आवश्यकता आविष्कार की जननी है. जैसे जैसे मनुष्य को जरूरियात पड़ी वो आविष्कार करते गया. स्व रक्षण के लिए सर्व प्रथम आदिवासी जीवन जीते पत्थरों की गुफाओं मे रहने लगा. आगे चलकर घर बनाकर अपनी बिरादरी मे रहने लगा. फिर गांव और गांव से शहर और महानगर का आविष्कार हुआ.
पेड़ पत्तों से गुप्तागों को ढकने से लेकर चर्म के वस्त्र परिधान करने लगा. उसके बाद आगे संशोधन होते गया और आधुनिक सूती कपड़ो से लेकर उनी, लिनन, पॉलिस्टर, और कई नित नये कपड़ोका आविष्कार हुआ. वैसे ही मुद्रा का अविष्कार बहुत से अविष्कारों में से एक है.
प्राचीन मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरणमें वस्तुओका विनिमय का चलन था. जैसे किसीको गेहूं चाहिए तो वो अपनी पासमे उपलब्ध कोई भी वस्तु बदलीमे देते थे, और लेनदेन करते थे. लेकिन बाद में लोगों की जरूरतें बढ़ती गई और वस्तु के आदान प्रदान मे कठिनाइयाँ पैदा होने लगीं अतः कोड़ी का चलन शुरु हुआ. जो बाद में सिक्कों में बदल गया.
फूटी कौड़ी, कौड़ी, धेला, दमड़ी, पाई और पैसा ये भारतीय चलन की ऐसी इकाइयाँ हैं जो कि बहुत पहले ही चलन से बाहर हो गयी हैं. वर्तमान पीढ़ी को तो उनका पता तक नहीं है.
उपरोक्त मुद्रा को लेकर समाज में कई कहावतें भी प्रचलित हैं जैसे, सोलह आने सच, मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है, मेरा नौकर एक धेले का भी कामका नहीं है. और चमड़ी छूटे पर दमड़ी ना छूटे. कौड़ियों के भाव बिकना, दो कौड़ी का आदमी और कौड़ी-कौड़ी के लिए मोहताज होना.
लेकिन…. आज की नई पीढ़ी को कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई और आने की वैल्यू कितनी होती थी, पता है..?
(1) कौड़ी से दमड़ी बनी.
(2) दमड़ी से धेला बना.
(3) धेला से पाई बनी.
(4) पाई से पैसा बना.
(5) पैसे से आना बना.
(6) आना से रुपया बना और अब क्रेडिट कार्ड और बिटकॉइन का जमाना शुरु हुआ है.
प्राचीन मुद्रा की एक्सचेंज वैल्यू का प्रकार इस तरह का था.
256 दमड़ी =192 पाई=128 धेला =64 पैसा =16 आना =1 रुपया
यांनी 256 दमड़ी की वैल्यू आज के एक रुपये के बराबर थी.
अन्य मुद्राओं की वैल्यू का प्रकार :
(1) 3 फूटी कौड़ी =1 कौड़ी.
(2) 10 कौड़ी =1 दमड़ी.
(3) 2 दमड़ी =1 धेला.
(4) 1.5 पाई =1 धेला.
(5) 3 पाई =1 पैसा (पुराना)
(6) 4 पैसा =1 आना.
(7) 16 आना =1 रुपया.
(8)1 रुपया =100 पैसा
मित्रो अब आपको पता चल गया होगा कि प्राचीन समय में मुद्रा की सबसे छोटी इकाई फूटी कौड़ी थी और आज के समय में यह इकाई पैसा है.
भारत में कौन से सिक्के चलन से बाहर हो गये हैं?
भारतीय वित्त मंत्रालय ने 30 जून 2011 से बहुत ही कम वैल्यू के सिक्के जैसे 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के संचलन से वापस लिए गए हैं. मतलब अब ये सिक्के भारत में वैध मुद्रा नहीं हैं. इसलिए कोई भी दुकानदार और बैंक वाला इन्हें लेने से मना कर सकता है और उसको सजा भी नहीं होगी.
मगर ध्यान रहे कि भारत में 50 पैसे का सिक्का अभी वैध सिक्का है , इस कारण बैंक, दुकानदार और पब्लिक उसको लेने से मना नहीं कर सकते हैं. यदि कोई 50 पैसे का सिक्का लेने से इनकार करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
रुपया भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस और सेशल्स में उपयोगमे आने वाली मुद्रा का नाम है.
भारत में धातु के सिक्के सर्वप्रथम गौतमबुद्ध के समय में प्रचलन में आये, जिसका समय 500 ई. पू. के लगभग बताया जाता है. बुद्ध के समय पाये गये सिक्के आहत सिक्के कहलाये. इन सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड़, हाथी, अर्द्धचंद्र आदि की आकृति बनी होती थी. ये सिक्के अधिकांश चाँदी के तथा कुछ ताँबे के बने होते थे.
