विरार की जागृत जीवदानी माता| Jivdani Mata

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आज मुजे विरार की माता जीवदानी के बारेमें कुछ लिखना है. माता जीवदानी सुखकर्ता, परम कृपालु , मन की मुरादों को पूरी करने वाली, मन्नत की देवी, साक्षात् माँ श्री भगवती का रुप , कल्याणकारी और दुःखो को हरण करने वाली तथा स्थानीय कोली , आगरी , आदिवासी समाज की कुल देवी है. 

         हिंदू देवी जीवदानी माता का श्री मंदिर पालघर जिले के वसई तालुका के विरार पूर्व शहर के सातपुरा पहाड़ी पर बिराजमान है. ये समुद्र की सतह से करीब 1500 फुट उपर है. वहां तक पहुंचने के लिये विरार ( पूर्व ) स्टेशन से रिक्शा आसानीसे मिल जाती है. उपर जानेके लिये तकरीबन 1300 सीढ़िया चढ़नी पडती है. 

        आप उपर जानेके लिये रोप वे का भी इस्तेमाल कर सकते हो, जिसके लिये फीस देनी पडती है. सालोसे यहां पर मुर्गा , बकरे की बलि दिये जानेका रिवाज़ है, मगर करीब तीस साल से अब उपर बलि देनेकी मनाई है.अब न्यास मंडल द्वारा पहाड़ के निचे ही बलि देनेकी जगह दी गईं है. पहले पहाड़ के उपर ही बकरे मुर्गे की बलि दी जाती थी. 

        बारिस के समय हरीयाली की वजह प्राकृतिक सौंदर्य खिल उठता है. हर साल दसहरा के दिन यात्रा ( मेला ) के पावन पर्व पर मंदिर को रोशनी से सजाया जाता है. मेले के दिन स्थानीय तथा दूर दूर गुजरात राज्य और महाराष्ट्र राज्य भर से भाविक भक्त जन यहां आकर उत्सव मे सामिल होते है. नवरात्री मे दस दिन तक यह उत्सव बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. 

       वनवास के दौरान पांडव यहां पर छुप कर रहे थे. तब विरार विराटनगरी के नामसे जानी जाती थी. पुरानी मान्यता के अनुसार यह मंदिर पांडवो द्वारा पूजित है.विरार, जीवदानी वसई पूर्व तुंगारेश्वर पहाड़ सहित गणेशपुरी, वजेश्वरी की भूमी को भगवान परशुराम जी की भूमी कहा जाता है. 

      तुंगारेश्वर के शिवलिंग की मूर्ति की स्थापना भगवान श्री परशुराम ने की थी. आज भी बालयोगी सदानंद बाबा जी परशुराम कुंड स्थित अपना आश्रम बनाकर सन 1971 की साल से तुंगारेश्वर पहाड़ पर रहते है. श्री नित्यानंद महाराज का आश्रम गणेश पूरी मे है. जिसको भगवान शंकर जी का अवतार माना जाता है. 

      सातीवली तुंगारेश्वर महादेव मंदिर जाते समय श्री बापा सीताराम मंदिर के आगे पहला नाला स्थित बाल योगी श्री गणेश जी का चकाचक महादेव मंदिर विद्यमान है जहां पर लाखों लोग माथा टेकने जाते है. विरार वसई क्षेत्र भगवान श्री परशुराम जी का श्री क्षेत्र रहा है. 

      इस समस्त पावन श्री भूमी स्थित श्री जीवदानी पहाड़ पर बिराजमान श्री जीवदानी मंदिर के इर्द गिर्द कई गुफा ओका निर्माण किया था. यहां पर अनेक साधु , संत , ऋषि मुनि ओका आना जाना रहता था. तब इस पहाड़ी को स्थानीय आदिवासी लोग इसे पांडव डोंगरी कहते थे. 

           अज्ञात वास के दरम्यान पांडवो ने यहां पर छुपकर निवास किया था. अतः इस भूमी को पावन भूमि के नाम से जाना जाता है. 

          हिंदू परंपरा के अनुसार हर हिंदू त्यौहार यहां पर बड़े भक्ति भाव से मनाया जाता है. देवी को नारियर , हार , फूल , कंगन , सिंदूर तथा मिठाई अर्पण करने का रिवाज़ है. जिसकी मनो कामना पूरी होती है वे लोग यहां उत्साह से मन्नत पूरी करने आते हैं और माताजी को यथा शक्ति नैवेद्य अर्पण करते है. तथा चुंदरी अर्पण करते है. 

       जीवदानी देवी के बारेमें अनेक दंत कथा कही जाती है. और भक्त जनोकी अटूट आस्था, विश्वास और कृतज्ञता की वजह इस मंदिर का उतरो उतर विकास होते जा रहा है. ट्रैन मे आते जाते समय विरार स्टेशन की पूर्व मे पहाड़ी पर स्थित जीवदानी मंदिर आसानी से दृष्टिगोचर होता है. रोशनी की वजह से रात मे भी यह मंदिर पहचाना जाता है. 

       जीवदानी देवी को कोली , आगरी , कुनबी , आदिवासी लोग कुल देवी व आराध्या देवी मानते है. देवी की श्री मूर्ति के बगल मे एक पथ्थर है जिस पर भाविक भक्त जन रुपये का सिक्का या सुपारी चिपका कर मन्नत मांगते है. मान्यता हे की यदि मन्नत पूरी होने वाली हो तो रूपया या सुपारी चिपक जाती है. वर्ना पत्थर से सिक्का निचे गीर जाता है. 

       भीड़भाड़ वाली मुंबई नगरी के नजदीक होनेकी वजह शांति की खोज मे देवीके दर्शन व पिकनिक मनाने के लिये भक्त जन यहां पर आते है. शारीरिक दृश्टिकोण से स्वस्थ लोगों के लिये यह स्थल अवश्य दर्शन करने योग्य है. 

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                    शिव सर्जन

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