आपको संतान हो जाएगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ के संतान प्राप्ति का वरदान मान्य करना पड़ता था.

इस कहानी का तात्पर्य यह है कि , भले ही विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो पर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है, जो आपके किस्मत में नहीं लिखा हो. भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नहीं सकता पर किसी पर गुरु की कृपा हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता है. इसीलिए कहते है……

भाग लिखी मिटे नहीं, लिखे विधाता लेख,

मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख.

आजकी पोस्ट सभी गुरुओंको सस्नेह समर्पित करता हूं , क्योंकि…..

गुरु गोविंद दोनों खड़े, किसको लागु पाय,

बलिहारी गुरु देवकी तो, गोविंद दोयो दिखाई.

About पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन"

View all posts by पत्रकार : सदाशिव माछी -"शिव सर्जन" →