वर्तमान में भारत में 50 पैसे, एक रुपया, दो रुपये, पाँच रुपये, दस रुपये तथा बीस रुपये मूल्य के सिक्के जारी किए जा रहे हैं. 50 पैसे तक के सिक्कों को “छोटे सिक्के” कहा जाता है तथा एक रुपया और इससे अधिक मूल्य के सिक्कों को “रुपया सिक्का” कहा जाता है.
आपस मे आदान प्रदान से शुरु किया गया विनिमय के लिए लोगोंने प्रकृति द्वारा दी गई चीजों को ही अपनी मुद्रा का आधार बनाया. उस समय समुद्र की एक विशेष सीपी जिसे कौड़ी कहा जाता है जिसे पहले मुद्रा के तौर पर उपयोग में लाया गया.
कौड़ियों के भाव बिकना, दो कौड़ी का आदमी और कौड़ी-कौड़ी के लिए मोहताज होना जैसी कहावते भी इसी ओर इशारा करती है कि कौड़ी का तब उपयोग मुद्रा के तौर पर होता था भारत के अलावा युरोप में भी इस बात के हमें सबूत मिले हैं कि कौड़ी उपयोग वहां मुद्रा के तौर पर होता था.
ब्रिटेन में जाली मुद्रा के उपयोग की वजह से लोगों को मृत्युदण्ड तक दिया जाने लगा था. बेन फ्रेंकलिन जिनके पास ब्रिटेन की करेंसी छापने का ठेका था उन्होंन जानबूझकर अपनी नोटो पर पेनिनसिल्वेनिया की स्पेलिंग गलत की ताकि इसका जाली संस्करण छापने वाले इस नाम को सही करके छापे और पकड़े जाएं.
भारत में जाली नोटों को चलन से बाहर करने के लिए नोटबंदी जैसे उपाय अपनाए गए. पूरे विश्व में जाली करेंसी को छापने और उपयोग करने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. अमेरिका में इसके लिए 20 साल तक की सजा सुना दी जाती है.
चमड़े के सिक्के मुद्रा के इतिहास में एक समय ऐसा भी आया जब इसे चमड़े पर मुद्रित किया जाने लगा था. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह चमड़े का सुलभ होना था. धातु को ढालने का काम काफी खर्चीला और मुश्किल था.
उस समय कागज का आविष्कार नहीं हुआ था. ऐसे में चमड़ा ऐसी चीज थी जिसका उपयोग मुद्रा के तौर पर होने लगा था.
रोमनो ने सबसे पहले चमड़े के सिक्के ढाले थे. रूस के राजा पीटर द ग्रेट ने भी चमड़े के सिक्कों का उपयोग किया. भारत में मुहम्मद बिन तुगलक ने चमड़े के सिक्कों का उपयोग किया था.
कागज के नोट की करेंसी :
ऐसा माना जाता है कि कागज का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था. इसलिए यह भी मान लेना चाहिए कि पेपर करेंसी या कागज को नोटों का प्रचलन भी सबसे पहले वहीं से शुरू हुआ था.
एक झेनझोंग साम्राज्यने दसवीं शताब्दी में चीन देश में राज किया था. उन्होंने सबसे पहले करेंसी नोटों की शुरूआत की थी. उस पर एक वादा लिखा जाता था कि इसके बदले सोने की या चांदी की मुद्राओं को लिया जा सकता है. कागज हल्का होता था और इसे लेकर सफर करना आसान होता था. इसीलिए कागज के प्रॉमिसिरी नोट तेजी से प्रचलन में आए और धातू की मुद्रा को उसने चलन से बाहर कर दिया.
सिक्कों से शुरु हुआ विनिमय का कारोबार आज हम पेटीएम, फोनपे और इसी तरह के सैकड़ो एप्स की मदद से अपनी करेंसी का भुगतान करते हैं और अपने खाते में पैसे मंगाते हैं.
इस प्रक्रिया में फिजिकल मनी या कागज की मुद्रा की जगह सिर्फ एक आंकड़े का ट्रांजेक्शन होता है. इस नई क्रांति ने डिजिटल मुद्रा का मार्ग प्रशस्त किया है जो अभी “बिटकाइन्स” जैसी भविष्य की मुद्रा का आधार बन सकती है. बिटकाइन्स एक डिजिटल करेन्सी है जिसकी शुरूआत प्रोग्रामर्स के एक समूह जिन्हें सतोषी नाकामोटो कहा जाता है ने सन 2009 में शुरु की थी.
फिलहाल यह करेंसी किसी देश के सेंट्रल बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है , और भारत सहित कई देशों ने इसके उपयोग पर पाबन्दी लगा रखी है. अब तक 17 मिलियन से ज्यादा बिटकॉइन करेंसी बनाई जा चुकी है और तमाम पाबंदियों के बावजूद यही मुद्रा का भविष्य दिखाई दे रहा है.